लखनऊ में फिर से एक केस हुआ जिसमे मज़हब परिवर्तन का दबाव बनाते हुवे सूफ़ियान ने निधि को चौथी मंज़िल से फेंक मार दिया. पहली दृष्टि में जैसा लगता है कि हो सकता है कभी अफ़ेयर रहा भी हो या न भी रहा हो पता नहीं. लड़का परेशान कर रहा था तो लड़की के घर वाले लड़की को लेकर लड़के के घर शिकायत करने गये थे.
ऐसी घटनायें बहुत कॉमन हो रही हैं रोज़ ही सुनाई देती हैं.
इन घटनाओं में एक ओर जहां निधि और श्रद्धा को कभी फ्लैट से धक्का दिया जाता है तो कहीं फ्रिज में रखा जाता है यह एक बिरादरी की समस्या है, पर दूसरे वालों की नपुंसकता भी कम बड़ी समस्या नहीं है.
लड़की वाले शिकायत दर्ज करने लड़के के घर गये थे. क़ायदे से साथ में सौ लोगों को जाना चाहिये था. लेकिन इधर जैसे ही पड़ोसी को खबर मिलेगी वह साथ तो न जाएगा, मजाक अलग उड़ाएगा.
मृत्यु के पश्चात खबर सोसल मीडिया पर आयेगी हमारे हिन्दू वीर मृतका का मजाक उड़ायेंगे, उसे पापा की परी बता कर मीम बनायेंगे. कोरी नपुंसकता. जब साथ खड़े रहने का वक्त होता है तो हिम्मत नहीं पड़ती, अपने ही साइड वाले में दस कमियाँ निकाली जायेंगी बग़ैर किसी व्यक्तिगत रंजिश के. क्यों? क्योंकि सीधी बात है, फटती है.
ठीक है हो गई गलती, किससे नहीं होती. सोसल मीडिया से बाहर भी एक दुनिया है जहां सब लोग एक से एक बड़ी गलती करते हैं. एक से एक संस्कार वाले लोग अपने ही बच्चों से हार जाते हैं. खूब दुनिया देखी है. हो गई गलती. सजा भी उसने भुगत ली. कभी काट डाली गई, कभी फेंक दी गई फ्लैट से. मार दी गई. ऐसी सजा तो आतंकवादी को भी नहीं मिलती भारत में.
लेकिन उसके बाद भी उसके साथ खड़े लोग दिखते हैं क्या? मृत्यु के बाद भी उपहास का पात्र बनती है, कहानियाँ क़िस्से लिखे जाते हैं, मीम बनते हैं. डू यू रियली थिंक कि आपके इन मीम से डर कोई लड़की इंटर रिलीजन नहीं जायेगी? प्रेम में व्यक्ति अंधा होता है माता पिता की नहीं सुनता आपकी तो कोई वैल्यू ही नहीं है. पर हाँ जब गलती का एहसास हो तब उसे मालूम रहता है कि उसके साथ का समाज उसे न्याय दिलाने वाला नहीं मीम बनाने वाला है. उसे मालूम रहता है कि यहाँ की मर्दानगी अपनी बहन का साथ देने की नहीं उसे पापा की परी कह मजाक उड़ाने की है
एज ए सोसाइटी हमे अपनी प्रायोरिटी चेंज करनी होगी, हमें निधियों और श्रद्धाओं के प्रति अपने व्यवहार में सुधार लाना ही होगा. आज निधि हैं, श्रद्धा हैं कल आपके अपने भी हो सकते हैं.