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कुंठित मानसिकता

विवेक उमराव

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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लगभग 25 साल की आयु का एक युवा जिसको हम लोग शार्ट में PKS (नाम के प्रथम अक्षरों को जोड़कर) कहते हैं। भारत सरकार के संस्थान से जब बीटेक कर रहा था तब हम लोगों के घर आता था, हम लोगों के साथ घर के कामकाज में हाथ तक बटाता था, जबकि आपस में कोई पारिवारिक रिश्तेदारी नहीं।

भारत में एक बड़ी कंपनी जिसकी सालाना सेल्स-टर्नओवर 5000 करोड़ रुपए (पांच हजार करोड़) से अधिक है, का पूरे देश का सेल्स मैनेजर हो गया है, जबकि आयु लगभग 25 साल है। विनम्रता से बात करता है, जब मैं मौज लेने के लिए कहता हूं कि भई भूल न जाना, छोटे आदमी को। जवाब आता है कि आप तो एंट्रेप्रेन्योर हैं, आप जीरो से करोड़ों का टर्नओवर खड़ा करते हैं, हम लोग तो खड़े हुए को चलाए रखने के लिए नौकरी करते हैं।

वहीं एक दूसरा बंदा है। एक बहुत ही छोटी सी कंपनी (एक मिडिल स्तर की कंपनी की आग्जिलरी कंपनी) में काम करते हैं, प्रौढ़ावस्था में हैं पांच-दस साल में रिटायर होने की आयु आ जाएगी। इन महोदय की कंपनी की सालाना सेल्स-टर्नओवर 100 करोड़ (सौ करोड़) रुपए से भी कम है, ऊपर से कंपनी की नेट वैल्यू लगातार कम होती जा रही है। 15-20 साल में घिस-घिस कर जिस स्तर पर पहुंच पाए हैं, कि रिटायरमेंट तक भी इस जैसी बहुत छोटी सी कंपनी के भी उस स्तर के भी अधिकारी बन पाएं तो बड़ी बात, जिस स्तर से एक बड़ी कंपनी में 25 साल का युवा अपना शानदार कैरियर शुरू कर रहा है। लेकिन इन महोदय की बकैती ऐसी कि कहने क्या, यह भी नहीं ध्यान रखते हैं कि सामने वाले का स्तर क्या है, उसके जीवन की उपलब्धियां क्या हैं, लेकिन जमकर बकैती ठेलते रहते हैं वह भी फूहड़ता के साथ।

अपने समाज में एक बहुत बड़ी ऋणात्मकता यह है कि लोग अपने परिवार के लोगों, अपने रिश्तेदारों, अपने बचपन के मित्रों इत्यादि से बहुत ईर्ष्या रखते हैं। सोच का स्तर यह तक नहीं होता कि दिल की गहराईयों से प्रशंसा कर सकें, प्रशंसा न कर सकें तो अपने मन के अंदर ही दूसरे के लिए खुशी महसूस कर सकें। विचारशीलता की बजाय, पूरा जोर लगाकर ईर्ष्या में ही लिप्त रहते हैं। भयंकर कुंठा का शिकार।

इतना भी नहीं सोच पाते हैं कि भई जब पूरा जीवन लगाकर खुद अपने जीवन में कुछ खास नहीं उखाड़ पाए तो दूसरे जो अपनी मेहनत व योग्यता व कर्मठता से अपनी पसंद का जीवन जी रहे हैं, मुकाम हासिल किए हैं। तो उनका क्या उखाड़ लेंगे। अधिक से अधिक गाली गलौच कर सकते हैं, फूहड़ता कर सकते हैं, अपने ही सोच के स्तर के जैसे ही लोगों के बीच लंपट वाहवाही लूट सकते हैं। इससे अधिक और क्या।

जबकि मेरा सोचना रहता है कि जो गलतियां जीवन भर करते आए हैं। जिन मूर्खताओं में, जिन फूहड़ताओं में अपने जीवन की ऊर्जा को बर्बाद करते आए हैं। वही क्या जीवन-पर्यंत करते रहेंगे। जीवन को समझदारी से जीने की कोशिश करना बहुत बड़ी बात होती है। बिना ईर्ष्या व खुन्नस के रिश्तों को संवेदनशीलता, प्यार मोहब्बत के साथ जीना बड़ी बात होती है। जिंदगी में थपेड़े खाकर भी यदि समझदारी की बजाय केवल कुंठा ही हाथ लगी, तो ऐसे अनुभव का कोई मोल नहीं, कोई औचित्य नहीं।
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