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Jhund Movie Review

Swami Vyalok

by Swami Vyalok
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बहुत दिनों बाद फिल्म देखने गया। ‘झुंड’ देखी और पाया कि किस महीन चक्की से सोचने की परतें तय की जा रही हैं। खास तौर पर दो दृश्य। एक, जिसमें टूटी मोटरसाइकिल का पेट्रोल टैंक जमीन में गाड़ दिया गया है और उसके आधे सिरे को भगवा से रंग कर कुछ समाधि टाइप बना दी गयी है।

 

दूसरे, अंबेडकर को पैगंबरीकरण जिस तरह से हो रहा है। मराठों में दलित रेडिकलिज्म पहले से और उग्र तौर पर है। इसलिए, जयंती पर डीजे लगाकर डांस हो या जय भीम के नारे…ये असर्शन की भी फिल्म है।

 

दो सवाल ऐसे में उठाए जा सकते हैं। भई, भू-अर्जन पदाधिकारी केवल बजरंगबली थोड़े हैं, पूरे भारत में साला रेलवे टेसन पर भी समाधि बनाने का चमत्कार तो दूसरे भू-अर्जन पदाधिकारी अली ही दिखा सके हैं। तो, भगवा की जगह हरी मजार ही दिखा देते।

 

दूसरे, अंबेडकराइट्स कै जुलूस को जैसै रामनवमी या मुहर्रम की तरह बिल्कुल एक कैटेगराइजेशन के साथ पेश किया है, वह भी गौर करने लायक है।

 

बाकी, फिल्म तो खैर जो है सो हइए है। हम तो अमितजी की इंसानियत भी दो बार देखे थे, तो…..

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