एक लाख औरतें सड़क पे उतरी हिज़ाब के विरोध में। क्योंकि नवीन बनी इस्लामिक गवर्नमेंट ने हिजाब कंपल्सरी कर दिया था।
उस वक्त तक के अन्य इस्लामिक मुल्कों पे नज़र दौड़ाइएगा तो पाइयेगा कि लगभग सब जगह ऐसे ही नज़ारे होते थे। बिना हिजाब के। फिर ईरान ने ये रास्ता दिखाया।
अब हमें समझ में नहीं आ रहा कि 1979 के पहले जो मोहतरमाएं थी वो कौन सा इस्लाम के उसूलों को मानती थी ?? या वे कौन सा कुफ्र का काम कर रही थी ?? या उस वक्त तक कि जितनी मोहतरमाएं थी वे बिना हिज़ाब के उसूलों का उल्लंघन करने के जुर्म में जहन्नम के भागीदार बनी होंगी या नहीं होंगी ??
आप अपने भी गाँव ग्राम में देखिए 25-30 पहले एको बुर्का,हिज़ाब वाली नहीं दिखती थी। सबके कस्टम लगभग हमलोग जैसे ही होते थे। पहचानाना मुश्किल होता था कि ये कोई ‘मोहतरमा’ है जब तक कि हम उन्हें न जानते हो या वे अपना नाम न बताती थी।
फिर आज ये इनका अधिकार हो गया !!
आज इस अधिकार के लिए ये सड़कों पे आ गई… वहीं
42 साल पहले इससे भी बड़ी मात्रा में सड़कों पे थी इसके विरुद्ध में। और अभी भी वहाँ बहुत औरतें इनके विरुद्ध में है जो आये दिन प्रोटेस्ट करती रहती है।
भाई गज्जब है इनका इकोसिस्टम।