2012 मे लखनऊ शहर मे समाजवादी पार्टी का कई सीटें जीतना बहुत shocking था। वजह थी कि लखनऊ शहर मे शहरी जनता जातिगत आधार पर वोट नहीं देती, गुंडागर्दी आदि से विशेष नफरत करती है तो सपा से तो ज्यादातर लोग खिलाफ थे। पर वजह थी शहरी क्षेत्रों मे कुछ मुस्लिम बाहुल्य, कुछ सपा के अच्छे प्रत्याशी और शहर + ग्रामीण क्षेत्र मे प्रत्याशियों का बढ़िया जातीय संतुलन।
फिर अखिलेश भैय्या आए और वह अकेले ही लखनऊ से सपा के विध्वंस पर जुट गए।
लखनऊ शहर मे सपाई अभिषेक मिश्र को आम जनता पसंद करते हैं, वजह थी सौम्य हैं, सज्जन हैं, पढे लिखे हैं, कॉर्पोरेट लाइफ से आए हैं। अखिलेश भैय्या ने इस बार लखनऊ उत्तर की उनकी जीती हुई सीट दे दी पूजा शुक्ल को।
फिर जब लगा कि अभिषेक मिश्र सपा छोड़ भाजपा मे चले जाएंगे तो उन्हें भेज दिया शहर ग्रामीण मिक्स सरोजिनी नगर।
सरोजिनी नगर के ग्रामीण क्षेत्र मे सपा के दो मजबूत कद्दावर जमीनी नेता थे शारदा शुक्ल और शंकरी सिंह। कोई भी सरकार हो, इन नेताओं का कद बरकरार रहा।
परसों शारदा प्रताप शुक्ल भाजपा मे आ गए। अब शंकरी सिंह भी अंततः भाजपा join कर रहे हैं। खास बात यह कि यह नेता इस लिए सपा नहीं छोड़े कि टिकट नहीं मिला, बल्कि इस लिए छोड़े कि टिकट न देने के बाद भी अखिलेश ने इन से बात तक न की, इन्होंने कोशिश भी की तो भी अखिलेश ने बात तक करने से इनकार कर दिया। कोई कब तक बेइज्जती करवाएगा।
उधर बसपा ने जलीस खान को प्रत्याशी बनाया है। पता नहीं जलीश भाई का बिन्नस क्या है, पर लगता है कि उनका व्यवसाय रुपये की प्रिंटिंग प्रेस का है। बिल्कुल पानी की तरह रुपया बहा रहे हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि इस सीट पर बसपा अब सेकंड आए।
वर्तमान सीनेरियों मे सरोजनी नगर सीट पर सपा अपनी जमानत बचा ले जाए, यही चमत्कार होगा। निःसंदेह अभिषेक मिश्र जी राजनीति के चतुर खिलाड़ी नहीं निकले, इससे बेहतर वह भाजपा मे ही आ गए होते।
बाकी अखिलेश भैय्या को थैंक यू रहेगा कम से कम लखनऊ शहर सपा मुक्त करने के लिए।