Home चलचित्र CUTTPUTLLI Review

CUTTPUTLLI Review

Om Lavaniya

by ओम लवानिया
226 views

कठपुतली! धन्यवाद वासु भगनानी, आपने अपने इस नायाब कंटेंट को नज़दीकी सिनेमाघरों के हवाले नहीं किया। यकीन कीजिए, आप और डिस्ट्रीब्यूटर्स बैठकर रो रहे होते…डिज्नी हॉटस्टार वालों के हाथ चुमिये, उन्होंने 180 करोड़ की डील दे डाली। 

समझ से परे है, लेखक असीम अरोरा ने निर्देशक रंजीत एम तिवारी और वासु के लिए तमिल सस्पेंस थ्रिलर ‘रत्नासन’ को फ्रेम टू फ्रेम कॉपी किया है, फिर आखिर में होशियारी किसने दिखलाई है। लेखक साहब ने या एडिटर महोदय ने, क्लाइमैक्स के सोल का कत्ल कर दिया। ताकि दर्शकों को हूबहू कॉपी का अहसास न हो, कुछ नया लगे। मने नकल में फ्रेशनेश, सिनेमेटोग्राफर ने 140 मिनट तक अच्छे से हिमाचल की खूबसूरती दिखाई, उसमें सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की। निर्देशक साहब क्या कर रहे थे, समझ न आया।

इस महत्वपूर्ण सेगमेंट को हड़बड़ी में खत्म करने की ज़िद छेड दी गई। शायद 9 बज गए होंगे, अक्खे कुमार के सोने का वक्त था। जल्दी से पैकअप करना चाहते थे, कर भी दिया।

किलर तक पहुँचते-पहुँचते बत्तियां बुझा बैठे, ऐसे शब्द आ रहे है लेकिन यहाँ लिख नहीं सकता हूँ। बीप..बीप।

ओ बॉलीवुड वालों भैया, कॉपी करो, तो सिर्फ़ कॉपी करो। दिमाग मत चलाओ। मूल कंटेंट का मर्म बर्बाद हो जाता है। नहीं कर सकते हो तो मत बनाओ, यूट्यूब पर देखकर मत चद्दर तानकर सो जाओ।

अक्खे कुमार भाईसाहब इतना मत आओ, वरना दर्शक थर्ड डिग्री टॉर्चर करने के एवज में केस ठोक देंगे। बेचारे मेकअप आर्टिस्ट को असमंजस में डाल रखा था, अक्खे भिया को कब जवान दिखाना है कब बूढ़ा…55 की उम्र में 25 का लौंडा दिखलाने के वास्ते अच्छे से मेकअप किया। बाल भी काले पोते, लेकिन दाढ़ी की सफेदी और बीच बीच में कलमें सफेद देखकर, मेकअप आर्टिस्ट का थ्रिल ज्यादा अच्छा लगा, फ़िल्म के थ्रिल से।

असीम और राज तिवारी जी पुनः शांति से बैठकर तमिल वर्जन को इत्मीनान से देखिए, उसमें जीजा-साले का इमोशन, जीजा-जीजी का इमोशन सीधे दिल को छूता है। उनके हर फ्रेम में थ्रिल है सस्पेंस है और इमोशन है।

अक्खे कुमार और चंद्रचूड़ सिंह के इमोशनल सीक्वेंस गम का फील न देकर, कॉमिक लगे।

खिलाड़ी भैया….थांबा…रुकिए, सोचिए, बैक टू बैक पेलिये मत…आप कलाकार है कला दर्शकों के सामने रखिये। महीने की सैलरी की भांति मत क्रेडिट हो जाइए, कि आना ही है वरना दर्शक बुरा मान जाएंगे। कतई न मानेंगे।

आप मार्च में आए, अप्रैल-मई शांत रहे, दर्शकों को अच्छा फील हुआ। फिर जून-जुलाई-अगस्त आ गए।

कुछ भी नया नहीं है दर्शक क्यों देखेगा?

Related Articles

Leave a Comment