Home लेखक और लेखराजीव मिश्रा विषैलावामपंथ एक संकट …..

विषैलावामपंथ एक संकट …..

by राजीव मिश्रा
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अमेरिका में टीनएज प्रेगनेंसी और सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन्स को कम करने के लिए 1960 के दशक में सेक्स एजुकेशन को शुरू किया गया. इसे एक क्राइसिस घोषित किया गया और सेक्स एजुकेशन की जरूरत को एक आपातकालीन उपाय बताया गया. जबकि 1960 के दशक में अमेरिका में टीन एज प्रेगनेंसी और विनेरेअल बीमारियों की दरों में पिछले कई दशकों से लगातार सुधार हो रहा था, यानी कोई क्राइसिस नहीं थी. उनके इस कदम का काफी विरोध भी हुआ और अभिभावकों ने अपने बच्चों को कम उम्र में आपत्तिजनक पोर्न फिल्में दिखाए जाने का बहुत विरोध किया…उन्हें पिछड़ा और मूर्ख घोषित कर दिया गया.

उसके बाद अगले दस वर्षों में अमेरिका में टीनएज प्रेगनेंसी और वेनेरेअल बीमारियों की दर कई गुना बढ़ गई. लेकिन सेक्स एजुकेशन का दायरा बढ़ता गया, और अभी बिल्कुल नर्सरी के बच्चों को भी सेक्स एजुकेशन दिया जा रहा है. बेशक,बाद में यह स्वीकार किया गया इसका उद्देश्य प्रेगनेंसी या बीमारियों की रोकथाम था ही नहीं, बल्कि सेक्स के प्रति समाज की सोच और व्यवहार को बदलना था.

डॉ थॉमस सॉवेल अपनी पुस्तक “The vision of the anointed” में वामपन्थी तकनीक के चार चरणों का बहुत गहन अध्ययन प्रस्तुत करते हैं.

वामपन्थी सबसे पहले एक समस्या को उठाते हैं और उसे “क्राइसिस” घोषित करते हैं. जबकि उस समस्या की स्थिति में वर्षों से सुधार हो रहा था. फिर वे उसका एक समाधान सुझाते हैं और उनकी घोषणा के अनुसार वही समाधान उस क्राइसिस का हल है. जो कोई भी उनके उस समाधान पर प्रश्न उठाता है, उसे उस समस्या का कारण, असंवेदनशील और निर्मम घोषित कर दिया जाता है. तीसरे चरण में जब उन उपायों के परिणाम उनके घोषित उद्देश्यों के विपरीत होने लगते हैं तो वे अपने उद्देश्यों को पुनः निर्धारित करने लगते हैं और उनकी विफलता को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं. चौथे चरण में वे यह घोषित कर देते हैं कि स्थिति बहुत कॉम्प्लेक्स है, आपको बात समझ में नहीं आयी, दूसरे और भी बहुत से कारण थे और उन उपायों के बिना परिणाम और भी बुरे होते.

डॉ सॉवेल ने तीन उदाहरण दिए हैं जहाँ ये चार चरण साफ साफ दिखाई देते हैं. इनमें सेक्स एजुकेशन के अलावा दो और उदाहरण दिए गए हैं. राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन के समय वॉर ऑन पॉवर्टी के नाम पर सोशल वेलफेयर की स्कीमें लाई गईं. उनका घोषित उद्देश्य लोगों को गरीबी से निकाल कर आत्मनिर्भर बनाना था. जबकि 60 के दशक तक अमेरिका में गरीबी की दर लगातार नीचे जा रही थी. लेकिन इन सोशल वेलफेयर कार्यक्रमों के आने के बाद से सरकारी सहायता पर निर्भर अमेरिकियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. तब लिबरल अर्थशास्त्रियों द्वारा घोषणा की जा रही है कि इस सरकारी सहायता के बिना स्थिति और बुरी होती.

तीसरा उदाहरण अपराधों के मामले में न्यायिक सुधारों का है. 1950 के दशक तक अमेरिका में हिंसक अपराधों की संख्या में लगातार कमी आ रही थी. तब कुछ अमेरिकी बुद्धिजीवियों ने यह प्रचार करना शुरू किया कि अपराधों के लिए अपराधी नहीं, समाज जिम्मेदार हैं. अपराधियों को सजा की नहीं सुधार की आवश्यकता है. उन्हें समझे जाने की, सहानुभूति की और अच्छे व्यवहार की आवश्यकता है. अपराधों का कारण अपराधी मनोवृति नहीं, गरीबी और बेरोजगारी है…और इन लोगों में अमेरिका के कुछ बेहद प्रभावशाली और शक्तिशाली लोग थे, यहाँ तक कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस वारेन कोर्ट भी थे. उनके समय में न्यायिक प्रक्रिया में ऐसे परिवर्तन किये गए कि पुलिस के लिए एक अपराधी को सजा दिलाना अधिक से अधिक कठिन होता गया. उधर अमेरिका में हिंसक अपराधों और हत्याओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी होती रही.

आज भारत में ये तीनों तर्क दिए जा रहे हैं. स्कूलों में सेक्स एजुकेशन, समाज में सरकारी सहायता और कोर्ट रूम में अपराधियों के प्रति उदार व्यवहार के प्रयोग हमारे यहाँ भी हो रहे हैं, और इन तीनों प्रयोगों की अमेरिकी समाज में असफलता और विपरीत प्रभावों ने उनको जरा भी प्रभावित नहीं किया है. क्योंकि वामपन्थी अपने तर्कों और विचारों को सत्य से जरा भी संक्रमित नहीं होने देते.

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