मैंने पहले भी कहा था और फिर कह रहा हूँ कि अब मानवता के सम्मुख सबसे बड़ा खतरा कार्पोरेट्स बनने जा रहे हैं।
पहले नारायणमूर्ति ने ‘उपदेश’ दिया कि युवाओं को हफ्ते में #सत्तर_घंटे काम करना चाहिए यानि दस घंटे प्रतिदिन, हफ्ते भर, बिना छुट्टी के।
और अभी-अभी इजरायल द्वारा गाजा पट्टी में इंटरनैट सेवा बंद करने के बाद ऐलोन मस्क ने खुलेआम एलान कर दिया है कि वह गाजापट्टी में पीड़ित(?) मुस्लिमों को स्टारलिंक उपलब्ध करा सकते हैं।
यह घोषणा मेरी उस पूर्व धारणा को पुष्ट करती है कि वैश्विक यहूदी समुदाय दो हिस्सों में बंट गया है।
एक समूह शुद्धतावादी यहूदियों का है जिसका नेतृत्व इजरायल कर रहा है जबकि दूसरा समूह ‘अपने कारपोरेट सत्ता स्थापित करने को संकल्पित मिश्रित रक्त वाले यहूदियों का है जो वस्तुतः वैश्विक कारपोरेट का नेतृत्व कर रहे हैं।
यह वैश्विक कार्पोरेट पूरे विश्व का नियंत्रण पाने को लालायित है।
अगर आपने पिछले आठ दशकों का राजनैतिक विश्लेषण किया हो तो अवश्य पाया होगा कि संसार में जहां भी प्रभावी मुस्लिम आबादी रही वहां इस्लाम के जरिये अशांति व युद्ध उत्पन्न किया ताकि न केवल हथियारों की बिक्री हो बल्कि सरकारों को अस्थिर कर जनता को ‘कारपोरेट डिक्टेटरशिप’ के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जा सके और इसीलिये उन्होंने इस्लाम को अपना पहला हथियार बनाया था और अभी भी बनाये हुए हैं।
यही कारण है कि मुस्लिमों के किसी भी कुकृत्य को छिपा दिया जाता है और गैरमुस्लिमों पर उन्हें सदैव वरीयता दी जाती है–सोशल मीडिया से लेकर राजनैतिक शरण तक।
इस कार्य में उन्होंने ढाल के रूप में ‘खरीदा’ वामपंथी विचारकों के कार्यक्षेत्र अर्थात साहित्य, कला व सिनेमा को।
इससे कॉकटेल से जो ‘त्रिमुखी व्यूह’ बना उसी का परिणाम था कि हिंदू जैसी स्वतंत्र चिंतनशील जाति का न केवल ‘बधियाकरण’ किया गया बल्कि उसमें ‘जातिश्रेष्ठता’ का जहर बोकर उसे सामाजिक तौर पर खंड खंड कर दिया गया।
अब कारपोरेट की एक जेब में ‘इस्लामिक आतंकवाद’ और दूसरी जेब में ‘वामपंथी सोशल एनार्किस्ट’ थे जिन्हें वे आज तक प्रयोग कर रहे हैं।
अब केवल राजनैतिक तंत्र बाकी बचा था।
प्रारंभ में कारपोरेट राजनैतिक तंत्र की छाया में चुपचाप ‘मैटामोरफॉसिस’ करता रहा और अब वह कायांतरित होकर ‘कोकून’ से बाहर अपने असली दानवीय स्वरूप में बाहर आ रहा है।
अब राजनैतिक तंत्र कारपोरेट का गुलाम हो चुका है क्योंकि अब उसके पास सबसे खतरनाक हथियार है–‘तकनीक!’
एलोन मस्क का इजरायल जैसी शक्ति के युद्ध में हस्तक्षेप करने का अर्थ है कि वैश्विक कारपोरेट अपने पंख तौल रहा है।
आपको दोंनों घटनाओं में तारतम्य नजर नहीं आ रहा होगा लेकिन मुझे दिख रहा है।
नारायणमूर्ति के रूप में कारपोरेट अपनी इच्छा व नीति उद्घोषणा कर रहा है कि आने वाले समय में जनता उनकी बंधुआ मजदूर होगी और युवाओं की स्वतंत्र व विद्रोही चेतना मौलिक न रहकर कारपोरेट की मानसिक गुलाम बनेगी क्योंकि वह सेलरी, पैकेज, इन्क्रीमेंट, लोन, किश्त आदि शब्दों के अलावा कुछ सोच ही न पाएगा और उसके लिए प्रतिदिन दस नहीं बारह घंटे से भी अधिक काम करेगा।
हिटलर ने जिस खतरे को बीसवीं शताब्दी में इंगित किया था महामात्य कौटिल्य ने उसे ढाई हजार साल पहले ही रेखांकित कर दिया था–“राजा को व्यापारी वर्ग पर सदैव नियंत्रण रखना चाहिए वरना वे जनता का शोषण करेंगे।”
हिटलर भले ही क्रूर था लेकिन उसने कारपोरेट की फितरत व महत्वाकांक्षाओं को भली तरह से जान लिया था और उसने मीनकाम्फ में लिखा,” वह दिन मानवता के भविष्य का अंधकारमय दिन होगा जब कारपोरेट राजनैतिक तंत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लेंगे।”
ऐसा लगता है वह अंधकारमय दिन जल्द आने ही वाला है।
यह धरती जल्दी ही ‘जॉम्बीज’ से भर जाने वाली है।
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Note:- इस पोस्ट की रीच का आइडिया मुझे ऑलरेडी है क्योंकि इसमें कोई ‘मसाला’ नहीं है और न इसे समझने की रुचि व बुद्धि है।