खेलों का राष्ट्रीय जीवन में बहुत महत्व है, लेकिन यह महत्व समय के साथ बदलता रहता है.
एक समय था जब पाकिस्तान के विरुद्ध एक मैच जीतना राष्ट्रीय गर्व का क्षण दिखाई देता था. 2003 के वर्ल्ड कप में पाकिस्तान पर जीत का जश्न मनाने रात के दो बजे तक जमे हुए थे… गाड़ी की बूट खोल कर..खूब जोर जोर से गाने बजा कर…
और सड़क पर हॉर्न बजाते हुए पूरे मेरठ का चक्कर लगाया था. पूरा शहर जैसे अबू लेन और सदर में जुटा हुआ था. रात भर दीवाली मनाई थी, अगले दिन होली खेली गई थी…
आज पाकिस्तान से जीतना कोई गर्व नहीं देता. दुनिया जब पाकिस्तान के साथ “आर्च राइवल” शब्द का प्रयोग करती है तो सुनकर गाली जैसा लगता है…
देश की प्रगति के साथ देश के एस्पिरेशंस भी बदलने चाहिए. एक समय सिर्फ यही बात बहुत खुशी देती थी कि हमारे पास दुनिया के सबसे अच्छे स्पिन बॉलर्स हैं, सबसे अच्छा ओपनिंग बैट्समैन है. गावस्कर ने जब बॉयकॉट का सबसे अधिक रनों का रिकॉर्ड थोड़ा, जब ब्रैडमैन का शतकों का रिकॉर्ड तोड़ा तो बहुत गर्व होता था… कोई हमारे पास भी है जो उनकी बराबरी कर सकता है….
क्योंकि तब कुल मिला कर हम दुनिया की बराबरी करने की स्थिति में नहीं हुआ करते थे. जीत कभी कभार मिला करती थी तो व्यक्तिगत उपलब्धियों में ही खुशी खोजी जाती थी.
आज का भारत बड़ा सोचने के लिए तैयार है. अब जीत, पूरी जीत, टोटल डॉमिनेशन से कम कुछ भी खुशी नहीं देता. हमें और ऊपर, और ऊंचा देखने की जरूरत है… छोटी छोटी टुच्ची खुशियों से ऊपर. वे खुशियां तो घलुए में आ जायेंगी.