आज शिक्षक दिवस पर शिक्षक और शिक्षार्थी के विषय में कहा गया एक प्राचीन आचार्य का कथन याद आ गया।
चौदहवीं शताब्दी का यह महान् शिक्षक है रसाचार्य ढुण्ढुक नाथ, जो सिद्ध कालनाथ के शिष्य थे और भारतीय रस विद्या पर जिन्होंने एक अद्भुत ग्रंथ “रसेंद्र चिंतामणि” लिखा।
“अध्यापयन्ति यदि दर्शयितुं क्षमन्ते
सूतेन्द्रकर्म गुरुव: गुरुवस्त एव।
शिष्यास्त एव रचयंति गुरो: पुरो ये शेषास्तदुभयाभिनयम्भजन्ते।”
रसायन विद्या के संबंध में ढुण्ढुक नाथ कहते हैं कि वास्तविक शिक्षक वही है जो न केवल पढ़ाए अपितु उन सब बातों को करके दिखाने की क्षमता भी रखता हो। छात्रों को जैसा पढ़ा रहा है वैसा ही प्रायोगिक करके भी दिखाता हो। और सच्चा शिष्य भी वही है जो, अध्यापक ने जैसा सिखाया है, वैसा ही करके दिखा देने में समर्थ हो।
अन्यथा गुरुजी पढ़ाने का और चेलाजी पढ़ने का अभिनय कर रहे हैं। पढ़ने–पढ़ाने के नाम पर दोनों नौटंकी कर रहे होते हैं।
केवल पढ़ाने से काम नहीं चलता, सिखाना भी जरुरी हैँ।