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माता अष्टलक्ष्मी

by रंजना सिंह
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श्री हनुमान जी जब माता जानकी के सन्धान में लङ्का गए, घनघोर भोगी राक्षसों की नगरी में तुलसीचौरा तथा धार्मिक चिन्हों से युक्त पवित्र एकमात्र घर को देख आश्चर्य चकित हो गए।विभीषण से भेंट के उपरांत उन्हें ज्ञात हुआ कि उस पापनगरी में चहुँओर व्याप्त अधर्म के बीच भी रामनाम के आसरे बत्तीस दाँतों के मध्य एक अकेली जीभ की भाँति परम सात्त्विक वैष्णव भक्त बनकर कोई रह सकता है।
किन्तु देखा जाय तो यह इतना भी सरल सहज नहीं।अपने देश में रहते हम दिनरात कठिनाई अनुभव करते हैं कि कैसे अपने बच्चों को सनातनद्रोह से बचाये सनातनी बनाये रखें। फिर जो हमारे भाई बन्धु पश्चिमी देशों में सर्वथा विपरीत परिस्थिति परिवेश में रहते हैं,उनके लिए यह कितना कठिन होगा,सहज ही अनुमानित किया जा सकता है।
इधर अपने कई प्रवासी भाई बहनों की चिन्ताएँ देख रही हूँ कि बच्चे देवी लक्ष्मी की अपेक्षा गिफ्ट देने वाले शांताक्लॉज़ से अत्यधिक प्रभावित हैं।इसलिए उन्होंने देवी लक्ष्मी के प्रति बच्चों की उपेक्षा को मिटाकर और क्रिसमस डे की भाँति उपहार प्राप्ति की अपेक्षा पूरी करने के लिए दीपावली से पहले वाले दिन बच्चगों के सिरहाने उपहार रखकर कहा जाय कि माता लक्ष्मी ने दिया है।
ऊपरी तौर पर यह विचार सही ही लगता है,,पर गम्भीरता से सोचें तो यह सर्वथा अनुचित होगा।क्योंकि हमारे सनातन धर्म में ईश्वर के साथ ऐसे लेन देन का सम्बन्ध नहीं होता।इसके साथ ही जब कभी बच्चों को यह पता चलेगा कि उनके साथ यह छल किया गया था,तो उनकी आस्था आपपर और देवी देवताओं पर से निश्चित ही कम होगी।
इसके स्थान पर यदि उन्हें यह समझाया जाय कि कैसे हमारे पूज्य व्यक्त अव्यक्त सभी रूपों में सदैव हमारे साथ हैं,हमारे पास जो कुछ भी है उन्हीं का दिया हुआ है,कैसे सतपथ पर चलने से वे हमारी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाकर हमें दीर्घायु, स्वस्थ शरीर,अन्न धन जय विद्या आदि सबकुछ देती हैं,,बच्चे धर्म से अधिक बंधेंगे।हमें बच्चों को अष्टलक्ष्मी के विषय में बताना चाहिए कि कैसे आठ रूपों में श्रीलक्ष्मी हमें सुख समृद्धि देती हैं।
दुर्गापूजा के बाद से ही हम जिस लक्ष्मी के शरणागत होते हैं,वे हाथ मे झाड़ू पकड़े हुए हैं।इस स्वरूप की आराधना भी हाथ मे झाड़ू पकड़ ही होती है।अर्थात स्वच्छता अभियान।इस सफाई के द्वारा न केवल घर साफ सुथरा होकर हमारे स्वास्थ्य के लिए सुरक्षचक्र/कवच निर्मित करती है,अपितु हमारे द्वारा खरीदे जुटाए, पर भूल चुके कई ऐसे सामान भी दिलाती हैं जो नए खरीदे सामान से अधिक रोमांचक हमें लगते है।देखा जाय तो यह सेंटाक्लॉज़ के दिये गिफ्ट से अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन्हें खरीदने में तात्कालिक रूप से तो कोई पैसे नहीं लगे हैं।
अधिकांशतः मातालक्ष्मी का केवल वह एक स्वरूप जिसमें वे कमल वरमुद्रा धनकलश हाथ में लिए हुए हैं,हमारे ध्यान में आता है,,जबकि जबतक उनके अष्टलक्ष्मी स्वरूप को ध्यान में न रखा जाय और सबको पूजते उनके उक्त रूप द्वारा स्थापित जीवनसिद्धान्त को आचरण में न उतारा जाय,लक्ष्मी की पूजा भक्ति सम्पन्न नहीं हो सकती।
पुराणों में माता आदिशक्ति को माता लक्ष्मी का प्रथम स्वरूप माना गया है जो केवल सृष्टि को ही नहीं, त्रिदेवों का भी सृजन करती हैं।उन्हें सृष्टि संचालन हेतु महाशक्ति का वह भाग अर्द्धांग रूप में वरण करने का निर्देश देती हैं जिनकी सहायता से सहजतापूर्वक वे सृष्टि संचालन कर पायेंगे।तब ब्रह्माजी ज्ञान की देवी सरस्वती का आह्वान करते हैं,विष्णुजी धनधान्य की देवी लक्ष्मी जी को और शिवजी प्रकृतिरूपा जगदम्बिका का वरण करते हैं।
कुल मिलाकर अष्टलक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं-
*आदिलक्ष्मी- ऊपर बताया जा चुका है।
*धनलक्ष्मी- जो श्री विष्णु की शक्ति हैं।
*धान्यलक्ष्मी-जिनकी कृपा से कृषि अन्न आदि हमें प्राप्त हैं।
*विजयलक्ष्मी- जिनसे किसी भी कर्म/उद्योग में हमें जय/सिद्धि प्राप्त होती है)
*गजलक्ष्मी- सनातन धर्म में पशुधन का बड़ा महत्व है और गज को पशुओं में सबसे अधिक,अर्थात समृद्धि का द्योतक माना गया है।अतः जिनकी कृपा से इन्द्रदेव ने अपना खोया वैभव समुद्रमंथन के उपरांत प्राप्त किया,वे सहाय हों तभी व्यक्ति पशुधन पा सकता है।
* सन्तानलक्ष्मी- जिनकी कृपा से न केवल संतानप्राप्ति अपितु सुसंस्कारी संतान की प्राप्ति होती है,उनकी पूजा और भक्ति स्कंदमाता रूप में की जानी चाहिए।इसका अर्थ यह भी है कि यदि आपको ममत्वभाव पाना है तो इन्हीं माता के शरण में जाना होगा।बिना ममत्व भाव से मनुष्य मनुष्य नहीं रहता।
*वीर लक्ष्मी – योद्धाओं की देवी है। जीवन का युद्ध हो या मैदान का युद्ध दोनों ही जगह यह देवी सहायता करती हैं।इनके शरण में गए बिना शौर्य प्राप्ति सम्भव नहीं।
* जय लक्ष्मी- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, जयलक्ष्मी की कृपा से ही विजय सम्भव है चाहे युद्धक्षेत्र हो या कर्मक्षेत्र।
* विद्यालक्ष्मी- विद्या ही तो मनुष्य को हर प्रकार से समृद्धि देती है चाहे वह आध्यात्मिक बौद्धिक या आर्थिक ही क्यों न हो।
माता के इन स्वरूपों को जानने के बाद व्यवहारिक जीवन में हमें जो भी प्राप्त हैं या आगे जो हम पाना चाहते हैं, बच्चों को यदि कोरिलेट कर बताया जाय तो क्रिसमस उपहार का आडम्बर उन्हें कदापि भ्रमित नहीं कर पायेगा।
माता अष्टलक्ष्मी हम सभी पर सहाय हों।

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