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सुतत नाहीं हईं अम्मा , सोचत हईं

दयानंद पांडेय

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मेरी पसंद का निर्मल आकाश
मेरी पसंद का आकाश बहुत बड़ा नहीं है । लेकिन है अनंत । निर्मल और चांदनी से भरपूर है यह आकाश । मेरी पसंद में लिखना और सोना , सोना और लिखना एक दूसरे से गुत्थमगुत्था रहते हैं । यही दोनों मेरे पसंदीदा हैं । सोना ताज़गी देता है और लिखना जीवन । यह दोनों मिल कर मुझे शांति , सुख और संतुष्टि से भर देते हैं । यही दोनों ऐसे काम हैं जिन्हें सब कुछ छोड़-छाड़ कर मैं करता हूं। एक बार भोजन छोड़ सकता हूं , पर सोना नहीं । दस बार नौकरी छोड़ सकता हूं पर लिखना नहीं । सोने के लिए मैं बचपन से बदनाम हूं । खास कर दिन में भी सोना मुझे बहुत प्रिय है । कभी-कभार को छोड़ कर जैसे भी हो अवसर निकाल लेता हूं । एक समय तो मेरे पिता जी मेरे सोने को ले कर इतना तबाह थे कि पूछिए मत । टीन एज था । पूरा घर परेशान रहता था मेरे सोने को ले कर । दिन में घर में सोना एलाऊ नहीं था । तो मैं पड़ोसियों के घर जा कर सो जाता था । पिता जी पड़ोसियों के यहां पहुंच जाते मुझे खोजते-खोजते । पिता जी के क्रोध से आजिज़ पड़ोसी मुझे देखते ही कहते , न यहां मत सोना । तुम्हारे पिता जी आते होंगे । मैं कभी मंदिर में , कभी पेड़ के नीचे सो जाता । पिता जी खोजते ही रह जाते । पहले सुबह चार बजे घर में जगा दिया जाता था । पढ़ने के लिए । बाद के दिनों में सुबह देर तक सोने लगा । पिता जी समझाते रहते ,’ सुबह जल्दी उठ कर देखो , बहुत अच्छा लगेगा ।’ एक बार मैं ने कह दिया , ‘ एक बार आप सुबह देर तक सो कर देखिए , स्वर्ग जैसा आनंद मिलेगा !’ पिता जी ने माथा पीट लिया । दफ़्तर में भी झपकी मारते देख लोग फ़ोटो खींचने लगे । लेकिन मेरी झपकी बदस्तूर जारी है । कहीं भी जाता हूं , सोने की जगह और समय पहले खोजता हूं ।विद्यार्थी जीवन में निरंतर बाईस घंटे सोने का रिकार्ड भी है मेरे पास । परिवारीजन , ख़ास कर पिता जी को यह मेरा रिकार्ड आज तक याद है । अभी चंद रोज पहले ही पिता जी , मेरे टीन एज ख़त्म करने की ओर अग्रसर बेटे से , इस बाईस घंटे सोने के रिकार्ड का ज़िक्र कर रहे थे । जाने तारीफ़ के भाव में या चिढ़ के भाव में । यह बात बेटा भी नहीं समझ पाया । ऐसा उस ने बताया ।
यह किसी वैज्ञानिक शोध का निष्कर्ष नहीं है। ऐसा मैं महसूस करता हूं कि सोने से ताज़गी तो मिलती ही है , ऊर्जा भी मिलती है । थकान दूर होती है । इस सब से भी ज़्यादा सोचने की क्षमता बढ़ जाती है । क्या और कैसे लिखना है सोने के समय , सोते-सोते भी इमैजिन करता रहता हूं । टीन एज था , कविताएं लिखता था । गांव जाता तो अम्मा टोकती , ‘ बाबू का करत हव । केतना सुतब । उठ । ‘ मुंह तक चद्दर ओढ़े मैं कहता , ‘ सुतत नाहीं हईं अम्मा , सोचत हईं !’ एक निर्मल सच यह भी है । कई बार यह भी होता है कि सोते-सोते अचानक कोई बिंदु मिल जाता है , कोई कथा पक जाती है , कोई कविता सूझ जाती है । कोशिश करता हूं कि उठ कर तुरंत उसे दर्ज करूं । लिख दूं । अकसर ऐसा होता है । आधी रात जाग जाता हूं। सुबह तक लिखता रह जाता हूं। कई बार इस के अविस्मरणीय नतीज़े मिले हैं । कई बार आलसवश नहीं उठ पाया । और दूसरे दिन बात भूल गया । सिरे से भूल गया । बहुत सोचने पर भी , बहुत ज़ोर देने पर भी याद नहीं आया । सारा चिंतन स्वाहा हो गया । वह अविष्कार फ़िल्म में कपिल कुमार का लिखा कानू रॉय के संगीत में मन्ना डे का गाया एक गाना है न , हंसने की चाह ने इतना मुझे रुलाया है / कोई हमदर्द नहीं, दर्द मेरा साया है ! तो मैं कहता हूं , लिखने की चाह ने इतना मुझे रुलाया है ! मीरा के गीतों को जैसे कोई विष सताता था , वैसे ही मुझे यह रचनाएं लिखने के लिए सताती हैं , इन की विवशताएं मुझे सताती हैं , रुलाती हैं , लिखने ख़ातिर। जैसे दबोच लेती हैं मुझे । अवश हो जाता हूं । वह लिखना जिस से एक पैसे की प्राप्ति नहीं होती । दो पैसे जाते ही हैं । उस लिखने में लगा रहता हूं। लोग हर काम पैसा कमाने के लिए करते रहते हैं । और ऐसे दौर में मैं लिखने के काम में लगा रहता हूं। सोने के नुकसान भी मैं ने ख़ूब उठाए हैं । बारंबार। कई बार लगता है कि अगर सोना मेरा कम होता , आलस मेरा कम होता तो जितना लिखा है , इस का कम से कम चारगुना और लिखा होता । नौकरी में भी दसगुना क्या सौगुना उछाल मिला होता । तो इस सोने ने मुझे सोना तो दिया है , मेरा हीरा मुझ से छीन लिया है , यह भी एक निर्मम सच है ।
लेकिन जीवन में जितना तनाव है , जो जद्दोजहद है , इस सब से , तमाम-तमाम मुश्किलों से सोने ने बहुत उबारा है । लोगों के पास पैसे बहुत हैं , संपत्ति बहुत है । ऐश्वर्य बहुत है । मेरे पास यह सब कुछ नहीं है । पर मेरे पास नींद बहुत है । इतनी नींद न होती मेरे पास तो निश्चित ही मैं ब्लड प्रेसर का मरीज होता । कई बार लगता है कि सोना है तो लिखना है। भले कम है। लेकिन है तो सही । मेरे बहुत से मित्र लिखना-पढ़ना भूल गए । तीन-तिकड़म में फंस गए । गंजे हो गए । बीमार-बीमार रहने लगे । चिड़चिड़े रहने लगे । लेकिन मैं गंजा नहीं हुआ । चिड़चिड़ा नहीं हुआ। तीन-तिकड़म में नहीं फंसा । दो-दो बार साक्षात मौत से लड़ कर लौटने के बावजूद बीमार-बीमार घूमने के बजाय मस्त-मस्त घूमता हूं । मस्त बहारों का आशिक बन कर । लिखता रहता हूं इसी मस्ती के साथ । मेरे आदरणीय पाठक मित्र अपने कंधे पर मुझे बिठाए घूमते हैं , अपना असीम पाठकीय प्यार मुझ पर लुटाते रहते हैं , न्यौछावर रहते हैं मेरे लिखे पर । चाहता हूं कि मेरे भगवान मेरे लिए यही चार चीज़ बनाए रखें , सोना , लिखना , पाठक मित्रों का प्यार और स्वास्थ्य । मैं शांति , सुख और संतुष्टि से सर्वदा भरपूर रहूंगा।
भोजन में भी कुछ चीज़ें बेहद पसंद हैं । रोटी , चावल, दाल , सब्जी तो रूटीन में हैं ही । लेकिन लिट्टी चोखा और चिकन भी मुझे बहुत पसंद हैं । दशहरी आम , भुट्टा भी बहुत पसंद है । मौसम में जब तक यह दोनों रहते हैं , रोज ही मुझ से मिलते हैं । हरे मटर की घुघुरी का भी यही हाल है । कटहली और भिंडी की सब्जी के क्या कहने । मुझे अच्छे और सलीक़े से कपड़ा पहनना भी अपने जितना ही प्रिय है। धोती-कुरता से लगायत सूट-बूट-टाई तक। लेकिन आत्म-मुग्ध नहीं हूं मैं । अच्छी औरतों को देखना , अच्छा संगीत सुनना और पहाड़ पर घूमना भी मेरा पसंदीदा काम है। इन दिनों की फ़ेहरिश्त में एक नया शग़ल और जुड़ा है जीवन में । फ़ेसबुक पर गश्त करना । अच्छी फ़िल्मों का भी मैं आशिक़ हूं। प्रेम और सेक्स के बिना जीवन जीना भी मुझे बहुत मुश्किल जीवन लगता है । सोने और लिखने की तरह प्रेम और सेक्स भी मेरे जीवन के प्रिय और अनिवार्य विषय हैं । उतने ही महत्वपूर्ण । हजारी प्रसाद द्विवेदी , अज्ञेय , मोहन राकेश , निर्मल वर्मा और मनोहर श्याम जोशी की भाषा पर मैं मोहित हूं। सुंदर और सुलझी हुई स्त्रियां , सुंदर संगीत , ख़ूब लिखना, ख़ूब सोना , मेरा परिवार और मेरे प्यारे-प्यारे असंख्य पाठक मित्र मेरे जीवन को सर्वदा सुंदर और सानंद बनाए रखते हैं । बस और कुछ नहीं चाहिए । मेरी पसंद का निर्मल आकाश बस इतना ही है , चांदनी में नहाया हुआ ।

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