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इससे पूर्व कि मैं #हिंदू_राष्ट्र पर अपनी चाहना के मूल पाँच बिंदुओं को आपके समक्ष रखूं, मैं कुछ बंधुओं की इस शंका का उत्तर देना चाहूंगा कि क्या हमारी एकता वाकई मुस्लिमों की देन है?
मैं कहूँगा कि हालात उससे भी बदतर हैं क्योंकि ऐसा कोई वक्त नहीं था जब हम आपस में झगड़ नहीं रहे थे लेकिन ब्राह्मणों का राष्ट्रभाव ऐसा प्रबल था कि कोई भी सम्प्रदाय या समुदाय हो सभी उनके नेतृत्व में राष्ट्र रक्षा के लिए खड़े हो जाते थे।
सिकंदर जब भारत से लौट गया तब उसके उत्तराधिकारियों ने भारत पर सैन्य और बौद्धिक दोंनों रूपों में आक्रमण कर दिया था तब भारत के दो ब्राह्मण उनके प्रतिकार के लिये उठ खड़े हुए थे, जिनमें एक था-
कट्टर वैदिक धर्मावलंबी और एक बुद्ध का कट्टर अनुयायी-
एक दूसरे के कट्टर विरोधी पर मातृभूमि के सम्मान के लिए दोंनों सन्नद्ध
एक ने अपनी खड्ग की धार पर यूनानियों को तोला और दूसरे ने अपनी बौद्धिक क्षमता से उन्हें नतमस्तक किया जबकि आक्रांता यूनानी उसी का सहधर्मी बौद्ध था।
क्या आज ऐसा है?
आज ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज का नेतृत्व करने वाले कम्युनिस्ट, लिबरल्स, पत्रकार व बुद्धिजीवी उंगलियों पर गिन सकने की संख्या पर होने के बाद भी अपने विखंडनकारी नैरेटिव के स्थापन में सफल हैं क्योंकि जिन पर हिंदुत्व के बौद्धिक नेतृत्व की जिम्मेदारी है, उनमें से अधिकतर त्याग, अध्ययनऔर बलिदान के स्थान पर जन्मनाजातिगतश्रेष्ठता और आरक्षण के कारण अपने ही बंधुओं के विरुद्ध ऊर्जा गंवा रहे हैं।
यही कारण है कि मैं आज की हिंदू एकता को मुस्लिमों से भय पर आधारित कृत्रिम एकता कहता हूँ क्योंकि उसमें समदर्शिता का भाव अनुपस्थित है।
हमें वसुमित्र के खड्ग के साथ नागसेन की मेधा की राष्ट्रभाव से पगी एकता चाहिए न कि मुस्लिमों के भय पर आधारित कपट आधारित एका।

चित्र :- ‘अनसंग हीरोज:#इंदु_से_सिंधु_तक

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