काल की कसौटी पर

by Isht Deo Sankrityaayan
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आपसे आपकी पहचान जो कराता है, वह एक काल ही है। बाक़ी तो सब आपको अपने-अपने स्वार्थ के अनुसार हमेशा गफ़लत में ही रखते हैं। कोई आपको कभी कम आँकता है तो कोई ज़्यादा। यहाँ तक कि आप खुद भी दूसरों के मामले में यही करते हैं। यथार्थ की कसौटी पर जो आपको दूसरों के बारे में अपने प्रति सही समझ और यहाँ तक कि ख़ुद को भी ठीक ठीक आँकना सिखा देता है, वह एक काल ही है। तो इस काल की कसौटी पर ईसा की सलीब पर 2018 वर्ष गुज़र गए।
यह कोई पहली बार नहीं हुआ है और न ही अंतिम बार। इससे भी पूर्व विक्रम की ध्वजा पर 2074 वर्ष फहर चुके हैं और 75वां बीतने में बमुश्किल तीन माह ही शेष हैं। यह कोई पहले लोग नहीं हैं, जिनके नाम से हम काल को माप रहे हैं। इनसे भी पहले जाने कितने लोग आए और चले गए, जिनके नाम पर अपने-अपने समय पर रही मनुष्यता ने काल को नापा-जोखा, आगे बढ़ी और बढ़ती ही गई। उनमें से कुछ के बारे में हम हम जान पाए, कुछ के बारे में अगर ईमानदारी से कुछ शोध-अनुसंधान हो तो शायद भविष्य में हम जान पाएं और बहुतों के बारे में शायद कभी न जान पाएं। ईसा और विक्रम जैसे हमारे समय मे ज्ञात और बहुत अज्ञात भी काल के जाने कितने गणना आधार काल के डिब्बे में बंद हैं, जिनके बारे में अपने थोथे ज्ञान पर इतराती मनुष्यता शायद ही कभी जान पाए। कबीर के शब्दों में कहें तो काल की ऐसी जाने कितनी कसौटियों पर कितनी बार घास जम और सूख चुकी है। फिर भी काल अपनी गति से चलता रहा और चलता ही रहेगा।
जब कुछ नहीं था, तब भी जो था और जब कुछ नहीं होगा, तब भी जो होगा, वह काल ही है। कोई और नहीं। इस काल से अपने लिए अगर कुछ लिया जा सकता है तो वह केवल अनुभव है। इतिहास गवाह है कि जो काल के दिए धब्बे अपने सीने पर लेकर चले हैं, वे अपने ही नहीं, दूसरों के भी विनाश के कारण बने हैं। इस काल के चक्र के साथ वही गतिमान रह सके जिन्होंने काल के दिए धब्बो को अपने सीने से चिपकाया नहीं और कभी किसी की कही किसी बात को अंतिम सत्य नहीं मान लिया। क्योंकि अंतिम तो कुछ हो ही नहीं सकता।
बदले कैलेंडर के साथ मेरे सभी मित्रों के प्रति मेरी यही शुभकामना है – बीते वर्ष के घाव जहाँ छूट गए, उन्हें वहीं छोड़ दें। हाँ, अनुभव साथ रखें। बुद्ध के शब्दों में अपने दीये ख़ुद बनें और आगे बढ़ें, बढ़ते ही रहें।

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