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मेरे लिये मेरी जाति में जन्म लेना एक संयोग है जिसपर न मुझे कोई श्रेष्ठताबोध है और न ही हीनताबोध क्योंकि जाति एक बड़ा समूह है जिसमें अच्छे या बुरे दोंनों तरह के लोग हो सकते हैं।
अतः कृष्ण के कर्मसिद्धांत के अंतर्गत मेरा मानना है, जाति नहीं माता-पिता के यहाँ जन्म लेना कर्मान्तर्गत है, अब वह जैसे भी हों, अच्छे या बुरे, गरीब या अमीर।
मुझसे कई बार व्यंग्य किया जाता है कि मैं अगर जाति नहीं मानता तो अपना ‘सरनेम’ यानि वंशनाम क्यों नहीं हटा देता।
मैं निःसंदेह हटा देता अगर उससे मेरे आदिस्थल का इतिहास न जुड़ा होता, पूर्वजों के बहाए गये रक्त का इतिहास न जुड़ा होता।
हाँ! मेरे पूर्वज विजयपुर ‘सीकरी’ से आये थे। ‘सीकरी’ जो शब्द उत्पन्न हुआ ‘सिकता’ अर्थात रेत।
विजयपुर ‘सीकरी’, एक ऐसा नगर जो मरुस्थलीय परिस्थिति में था, पानी की कमी के बीच।
मेरे इन पूर्वजों ने 1527 में राणा सांगा के नेतृत्व में मुगल आक्रांता बाबर से युद्ध किया और पिघले लोहे की बारिश को अपने सीनों पर झेला।
रणनीती व कुछ स्वार्थी सरदारों की गद्दारी से हम युद्ध हारे लेकिन सबसे ज्यादा कीमत चुकाई मेरे पूर्वजों ने।
हमें सीकरी और इस्लाम में से एक को चुनना था।
तीन शाखाओं में बंटे मेरे पूर्वज।
एक ने जाटों के साथ मिलकर आगरा के नजदीक के बीहड़ों से ही छापामार संघर्ष किया।
दूसरे जा बसे झारखंड के जंगलों में।
तीसरे चंबल के बीहड़ों में।
हमारे पूर्वजों की विरासत सीकरी हमसे छिन गई। इतिहासकारों ने कभी ये प्रश्न ही नहीं किया कि अगर अकबर ने यह नगरी बसाई तो अनूप झील का मेंटेनेंस क्यों नहीं कर पाया और अगर वह नगरी उसने बसाई तो उसका दादा बाबर उस नगर में चित्रित कैसे कर दिया गया।
नेहरू के सैक्यूलर गिरोह ने हमारी नगरी पर ठप्पा लगा दिया-
“फतेहपुर सीकरी” built by अकबर द ग्रेट।
पर हमारे चारण भाई , शादी ब्याहों पर अपनी इस पूर्वज नगरी को आहें भरकर याद दिलाते रहे- “विजेपुर भयो फतेपुर रे”
कि हम अपने प्राचीन नगर को भूल न जाएं,
कि हम अपने पूर्वजों को भूल न जाएं,
कि हम अपने इतिहास को भूल न जाएं,
हमने अपने नाम के पीछे जोड़ा यह शब्द—
#सिकरवार — #सीकर_वाले_राजपूत
इसीलिये मैंने अपने नाम से मध्यनाम ‘सिंह’ हटा दिया क्योंकि वैसे भी अपनी मातृभूमि के लिए, राष्ट्र के लिए, वंश के लिए, माता-पिता के लिए गर्व योग्य ऐसा कोई विशेष कार्य किया नहीं कि ‘सिंह’ शब्द का अधिकारी होऊँ।
लेकिन वंशनाम न हटा सका क्योंकि यह मेरे उन पूर्वजों का अपमान होता जिन्होंने राष्ट्र के लिए आक्रांता बाबर की तोपों का सामना अपने वज्रवक्षों से किया।
इस वंशनाम को, मेरे हुतात्मा पूर्वजों के वंशनाम को कुछ नीच, जातिवादी ‘शूकरवार’ ‘सूअरवार’, ‘सुक्रवार’ आदि रूपों में विकृत करके उनका और समस्त सिकरवारों का अपमान कर रहे हैं।
जो अपशब्द बोलना है व्याक्तिगत रूप से मुझे बोलो लेकिन मेरे माता पिता और वंशनाम को विकृत कर “सूअरवार”, “शूकरवार” “शुक्रवार” जैसे शब्दों का प्रयोग कर मेरे यशस्वी पूर्वजों को अपमानित करने का प्रयत्न करोगे तो मुझे डर है कि ये आग कहीं इतनी न भड़क जाए कि फेसबुक से निकलकर वास्तविक जीवन में पहुँच जाए क्योंकि फेसबुक पर सैकड़ों अन्य सिकरवार भी हैं और राजपूत भी।
जो लोग ‘जन्मनाजातिगतश्रेष्ठतावादी गिरोह’ की टिप्पणियों को ‘like’ कर कुत्सित आनंद प्राप्त कर रहे हैं, ये उसी वही मानसिकता के चंद लोग हैं जो यहाँ जातियुद्ध भड़काते रहे हैं और मैं हिंदू एकता के निमित्त निरंतर रोकता आया हूँ।
ये लोग एक आग से खेल रहे हैं, इसीलिये मैं शांत रहकर इसे नियंत्रण में रखने का प्रयास कर रहा हूँ।
मुझे मेरे शब्दों की अहमियत और उनकी शक्ति का अहसास है, सिर्फ इसलिये चुप हूँ।
तुम्हारे घिनौने जातीय युद्ध का भाग बनने की इच्छा मुझमें नहीं है।
इसलिये मिहरबानी करके मेरे माता पिता और वंशनाम को गालियां मत दो।

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