Home राजनीति जाति-सर्वेक्षण का दांव पड़ सकता है उल्टा

जाति-सर्वेक्षण का दांव पड़ सकता है उल्टा

by Swami Vyalok
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मूल सवाल तो यह है कि इसको विकास से कैसे जोड़ेंगे..भाई, 30-32 वर्षों से तो बिहार में सामाजिक न्याय की ही सरकार थी. लालूजी, राबड़ी देवी औऱ फिर नीतीश कुमार हैं. तो, इससे ऐसा क्या कर देंगे कि पिछड़ों का विकास हो जाएगा? ऐसी कौन सी योजना बन जाएगी?

 

सरकार के मुताबिक उन्होंने 500 करोड़ रुपए इस कवायद पर खर्च किए हैं, लेकिन उससे तो पूरे राज्य के अस्पताल सुधारे जा सकते थे, स्कूल बेहतर हो सकते थे, तो यह केवल राजनीतिक कदम है. हालांकि, यह समझ नहीं रहे हैं कि इससे तो उनका राजनैतिक नुकसान ही होगा. जब 1990 में मंडल कमीशन आया था, तब से तो भाजपा बढ़ ही रही है और अभी जब ये सर्वे आया है, तो भी भाजपा के घटने के आसार नहीं हैं.

 

रोहिणी आयोग की रिपोर्ट केंद्र सरकार के पास है और अगर बिहार में आर्थिक सर्वेक्षण हुआ है और अगर यादवों-कुर्मियों का स्टेटस जनरल कास्ट के बराबर पाया गया और सरकार ने उनको भी जनरल में डाल दिया तब ये क्या करेंगे? अति-पिछड़े लोगों को कहा जाएगा कि इनको हटाने से आपकी भागीदारी बढ़ जाएगी. बीजेपी यह काम कर सकती है और अनजाने में इन लोगों से भारी गलती हुई है और यह इनको भारी भी पड़ सकता है.

 

 

जाति एक सच्चाई है, लेकिन बुझती हुई सच्चाई है. उसे जबरन जगाए रखने से फायदा नहीं है. हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना था, उससे नया देश बनता. आज जातिगत सर्वे का कोई उपयोग नहीं है. 1990 से अब तक 32 साल बीत चुके. नयी पीढ़ी आ चुकी है और दुनिया बदल चुकी है.

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