मकनपुर -कानपुर उत्तर प्रदेश में एक दरगाह है – हज़रत ज़िंदा शाह मदार की। उर्स आदि होता है – आग में फ़क़ीर नंगे पैर चलते है , चिल्लाते है “दम मदार बेडा पार”। इस दरगाह की कहानी जानिये।
बदीउद्दीन शाह मदार उर्फ़ क़ुतुब अल मदार सीरिया से चौदहवी शताब्दी में भारत आ पहुंचे – मकसद वही – हिन्दुस्थान से कुफ्र का खात्मा। सब को भारत नज़र आ रहा था – पूरी दुनिया में केवल यही एक स्थान था जिधर कुफ्र हटने का नाम ना लेता था। चुनांचे मदार साहब जो बड़े क्रोधी थे – अपनी तशरीफ़ हिन्दुस्थान ले आये। पूरा एक गुट आया था – कोई अजमेर गया कोई दिल्ली में रुका – मदार कानपूर आ पहुंचे। इतना चेहरे पर नूर था कि अगर कोई काफिर देख ले तो बेहोश हो जाता । इसलिए मदार ने हमेशा अपना चेहरा नकाब में रखा – चेहरा ढक कर रखा।
मदार का जिहाद का तरीका जरा हट कर था – काफिरो के घरो में सांप बिच्छू आदि की बाढ़ ले आना – उनकी फसलों का अपने आप जल जाना , काफिरो की स्त्रीयो का गर्भपात हो जाना , जल का दूषित होना आदि। लोग इतने डर गए कि कुछ दिनों में मकनपुर पूरा कन्वर्ट हो गया। सुल्तान इब्राहिम शर्क़ी का इन मदार साहब से मनमुटाव था लेकिन चूँकि मदार ने इतने बड़े एरिया से कुफ्र हटाया था – सुल्तान ने मदार के इन्तेकाल के बाद १४३४ में वहां दरगाह बनवा दी जो आज भी चल रही है। दम मदार बेडा पार स्लोगन का भी मजेदार इतिहास है – लिखना खतरे की घंटी है। मदारी फकीरो का ये अड्डा है।
इस दरगाह का उर्स बड़े अजीब कारनामो के लिए जाना जाता है – दरगाह में अंदर तक जाना लोगो के लिए मुनासिब नहीं – ख़ास तौर पर औरतो के लिए। यहाँ लोग सांप / बिच्छू काटे के इलाज , नपुंसकता आदि के लिए आते है। ब्रिटिश राज में कुछ अंग्रेज़ो ने इस दरगाह की तफ्तीश की थी और कुछ चीप रोडसाइड ट्रिक्स का खुलासा किया लेकिन आम जनता तक वो सब नहीं पहुंच पाया।