पुराणों के अनुसार देव स्वर्ग में रहते हैं और असुर पृथ्वी के भीतर पाताल में। पृथ्वी के भीतर मौजूद हर सम्पदा असुरों की सम्पत्ति है और पृथ्वी के ऊपर की सम्पत्ति यक्ष की। भूमि का हर टुकड़ा, हर तालाब का मालिक एक यक्ष होता है। घर की नींव बनाते समय और गृह प्रवेश के समय हम भूमि के उस टुकड़े पर अपने ईष्ट का पूजन करते हैं। यह बेसिकली यक्ष से आज्ञा लेने के लिए होती है।

बात करें पृथ्वी के भीतर से मिलने वाले खनिजों जैसे स्वर्ण, लौह आदि तथा भूमि के भीतर से निकलने वाले अन्न आदि की, तो इनको ‘श्री’ अर्थात लक्ष्मी कहा जाता है, अतैव लक्ष्मी को असुर पुत्री भी कहा जाता है। लक्ष्मी के ऐश्वर्य और धनधान्य का प्रतीक है, गज़ अर्थात हाथी। शिव को गजान्तक कहा जाता है अर्थात गज का संहार करने वाला। शिव योगी है, सन्यासी है। धन धान्य ऐश्वर्य का उन्हें क्या लोभ? अतः शिव गज रूपी धन सम्पदा का संहार करते हैं।
प्राचीन समय मे मानवों की अप्राकृतिक मृत्यु के चार सबसे प्रमुख प्राकृतिक कारण थे। शिकार या वन गमन के दौरान किसी जंगली जानवर जैसे सिंह के हमले में, खेती के दौरान किसी जहरीले कीड़े के काटने, खासकर सर्पदंश से, आग लगने या जल सरोवर-नदी आदि में डूबने से। बीमारी आदि से हुई मौतों को भूत पिशाच आदि से जोड़ा जाता था। लेकिन एक सन्यासी को मृत्यु का कैसा डर?
शिव श्मशानवासी है, बाघम्बर है, सर्प उनके गले की शोभा बढ़ाता है, गंगा उनकी जटाओं और अग्नि उनके हाथों में नियंत्रित है। भूत पिशाच उनके सेवक है। अतैव शिव महाकाल है। शिव कामांतक भी है, काम देव के संहारक। एक सन्यासी, एक योगी के लिए काम का क्या औचित्य? लेकिन शिव के पास एक चीज़ और भी है, नंदी। नंदी एक जंगली बैल है, देशज भाषा मे कहें तो सांड़।
सांड बेहद शक्तिशाली होता है, अश्व से भी ज्यादा ताकतवर इसलिए संस्कृत में सांड़ को बलीवर्द: कहा गया है लेकिन जब हम शक्ति याने पॉवर को नापते हैं, तो उसका पैमाना सांड़-शक्ति नहीं, अश्व शक्ति याने हॉर्स पॉवर होता है। मगर क्यों? क्योंकि सांड़ की शक्ति अनियंत्रित होती है। अश्व आपको दुलत्ती मार के छोड़ देगा लेकिन सांड़ मारने पर आ जाए तो तब तक उठा उठा पटकेगा जबतक उसका क्रोध शांत न हो जाए। पटकने के बाद भी वो सींगों से आपको रगड़ता रहेगा।
सांड़ की काम शक्ति भी अश्व की तुलना में कई गुना ज्यादा होती है, लेकिन पॉवर कैप्सूल पर सांड़ की नहीं, अश्व की तस्वीर छपी होती है। असीम काम शक्ति से संपन्न होने के बावजूद काम शक्ति बढ़ाने वाले हर प्रोडक्ट पर सांड़ के बजाय अश्व की तस्वीर होती है। वजह वही है, सांड़ की काम शक्ति भी अनियंत्रित होती है। ताकत और काम दोनों ही मामलों में सांड़ किसी नियम किसी अनुशासन को नहीं मानता।
बछिया हो या गाय, जवान हो या बूढ़ी, दौड़ा लिया दबोच लिया और हरी कर दी। कई बार सांड़ हरी करने के मामले में अपने साथी सांड़ और गाय में भी भेदभाव नहीं करता। अब सांड़ तो फिर सांड़ होता है, निश्वार्थ भाव से काम करता है। एकमात्र शिव ही थे, जो सांड़ की असीम ताकत और गुणों को पहचान कर उसे नियंत्रित कर पाए। सांड़ पर सवार हुए तो सबको पीछे छोड़ बन गए देवाधिदेव महादेव।
नंदी आज हमारे मंदिरों और घरों में शिव के साथ स्थापित होते है, बराबर पूजनीय है। क्योंकि वह शिव द्वारा नियंत्रित हैं। जब कामोत्तेजक नारीवादी महिलाएं खजुराहो का उदाहरण देती है तो उन्हें पता होना चाहिए काम से सम्बंधित मूर्तियां सिर्फ 10% हिस्से में हैं, बाकी के 90% हिस्से में जीवन की अन्य मूलभूत गतिविधियाँ दर्शाई गई है। कामसूत्र में भी काम से ज्यादा अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के बारे में बताया गया है।
काम सनातन में वर्जित नहीं है। यह चार पुरुषार्थ में से एक है। काम जीवन का एक हिस्सा है, लेकिन काम ही जीवन नहीं है। नंदी प्रतीक है इस बात का कि जो नियंत्रित होता है वही समाज द्वारा स्वीकार किया जाता है। अनियंत्रित सांड़ लट्ठ मारकर गाँव से बाहर कर दिए जाते है, भले ही कितनी सींगें हिला लें। काम के समय काम और काम के समय काम यही नियंत्रित जीवन शैली है। हर वक्त काम काम करने वाली स्त्रियों की यौन कुंठा कभी नहीं मिट सकती, चाहे जितने पार्टनर बदल लें।

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