दाशराज्ञ के उत्तरार्ध में हैहय-भृगु संघर्ष के बाद तीन आर्य जातियों ने सप्तसिंधु से पश्चिम की ओर पलायन किया- पर्शु, पृथु और आभीर।
पर्शु और पृथु तो रम गये नये वातावरण में पर आभीरों को टिकना पसंद नहीं था हेरात के पहाड़ों में क्योंकि नियति ने उनका भविष्य कहीं और तय किया था।
आभीर!
लंबे चौड़े, बलिष्ठ आर्य!
यात्रा ही उनका जीवन था और गायें व घोड़े उनके प्राण थे।
उनकी दुर्दमनीयता के कारण अनार्य तो छोड़िए स्वयं आर्य गण भी उन्हें नहीं छेड़ते थे।
इन्हीं आभीरों की एक शाखा की मित्रता हुई प्रसिद्ध पंचजनों से-
अनु, यदु, द्रुह्यु, तुर्वसु व पुरुओं’ से।
पर इन सबमें आभीरों को संग भाया यदुओं का और वे उनके साथ चले आये और वे बने यदुओं के दायाद बांधव।
आर्यों की इन दो जातियों के बंधुत्व में नियति ने लिखा एक सौभाग्य– बाबा नंद, जिनकी गोद में खेलने वाले थे साक्षात श्रीकृष्ण।
लेकिन इस महान योद्धा आर्य जाति की एक विडंबना शुरू से ही रही है और अब तक है।
यह विडंबना है ‘अन्तर्विग्रह’-
एक ओर नंद बाबा जैसे पवित्र अहीर योद्धा जिन्होंने भारत ही नहीं संसार को अन्यतम विभूति प्रदान की– साक्षात श्रीकृष्ण,
वहीं दूसरी ओर थे पंजाब-हरियाणा में उन्हीं कृष्ण के वृष्णि वंश को लूटने वाले आभीर लुटेरे।
एक ओर थे कृष्ण से प्रशिक्षित होकर नारायणी सेना में परिवर्तित होने वाले धर्मयोद्धा आभीर तो वहीं सरस्वती के तट पर नागों के तीर्थों का विध्वंस करने वाले बर्बर आभीर।
एक ओर थे अश्वमेधपराक्रम वीर पुरुषदत्त आभीर तो वहीं अलाउद्दीन के सामने सिर झुकाने वाला रामचंद्र।
एक ओर हरियाणे में मु स्लिम सुल्तानों की नाक के नीचे हिंदू स्वतंत्रता का झंडा बुलंद रखने वाले आभीरों के वंशज अहीर योद्धा तो उन्हीं अहीरों में पैदा हुए मु स्लिमों के तलवे चाटने और रामभक्तों पर गोलियाँ चलाने वाले मुलायम सिंह और जिन्ना को अपना नायक मानने वाला अखिलेश।
आज अहीर समुदाय फिर से उसी दोराहे पर खड़ा है।
एक ओर है बृहत हिंदू समुदाय के उसके रक्तबाँधव और दूसरी ओर है मु स्लिमों का झंडा उठाये हुये अखिलेश यादव।
एक ओर है भाजपा में घुसकर निश्चित सत्ता में न्यायोचित भागीदारी और दूसरी ओर है हिन्दूविद्वेषी मु स्लिमों के ‘ग़जवा ए हिंद’ में सहयोगी बनने का कलंक।
प्राचीन आर्य आभीर योद्धाओं,
अहीर बंधुओ,
जिन अहीरों के ह्रदय में कृष्ण अभी भी विराजते हैं उन्होंने तो कृष्ण का पक्ष, भगवा पक्ष चुन लिया है अब आप सोचिए कि में आप कहाँ खड़े हैं?
कृष्णभक्तों के पक्ष में या कृष्णभक्तों के विरोध में?

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