1996 में जब पहली बार इंटरनेट प्रयोग किया था डायल अप कनेक्शन होते थे, मैक्स स्पीड 56 kbps होती थी, पर सामान्यतः 10-12 kbps स्पीड ही आती थी. उस समय लगता था 100 kbps स्पीड इंटरनेट हो जाये लाइफ सेट है. 1999 में यूएसए में यूनिवर्सिटी में जब 5 MBPS इंटरनेट देखा तो आँखें चौंधिया गई. लगा ऐसी स्पीड घर में आ जाये बुढ़ापे तक बस यही मिरेकल होगा.
अभी साउथ कोरिया में रह रहे एक मित्र से बात हो रही थी वह अपना फ्लैट बदल रहे हैं, इंटरनेट बहुत स्लो आता है, 100-125 MBPS ही स्पीड रहती है.
बस 25 साल में 10 kbps से 100 mbps भी स्लो लगने लगा.
टेक्नोलॉजी मनुष्य को कहाँ ले जायेगी, इसका कोई अंत नहीं कोई सोच नहीं सकता. सोसल मीडिया पर सामान्यतः देखता हूँ छोटी छोटी चीजों पर लोगों की भावना आहत हो जाती है, ऐसा हो ही नहीं सकता, किचन में रोटी मेकर आ ही नहीं सकता, मनुष्य चंद्रमा पर पहुँच ही नहीं सकता – लोग उन चीजों पर अचरज व्यक्त करते हैं जो दसकों पहले हो चुकी हैं – क्योंकि विज्ञान पढ़ने में मेहनत लगती है, उसे नकारने में केवल हिन्दी का एक शब्द लगता है – नहीं.
आप में जो लोग बीस पचीस साल के हैं वह लिख लें उनके जीवन काल में मनुष्य चंद्रमा पर कॉलोनी बना लेगा, वर्चुअल रियल्टी में धरती के जैसा ही एक समानांतर वर्ल्ड बना होगा जहां आपका अवतार जीवन जी रहा होगा, मनुष्यों के मस्तिष्क में चिप लगना सामान्य हो जायेगा, फ्लाइंग कार दिखने लगेंगी, पैसा खर्च कर सौ वर्ष की आयु होने लगेगी, लगभग मनुष्य जैसे रोबोट आपको हवाई अड्डे / रोड पर टहलते दिखने लगेंगे, आज जितनी नौकरियाँ आप जानते हैं – 70% समाप्त हो चुकी होंगी और उससे कई गुना ज्यादा नई तरह की नौकरियाँ होंगी जिनका आपने अभी नाम भी सुना होगा, 3D प्रिंटर मनुष्यों के कृत्रिम अंग प्रिंट कर रहा होगा, क्वांटम कंप्यूटर कॉमन होंगे, मनुष्य कई बार मंगल पहुँच चुका होगा.
इतना कम से कम हो चुका होगा, ज्यादा से ज्यादा क्या हो सकता है वह कल्पना से परे है.