एक क्रिश्चियन आंटी ने मुझ पर सहानुभूति जताते हुए कहा है कि “तुम्हें पास्टर बिजेन्दर के पास जाना चाहिए। वो बहुत चमत्कारी हैं, सबको ठीक कर देते हैं। उनका चमत्कार देखना हो तो यूट्यूब पर सिर्फ़ पास्टर बिजेन्दर लिखो आ जाएगा। अपनी आँखों से चमत्कार देखो। लिखो-लिखो, अभी लिखो, जस्ट।” मैंने सर्च किया तो सचमुच! सबसे ऊपर ही था। देखकर मैं सिर्फ़ मुस्कुरा दी, ज़वाब कुछ नहीं दिया। उन्होंने फिर कहा “अब तो तुमने अपनी आँखों से भी देख लिया है, अब तो शक की कोई गुंजाइश नहीं है।” उन्होंने जाते-जाते कई बार कहा “तुम चली जाना, देर मत करना, इसी हफ्ते भी जा सकती हो, तुम पक्का ठीक हो जाओगी।” मैं फिर मुस्कुरा दी।
कुछ दिन बाद वो फिर मिलीं, मिलते ही फिर पूछीं “तुम गई थी?” मैंने कहा “नहीं, मेरे पापा के पास समय नहीं।” उन्होंने कहा “ऐसी बात है तो फिर, चलो मैं ही तुम्हें ले चलती हूँ। मुझे कोई परेशानी नहीं। मैं तुम्हारा इलाज कराके ले आऊँगी। पास्टर बिजेन्दर पंजाबी (शायद! सिख) हैं, लेकिन वो चर्च में बैठते हैं। तुम डरो मत, वो तुम्हारा धर्म परिवर्तन नहीं करेंगे, जब तक तुम्हारी इच्छा न हो।” मैं फिर से मुस्कुरा ही दी।
(आपको क्या लगता है?)
मेरी कामवाली आंटी क्रिश्चियन (आदिवासी) थीं, मेरे घर में सुबह-दोपहर काम करती थीं। इसके बदले उन्हें सैलरी, नाश्ता, लंच मिलता था। इसके साथ ही नये-पुराने ढेर कपड़े, स्वेटर वगैरह और एक पुराना मोबाइल भी। सबकुछ ठीक था, वो अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभा रही थीं बदले में हमलोग उन्हें इज़्ज़त-सम्मान भी दे रहे थे। फिर एक दिन वो आईं, उनसे पूछा गया “कल क्यों नहीं आई थी?” उन्होंने कहा “परसों तुमलोगों ने मुझे कृष्ण जन्माष्टमी का जो प्रसाद दिया था, मैंने खा लिया फिर मैं घर जा रही थी, सड़क पर गिर गई, मेरा हाथ टूट गया।” हमने कहा “ऐसा नहीं है, ये सिर्फ़ एक दुर्घटना मात्र है।” उन्होंने कहा “ऐसा ही है, मैंने ये बात फादर को बताई तो उन्होंने कहा कि “ये सब प्रसाद की वजह से है।” उसके बाद वो बदली सी नज़र आने लगीं। सौ बहाने करके हमारे यहाँ की चाय, नाश्ता मना करने लगीं। फिर हमलोगों ने भी सिवा सैलरी के बाकी चीजें देना बंद कर दी। जल्दी ही वो काम छोड़कर चली गईं।
(आपको क्या लगता है?)
मेरी बिल्डिंग में रहने वाली आंटी को जब हमलोगों ने अपने घर का प्रसाद दिया, उन्होंने प्रेम से लिया, फिर चुपके से छत पर फेंक दिया चिड़ियों के लिए। लेकिन, क्रिसमस पर केक (₹१० का पैकेट) देने मेरे घर आ गईं।
(आपको क्या लगता है?)
कामवाली हों या पड़ोसी, चीनी-चायपत्ती वाले व्यवहार की भावना से प्रसाद भी दे दिया/देते हैं। लेकिन, अगर किसी को पसंद नहीं तो हम ये व्यवहार बंद कर देते हैं।
ये पोस्ट किसी धर्म/सम्प्रदाय विशेष पर नहीं है, ये व्यक्ति विशेष पर लिखी गई है। वो व्यक्ति, जो, जहाँ रहता है, वहाँ, अपने साथ, अपने धर्म, संस्कृति, संस्कार, शिक्षा, संगति और क्षेत्र का परिचायक होता है।
(आपको क्या लगता है?)
डॉली परिहार