शेख चेहली / चिल्ली / तिल्ली का मकबरा थानेसर हरियाणा में स्थित है। लोग कहते है ये मकबरा / मदरसा दारा शिकोह के गुरु सूफी अब्दुल करीम अब्द रज्जाक है। दूसरी कब्र सूफी गुरु की बेगम की है। असलियत क्या है – वो कदाचित किसी ड्रामे से कम नहीं। ये मकबरा किसका है और किसने बनवाया ?
शेख चिल्ली भारतीय लोकगाथा में एक मूढ़ आदमी है जिसे आराम से उल्लू बनाया जा सकता है। अनेको कहानिया मिल जाएंगी शेख चिल्ली के बारे में। असल में चिल्ली का असली अर्थ चिल्ला है – वो मजहबी आदमी जिसने चालीस दिन का कठिन रोजा टाइप व्रत रखा हो। फ़ारसी में चेहली का अर्थ चालीस होता है। थानेसर के कुछ ऐसे आलिम मौलाना थे जिनका उल्लेख अकबर काल से लेके औरंगजेब काल तक मिलता है। लेकिन इन में कोई भी ये वाले शेख चिल्ली नहीं थे – चिल्ला सबने पूर्ण किया था।
अब्दुल करीम जिसके नाम पर ये मकबरा बतलाया जाता है वो दारा का दीवान और वकील था – शाहजहाँ काल में। औरंगजेब काल में ये दो हज़ारी मनसबदार और फौजदार बना और इसी काल में इसकी मृत्यु हुई। स्वाभाविक है ये दारा का गुरु नहीं था – औरंगजेब ने सरमद आदि को मरवाया था तो इस गुरु को मनसबदार बनाने का सवाल नहीं उठता। दारा शिकोह क़ादियान फिरके का फोल्लोवेर था और ये मकबरा चिश्ती फ़िरक़े का है। ये मकबरा शायद उस शख्स का है जिसने दारा शिकोह के समय महाभारत , उपनिषद आदि का अनुवाद किया था।
ब्रिटिश समय में जब भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना हुई तो अलेक्सान्दर कननिंगघम ने इस मकबरा का दौरा किया और अपनी पुस्तक में लिखा – साफ़ तौर पे ये मकबरा प्राचीन हिन्दू मंदिर पर बना है – अंदर भिन्न आकृतिया और खम्बे इस बात की गवाही देते है। कदाचित ये मंदिर वही है जिसको महमूद गज़नी ने लूटा था और यहाँ से चक्रेश्वर की मूर्ति गज़नी में मस्जिद की सीढ़ियों में दबायी थी। लिखने को ये कहानी बहुत बड़ी है लेकिन ये संक्षेप में पोस्ट की है।
अब इतना बड़ा खुलासा किया है तो सन्दर्भ देना होगा नहीं तो कई सेक्युलर लोगो के पेट में मरोड़े पड़ जाएंगी। पोस्ट में पन्नो के स्क्रीन शॉट देखिये और कुछ मकबरे के अंदर के नज़ारे देखिये।
सन्दर्भ –
ASI रिपोर्ट 1862 वॉल्यूम २
रिजवी की ” ए वंडर that वास् इंडिया
तज़किरातुल नामा
माथिरउल नामा
बदायुनी और अबुल फ़ज़ल की पुस्तके