क़ुतबुद्दीन बख्तिआर काकी की दरगाह मेहरौली दिल्ली में है जहां जाना बड़े सबब का काम माना जाता है। किर्गिश्तान में जन्मे ख्वाजा को सूफी की ट्रेनिंग मोइदुद्दीन चिश्ती ने फारस में दी और दोनों एक साथ कुफ्र मिटाने हिन्दुस्थान आये। खुद अजमेर चले गए और काकी को दिल्ली में टिका दिया हालाँकि काकी की बड़ी इच्छा थी अजमेर जाने की। लेकिन इलाके का बॅटवारा हो चूका था। काकी का नाम काकी इसलिए पड़ा था क्यूंकि जनाब को जन्नत से केक अथवा रोटी प्राप्त हुई । एक वर्शन और है -इनकी गरीब बीवी को रोज रोटी उधार लानी पड़ती थी तो इन्होने अपनी चटाई के नीचे से रोटी निकालने की करामात दिखाई।
हिन्दुस्थान में गंडे तावीज़ के जनक यही महाशय है – इनके चेले शेख फरीद ने इस पर सवाल भी उठाया लेकिन तावीज़ का काम सबसे पहले इन्होने ही शुरू किया था। जो नार्थ इंडिया में मजलिस आप देखते है – वो सब भी इन सूफी “संत” की कारस्तानी है। समां – झूम झूम कर मदहोश होकर गाना वाले ट्रेंड से बड़े प्रवाभित थे – इतने कि कभी कभी मदहोशी के दौरे पड़ते और बेहोश हो जाते थे। दुनिया जहाँ के बालको को गंडे तावीज़ दिए लेकिन खुद के दो बच्चे बचपन ही गुजर गए – उनपर तावीज़ का असर ना हुआ।
क़ुतबुद्दीन बख्तिआर का काल कुतुबद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश के दौरान का है। कई लोगो को लगता है क़ुतुब मीनार ऐबक के नाम पर बनी – लेकिन सच्चाई क्या है ? ये बात सर्व विदित है क़ुतुब परिसर २७ मंदिरो को तोड़ कर बनाया गया है – क़ुतुब मीनार का काम ऐबक ने शुरू करवाया -रेमॉडलिंग का। लेकिन एक मंज़िल बनी थी जब ऐबक खुदा को प्यारा हुआ। ऐबक का गुलाम इल्तुतमिश जिसने ऐबक की लड़की से निकाह किया वो काकी का मुरीद था । उसने क़ुतुब मीनार का काम आगे बढ़ाया – ये बड़ी संभावना है क़ुतुब मीनार का नाम क़ुतबुद्दीन बख़ितयार काकी के नाम पर हो – आखिर हर मजहबी फतह के पीछे किसी न किसी सूफी का हाथ जरूर रहा है।
एक दफे इल्तुतमिश काकी से मिलने गया तो देखा हज़रत बहुत गन्दी हालत में बैठे है – पूछने पर बताया नहाने धोने के लिए पानी नहीं है । तो इल्तुतमिश ने फटाफट गंधक की बावली बनवा डाली। जब काकी का मदहोशी वाले दौरे के समय इन्तेकाल हुआ तो इल्तुतमिश ने ही नमाज़ ऐ जनाज़ा पढ़ा। काकी को सब सुल्तान , बादशाह आदि ने बड़ी इज्जत बक्शी। मजेदार बात – ये ख्वाजा दूर देश से इधर केवल कुफ्र दूर करने आये – विदेशी लूटेरो ने इज्जत बक्शी , दरगाह आदि बनवायी और उसके बाद बहुसंख्यक जनता इन्ही गंडे ताबीज़ पर मर मिटी।
क़ुतबुद्दीन बख्तिआर काकी की दरगाह का काम , रिपेयर , जियारत आदि का काम अल्लाउद्दीन खिलजी , तुगलक , तैमूर लंगड़े , लोदी , मुग़ल बादशाह , शेर शाह सूरी ने बाखूबी करवाया। इन सब महानुभावो की लिस्ट में आखिरी दो लोग है – गाँधी बाबा और चिचा नेहरू। गाँधी बाबा तो अपनी मृत्यु से पहले इस बाद पर भूख हड़ताल पर बैठे थे कि जब तक हिन्दू और सिख समुदाय क़ुतबुद्दीन बख्तिआर काकी की दरगाह की मरम्मत अपने पैसे से ना करवाएंगे – खाना ना खाऊंगा । तो मरम्मत हुई और बड़ी शानदार हुई। चिचा नेहरू गाँधी बाबा से एक कदम आगे निकले – दिल्ली के योगमाया मंदिर में जो फूलो की सजावट “फूलो वाली सैर” होती थी – उसको इस दरगाह तक एक्सटेंड करवा कर माने – सेकुलरिज्म और एकता का पैगाम जो देना था।