खेलों का राष्ट्रीय जीवन में बहुत महत्व है, लेकिन यह महत्व समय के साथ बदलता रहता है. एक समय था जब पाकिस्तान के विरुद्ध एक मैच जीतना राष्ट्रीय गर्व का क्षण दिखाई देता था. 2003 के वर्ल्ड कप में पाकिस्तान…
राजीव मिश्रा
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मीडियाजाति धर्ममुद्दाराजनीतिराजीव मिश्रा
मणिपुर मीडिया और सियासी राजनीति
by सतीश चंद्र मिश्रा 66 viewsजब गोधरा में 59 लोग जिंदा जला कर राख कर दिए गए थे, तब सेक्युलर हरामजदगी के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए, देश को यह समझाने बताने का राक्षसी खेल शुरू हुआ था कि वो 59 लोग स्टोव फटने से लगी…
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राजीव मिश्राऐतिहासिकज्ञान विज्ञानसामाजिक
हॉर्न इंग्लैंड की सांस्कृतिक पहचान
by राजीव मिश्राby राजीव मिश्रा 53 viewsइसके कई अर्थ हो सकते हैं. इसके बेहद मासूम अर्थ हो सकते हैं, जैसे कि आपने अपने किसी परिचित को सड़क क्रॉस करते देखा और आप उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए हल्के से हॉर्न बजा सकते हैं. यहां हॉर्न…
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नयाजाति धर्ममुद्दाराजीव मिश्रासामाजिक
जातिवाद: एक अधूरा विमर्श
by राजीव मिश्राby राजीव मिश्रा 106 viewsजातिवाद के विषय पर कुल चार सार्थक प्रश्न आए थे जिनका जवाब देना था.. बारी बारी से. उनमें से पहला कथन था – जातिवाद बुरा नहीं है, जातिगत भेदभाव बुरा है… मेरी समझ से यहां समस्या “भेदभाव” शब्द के अर्थ…
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विदेशराजीव मिश्रालेखक के विचारसामाजिक
The Civilisational Challenge
by राजीव मिश्राby राजीव मिश्रा 201 viewsक्या किसी भारतीय का यूके या यूएस में किसी जगह कोई काम कराने में कोई घूस देनी पड़ी हो, किसी किस्म के करप्शन का कोई व्यक्तिगत अनुभव हुआ हो? सर्वे विचित्र इसलिए है क्योंकि उन्हें भी पता था यह अनावश्यक…
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अर्थव्यवस्थाभारत निर्माणमुद्दाराजीव मिश्रा
भारत के टैक्स स्लैब पर रोना
by राजीव मिश्राby राजीव मिश्रा 196 viewsजो लोग भारत के टैक्स स्लैब पर रोना रो रहे हैं, उन्हें एक बार अपनी सालाना सैलरी का हिसाब (P60) दिखाने का मन करता है. जितने पैसे अकाउंट में आते हैं उससे ज्यादा टैक्स और नेशनल इंश्योरेंस के कट जाते…
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राजीव मिश्राअपराधइतिहासजाति धर्ममुद्दाविदेश
CopiedWithGratitude : पेशावर में मस्जिद में हुए आत्मघाती हमले में मरने वालों की संख्या 65 हो चुकी
by राजीव मिश्राby राजीव मिश्रा 157 viewsपेशावर में मस्जिद में हुए आत्मघाती हमले में मरने वालों की संख्या 65 हो चुकी है. 150 से अधिक घायल हैं. अस्पर्श्यता व जातिगत ऊँच नीच एक सत्य है लेकिन ये सत्य भूतकाल का है. हिंदुओ ने 1947 में क़ानूनन…
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एक आदर्श सामाजिक स्थिति. यह किसे नहीं चाहिए? सभी इसके लिए साइन-अप करेंगे. तबतक, जबतक इसकी कीमत नहीं कैलकुलेट करते. परफेक्शन क्या है? यह प्रोग्रेसिव रिफॉर्म्स की एक अंतहीन प्रक्रिया है. आप स्थिति को बेहतर, और बेहतर करते जाते हैं…
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मुद्दाराजीव मिश्रासामाजिकसाहित्य लेख
सोशल नेटवर्किंग साइट्स और बढ़ता मतभेद
by राजीव मिश्राby राजीव मिश्रा 155 viewsएक महिला से किसी ने उनके वजन को लेकर मजाक कर दिया. महिला नाराज हो गईं और उन्होंने उन्हें बुरी तरह लताड़ कर ब्लॉक व्लॉक कर दिया और स्क्रीनशॉट भी टांग दी. उन सज्जन का इरादा गलत नहीं रहा होगा,…
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नयाअपराधजाति धर्मराजीव मिश्रासामाजिक
कंझावला केस में राजनीती और धर्म
by राजीव मिश्राby राजीव मिश्रा 117 viewsदिल्ली की स्कूटी वाली घटना की पृष्ठभूमि कुछ भी हो सकती है. बिना फैक्ट्स जाने दूर बैठ कर कुछ भी कहा नहीं जा सकता है… पर फाइनल फैक्ट जो सामने है वह यह कि एक लड़की एक गाड़ी के नीचे…