स्वस्थ_सौंदर्यबोध

देवेन्द्र सिकरवार

155 views

हड्डियों तक में घुसी भीरुता न हो तो हम हिंदू यौन कुंठाओं में मुस्लिमों से एक रत्ती कम नहीं हैं।
अंतर इतना है कि वे अपनी यौन कुंठा को धार्मिक आक्रामकता के लबादे में ‘जेहाद’ कहकर गौरवान्वित करते हैं और हम हिंदू अपनी यौन कुंठाओं को ‘नैतिकता’ लेकिन वास्तविकता यह है कि वे तो स्त्रियों के विषय में पशुतुल्य हैं ही लेकिन हमारे लोग भी लार चुआने में कम नहीं।
उन्मुक्त संभोगासनों को मन्दिर जैसे पवित्र धार्मिक स्थल में स्थान देने का साहस रखने वाले हमारे पूर्वज विश्व के सबसे सत्यनिष्ठ और चरित्रवान लोग थे, जबकि उनके वंशज हम वर्तमान पीढ़ी के लोग, सबसे कुंठित लोगों में हैं जो एक स्वस्थ और सुंदर लड़की की स्वस्थ प्रशंसा करना भी भूल चुके हैं, आदर करना तो दूर की बात है।
पश्चिम इसलिये आगे नहीं कि तथाकथित रूप से उसने आपकी थ्योरम चुरा ली हैं बल्कि इसलिए आगे है कि उन्होंने हमारे साहित्य, संस्कृति, विज्ञान, कला व परम्पराओं से श्रेष्ठतम को अपनी प्रेरणा का आधार बनाया।
वहाँ स्त्री ने अपनी आजादी को अपने शरीर सौष्ठव, कला व कैरियर के लिए इस्तेमाल किया इसलिये वह स्त्रियों का समुचित आदर कर पाते हैं और स्वस्थ प्रशंसा भी कर सकते हैं। इधर भारत में भद्दे ढंग से कूल्हे हिलाती रील्स की लड़कियां और अणुशक्ति जैसी औरतें ब्रा, पीरियड्स और अयप्पा मंदिर में स्त्री प्रवेश के डिस्कशन को नारी सशक्तिकरण का पर्याय बनाती हैं। #छवि_राजावत को कोई नारी सशक्तिकरण का प्रतीक नहीं बनाता क्योंकि वैसा बनने के लिए कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है, खोखली बतोलेबाजी की नहीं।
भारत में अगर हिंदू लड़के लड़कियां घुड़सवारी , कलारी, शास्त्रीय नृत्य, शस्त्र विद्या, तीरंदाजी, निशानेबाजी के वीडिओ डालने लगें तो समझ लेना कि हिंदू पुनुरुत्थान का युग आ गया।
जब शहरों में, गांवों में हॉर्स राइडिंग, कलारी, तीरंदाजी और निशानेबाजी स्कूलों में शुरू हो जायेगी और फिर आपको घुड़सवारी करती लड़की के प्रति स्वस्थ प्रशंसा बोध विकसित हो जायेगा, तब समझना हिंदू पुनुरोत्थान का युग आ गया।
फिलहाल हम यह भावना और प्रशंसाबोध खो चुके हैं।

Related Articles

Leave a Comment