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उद्धव ज्ञान के अहंकार में डूबे

मधुलिका शची

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उद्धव ज्ञान के अहंकार में डूबे हुए चल दिये कि आज वो गोपियों को ब्रम्ह ज्ञान देकर रहेंगे, उनके अंदर का ब्रम्हऋषि अब निग्रहचार्य रूपी आचार्य का रूप लेने लगा था अब वो शुद्ध अशुद्ध सब अलग थलग कर देंगे औऱ ये गोपियाँ जो साकार के मोह में हैं उनके मोह को भंगकर उन्हें निराकार से साक्षात्कार कराएंगे।
मंडन और खंडन नामक तत्वों का संधान करके उद्धव गोपियों के अज्ञान को भेदने निकल पड़े।
उद्धव के सात्विक अहंकार पर ब्रम्ह ठठ्ठा मार कर हँसा और प्रकृति से बोला : तनिक परीक्षा तो लो इस बालक की,
देखें आखिर ज्ञान तत्व का अहंकार किस सीमा तक है ..?
प्रकृति मुस्कुराई और कृष्ण की अन्यतम कलाओं में से एक गोपियों को संकेत में कहा कि हे अनंत ज्योति से निकली प्रकृति की सहचारिणी और ब्रम्ह की अन्यतम कलाओं, एक ज्ञानी आ रहा है उसे बताओ कि वह ब्रम्ह को कितना जानता है।
परम योगिनियाँ लीला करते हुए दौड़ती हुई आयी कि चलो कान्हा आया है , कान्हा ….!
जब उद्धव जी के पास पहुँची तो सभी बोल पड़ी ये तो कोई बहरूपिया लगता है , मेरा कान्हा नहीं..!
अगर कान्हा होता तो उसकी दिव्यता से हम वैसे ही मुग्ध हो जाती जैसे कुमुदनी पर नाचते भँवरे।
गोपियों ने प्रश्न किया उद्धव जी से ‘: कौन हो तुम और किस काज के लिए आये हो ..?
उद्धव अपने ज्ञान के अहंकार में मुस्कुराए फिर उन्होंने परिचय देते हुए कहा कि मैं कृष्ण का भाई हूँ और आप सबको निराकार ब्रम्ह का ज्ञान देने आया हूँ, मैं बताने आया हूँ कि पूजा उसकी करो , मन उसमें लगाओ जो तुम्हारी आत्मा को संसार से मुक्त करेगा।
गोपियों ने उद्धव की तरफ आश्चर्य से देखा फिर बोली ; तुम तो बड़े ज्ञानी जान पड़ते हो मगर ये बताओ कि निराकार ब्रम्ह कौन से देश का वासी है , कहाँ रहता है ..? क्या करता है ..?
क्या वो हमारे कान्हा के जैसे मुरली बजा सकता है जिसको सुनकर मनुष्य पशु पक्षी सब उसकी तरफ दौड़े आते हैं,
क्या तुम्हारा निराकार ब्रम्ह हमारे कान्हा की तरह हमारे साथ मुग्ध करने वाला लास्य नृत्य कर सकता है ..?
उद्धव हँसते हुए बोले ; अरे नहीं, निराकार को करने की कुछ आवश्यकता नहीं, उसकी इच्छा मात्र से सबकुछ हो जाता है।
गोपियाँ इसबार उद्धव पर ठठ्ठा मारकर हँस पड़ी ; इच्छा ..!!!!!
ओह तुम्हारा निराकार ब्रम्ह इच्छा भी करता है , अरे भई बता रहे हो उसका न कोई शरीर है ,न आकार है पर गुण सारे मानवों वाला रखा है ।कैसा निराकार है जो मानवीय गुणों में बंधा है.?
लगता है उद्धव जी तुमको उस निराकार ने ठगा औऱ तुम हमको ठगने चले आये !!!
उद्धव जी समझ नहीं पा रहे थे कि वो उत्तर क्या दें..?
गोपियों के मन वचन में समाए हुए कृष्ण अब उन्हें गोपियों के रूप में विश्वरूप का दर्शन करा रहे थे, उद्धव को ऐसा लगा जैसे
इस सृष्टि के समूचे कण कण में कृष्ण समाए हुए हैं, वही निराकार परमब्रम्ह हैं , वहीं साकार हैं।
उद्धव अपनी निग्रह विद्या को भूलकर समूची सृष्टि में कृष्ण के ही दर्शन करने लगे। उनकी अहंकार नाम की पूँजी लूट चुकी थी, ज्ञान देने की जो उत्कंठा उनके हृदय में सदैव समाई रहती थी वह शांत हो गयी और अब वो ये देखकर चकित हैं कि जिस परमब्रम्ह को मैं ज्ञान उपदेश से पाने का मार्ग बता रहा था उसे इन गोपियों ने तो सहज ही अपने निर्मल मन के भीतर , अपने हृदय में कृष्ण के प्रति प्रेम में खुद को रचा बसाकर प्राप्त कर लिया है ,जिस अवस्था को कई जन्मों तक तपस्या करने के उपरांत भी ऋषि मुनि नहीं प्राप्त कर पाते वह सहज ही कृष्ण से प्रेम करने के कारण इन्हें प्राप्त हो गया …!!!!
ज्ञान का अहंकार टूटा और समर्पण की नैया पर बैठकर उद्धव शांति अशांति के भंवर से पार उतर गए। क्या साकार ..! क्या निराकार .! अब तो उद्धव के हृदय में तो सिर्फ और सिर्फ वही है जो साकार निराकार की भी सीमा से परे है जो सबमें है, जो सबका है ..!
उद्धव का मन अब एकदम से निर्मल शांत स्थिर हो गया है
कोई उपदेश देने की उत्कंठा नहीं है , जो है तो बस प्रेम का आत्मिक योग है जिससे हर क्षण उन्हें ब्रम्ह के दर्शन हो रहें हैं..!

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