भारत के इतिहास में सात सबसे महान कूटनीतिज्ञ प्रचलित हैं-
श्रीराम, श्रीकृष्ण, विदुर, शकुनि, कौटिल्य, माधव विद्यारण्य और छत्रपति शिवाजी।
लेकिन इतिहास में एक नाम छिप गया या छिपाया गया।
वह पैदा हुआ गांधार की भूमि पर।
जी हाँ, मामा शकुनि की भूमि पर तो मिट्टी का असर तो आना ही था लेकिन उन्होंने अपनी कूटनीतिक क्षमता का उपयोग भारत के द्वार की रक्षा के लिए किया।
इस महान कूटनीतिज्ञ ने अरबी मुस्लिमों को रोकने के लिए जो जाल बिछाया था, उसे कूटनीति के अध्यायों में पढ़ाया जाना चाहिए।
उन्होंने उत्तरी तुर्क खांगानेत से कहा,” हम आपके ही कुल गोत्र से हैं अतः हम आपके ही सब्जेक्ट हैं।”
चीन के तांग राजवंश के अहं को सहलाकर अपना काम निकालते रहे, “कृपया हमें शासन करने का आज्ञापत्र दिया जाये।”
लेकिन उनकी वास्तविक निष्ठा भारत के प्रति ही रही और सदैव कश्मीर और उत्तर भारत के राजाओं से जुड़े रहे व उनसे सैन्य सहायता प्राप्त करते रहे।
इसीलिये, रावलपिंडी में ‘रहबूदों’ यानि राजपूतों की एक छावनी हमेशा मरने मारने के लिए, उनकी मदद के लिए तैयार कर दी गई।
लेकिन उनकी कूटनीति का चरम तब प्रकट हुआ जब आक्रमण करने आये ‘अरबी मोरों’ को ही उन्होंने भड़का दिया।
उन्होंने अरबी सेनापति के परिवार की सुरक्षा का आश्वासन देकर अरबी मुस्लिम सेना का मुँह बसरा में खलीफा और हज्जाज की ओर ही मोड़ दिया।
और फिर “आर्मी ऑफ पिकॉक्स” ने खलीफा पर ही धावा बोल दिया।
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बस….
बाकी जानकारी पढिये ‘अनसंग हीरोज-#इंदु_से_सिंधु_तक’ में ।
पढिये उस असाधारण आठवें कूटनीतिज्ञ के बारे में जिसके वंश ने दो सौ साल भारत के द्वार की, हिंदू अफगानिस्तान की रक्षा की।
अपने ऐसे कई असाधारण हीरोज के बारे में विस्तार से जानिए, हिंदुत्व के वास्तविक इतिहास पर प्रकाश डालती इस पुस्तक को।
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