किसी भी जाति को मिटाने का सबसे आसान तरीका क्या है?
उनका इतिहास मिटा दो।
‘उनके’ साथ भी यही किया गया।
वे आक्रांत थे, पीड़ित भी और बेघर भी।
संसार को बताया गया कि वे आर्य-द्रविड़ संकर हैं,
फिर कहा गया कि वे बाहर से आकर बसे थे,
फिर उनसे ही कहलवाया गया कि वे सिकन्दर के यूनानी सैनिकों के खून हैं।
पर वे नहीं भूले कि वे किसके वंशज हैं।
वे जानते थे कि उनकी रगो में बह रहे हैं–
यमराज
हाँ, उनका मानना था कि यमराज ही वह शक्ति हैं जिन्होंने सृष्टि को रचा और जीवन व मृत्यु नियंत्रण रखते हैं और वही उनके आदिपूर्वज हैं।
यों तो वह ‘इंद्र’ आदि कई देवताओं को पूजते थे जिनमें से कई देवता जैसे ‘दिसानी’, ‘मोनी’ और ‘गिश’ उनके प्रवासी सदस्यों द्वारा चीन से होकर जापान के शिंतो धर्म के मुख्य देवता भी बने लेकिन उनकी अविचलित श्रद्धा रही ‘यमराज’ में।
‘काल’ में उनकी आस्था ने उन्हें ‘अविनाशी’ बना दिया।
वे सिकंदर से लड़े,
वे अरबों से लड़े,
वे तुर्कों से लड़े,
वे गजनवी से लड़े,
वे चंगेज से लड़े,
वे तैमूर से लड़े,
वे बाबर से लड़े,
वे अब्दाली से लड़े,
वे अब्दुर्रहमान से लड़े।
वे हर उस आक्रांता से लड़े जिसने उनकी भूमि और उनके हिंदू धर्म को छीनना चाहा।
वे लड़े ही नहीं बल्कि हमेशा विजयी भी रहे क्योंकि उनके पहाड़ उनकी आजादी के रखवाले थे।
उनसे भयभीत आक्रांता उन्हें कहते थे —
‘काफिर स्याहपोश’।
इन ‘स्याहपोशों’ ने अपनी जमीन को इन आक्रांताओं का कब्रिस्तान बना दिया।
फिर आया 1895 का मनहूस साल।।
अफगानिस्तान के अमीर अब्दुर्रहमान के पास कोई काम नहीं था तो उसे बैठे-बैठे ‘गाजी’ बनने का ख्याल आया।
ब्रिटिशों के अधीन भारत पर हमला करने की औकात नहीं थी तो उसका ध्यान गया इतिहास पर और उसने ठान लिया कि जो काम गजनवी व तैमूर तक न कर पाए, उसे वह करके दिखायेगा और गाजी उपाधि लेगा।
आधुनिक हथियारों से सज्जित उसकी विशाल सेना ने उनका पूरा क्षेत्र घेरकर, उनका जीनोसाइड किया और बचेखुचों को तलवार की नोंक पर मुसलमान बना लिया।
स्याहपोश व सफेदपोश योद्धाओं का नामोनिशान मिटा दिया गया और उनकी जमीन ‘काफिरिस्तान’ को नया नाम दिया गया–‘नूरिस्तान’ और वे कहलाने लगे नूरिस्तानी।
पर क्या यमराज के पूजक, काल के वंशज हार गये?
नहीं, अभी तक तो नहीं।
संख्या न के बराबर है लेकिन उनमें से कई कबीले अभी भी यमराज व इंद्र में आस्था रखते हैं। ( Raghavendra Vikram जी व राजेश सिंह बाघेल जी के किसी मित्र से किसी नूरिस्तानी हिंदू से बातचीत के अनुसार), उन्हें इंतजार है तो उस पल का जब वे खुले तौर पर अपने प्राचीन हिंदू धर्म में लौट सकेंगे व यमराज का पुनः आह्वान कर सकेंगे।
‘अनंसंग हीरोज’: #इंदु_से_सिंधु_तक पुराणों, वेदों, आर्कियोलॉजी व आधुनिक विज्ञान की सहायता से केवल हमारी ऐतिहासिक जड़ों की तलाश का दस्तावेज ही नहीं है बल्कि हिंदुत्व के लिए लड़ने वाले ऐसे भूले बिसरे योद्धाओं को श्रद्धांजलि भी है।
अफगानिस्तान में हिंदुत्व के लिए संघर्ष करने वाले प्राचीन #गंधर्वों के वंशज, ऐसे कई महानायकों व अपने बिछड़ चुके भाईयों को जानिये।
क्या पता आप ही उन्हें उनका खोया इतिहास बताकर उनकी घर वापसी करा दें!
कौन जाने!