पूर्व में भी और आज भी, कुछ लोगों का मानना है कि AI से हमारे महानायकों का चित्रण शास्त्र विरुद्ध है।
ऐसे तथाकथित शास्त्रवादी कठमुल्लावाद और शास्त्रों की ओट में धर्म की मठाधीशी थोपने को अब कोई भी स्वीकार नहीं करेगा।
आप कहते हैं कि शास्त्र सर्वोपरि हैं।
लेकिन कोई बताएगा कि शास्त्रों में कौन कौन से ग्रंथ शामिल है और कौन से नहीं?
सच्चाई तो यह है कि शास्त्रों के नाम पर अपनी मनमानी प्रक्षिप्त व्याख्याएं ठूंस दी गईं ताकि मठाधीशों का और चुनिंदा लोगों का हलवा पूरी चलता रहे।
इन तथाकथित शास्त्रवादियों से मेरा स्पष्ट पूछना है कि—
अगर वेदत्रयी पर्याप्त थे तो अथर्ववेद को वेद चतुष्टय के रूप में शामिल क्यों किया गया?
अगर वेद चतुष्टय पर्याप्त शास्त्र थे तो ब्राह्मण ग्रंथ क्यों लिखे गए?
अगर ब्राह्मण शास्त्र थे तो आरण्यक व उपनिषद क्यों रचे गए।
अगर आरण्यक, उपनिषद शास्त्र थे तो पुराण व स्मृतियां क्यों लिखी गईं।
अगर उपरोक्त ग्रंथ शास्त्र थे तो जन्मनाजातिवाद को जन्म देने वाले सूत्र ग्रंथ क्यों रचे गए?
फिर उनकी व्याख्याएं क्यों लिखी गईं??
और टीकाएँ???
फिर इन्हीं तथाकथित शास्त्रों के नाम पर सड़े हुए मठाधीश दलितों व ओबीसी को केवल मंदिर की मात्र ध्वजा व शिखर दर्शन का अधिकारी मानते हैं।
सोचकर कांप उठता हूँ कि आज के युग में भी जन्मनाजातिगतश्रेष्ठता व दलितों व ओबीसी को मंदिर प्रवेश को शास्त्रविरुद्ध घोषित करने वाले इन पाखंडियों व इनके घृणित भक्तों के हाथ में फिर सत्ता पहुंच गई तो क्या होगा हिंदुत्व जैसी उदात्त विचारस्वतंत्रतावादी, मानवतावादी विचारधारा का?
नहीं, कोई व्याख्या, कोई शास्त्र मानव की विचार स्वतंत्रता से ऊपर नहीं।
मानव की चेतना सर्वोपरि है और जो शास्त्र किसी की निर्दोष निष्कलुष भावना के चित्रण को निषेध घोषित करने का दुःसाहस करता है, उसको फाड़कर फैंक देना चाहिए।
मानव की विचार स्वतंत्रता का दम घोंटने वाला शास्त्र हिंदू शास्त्र और मानने वाला हिंदू हो ही नहीं सकता। अगर है भी तो वह नाम भर से है, विचार और कृत्य से वह मुसलमान है।

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