Home नया द केरल स्टोरी

‘द केरल स्टोरी’ कल देखी। कहानी के बजाय कहानी के निहितार्थ को जानना समझना ज्यादा जरुरी है। एक ओर जहां यह एक मजहब के विकृत घिनौने और जुगुप्सित चेहरे को उघारती है वहीं यह दीगर धर्म वालों को खबरदार भी करती है ताकि वे अपने मुगालतों और गफलतों से बाहर निकलकर आसन्न खतरे को भांपे, सजग हो जांय।
पूरा हाल खचाखच भरा था। हाऊसफुल। परदे पर आते दृश्यों से हाल में पिन ड्राप साईलेंस। जैसे दर्शक सदमें में हों। जाहिर है फिल्म कामयाब है, अपनी प्रस्तुति और संदेश देने, दोनों लिहाज से। दाद देनी होगी पूरी टीम को उनके अदम्य साहस और परिश्रम के लिये। दृश्य दर दृश्य जीवंत है, संवाद बेंधते हैं। इसी धरा पर एक जो काली खौफनाक गलीज़ दुनिया है उसको बेबाकी से पर्दे पर उतारने के लिए यह फिल्म कश्मीर फाईल से आगे कदम बढ़ा चुकी है और अंजाम भी भुगत रही है कई राज्यों में बैन होकर। आगे भी यह टीम कैसे और क्या क्या अंजाम भुगतेगी, कौन जाने। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्यों को लेनी होगी।
ब्रेन वाश, लव जिहाद, लिव इन रिलेशनशिप, धर्मांतरण, नाराये तकबीर – अल्लाहुअबर फिल्म के ‘की वर्डस’ हैं जिस पर फिल्म टिकी हुई है। फिल्म का दावा ( दावा त्याग नहीं) है कि फिल्म सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। यह एक विनम्र स्वीकारोक्ति है जबकि सच्चाई है कि यह सच घटनाओं पर ही आधारित है जिसका एक एक विवरण फिल्म के खत्म होते ही पर्दे पर सिलसिलेवार उभरता रहता है हलांकि तब तक दर्शक सिनेमा हाल से बाहर निकलते रहते हैं।
एक ओर जहां यह फिल्म कम्युनिस्टों और मजहबियों के गठजोड़ पर करारा कटाक्ष करती है वहीं यह हिन्दुओं को बेपरवाही और कुंभकर्णी निद्रा से जगाती है ताकि उनकी नयी पीढ़ी मजहबी भुलावों और दुष्चक्र की चपेट से बची रहे। केरला एक आईना है, चेते नहीं तो पश्चिम बंगाल, आसाम, तमिलनाडु और कर्नाटक और कितने ही और प्रदेश इस दुश्चक्र के घेरे में आ जायेंगे। लव जिहाद आज एक घृणित सचाई है और शायद ही देश का कोई कोना इससे अछूता रह गया हो।
फिल्म ने उस नेक्सस का पर्दाफाश किया है जिससे केरल और केंद्र सरकार पूरी तरह वाकिफ और बाखबर होकर भी अन्यान्य कारणों से मानवता के साथ हो रहे अन्याय को लेकर चुप है। कैसे लव जिहाद में गैर इस्लामी मजहब की लड़कियों को फांसा जा रहा है, उनका ब्रेनवाश किया जा रहा है, मादक और संभ्रमकारी औषधियों की लत लगाकर उनके दिमाग को खोखला कर, धर्मांतरण कर फुसला बरगला धमका कर उनका साजिशन निकाह कराकर आईएसआईएस मुजाहिदों (कट्टर इस्लामी लड़ाकों) की सेक्स की हवश मिटाने के लिए उन्हें सीरिया भेजा जा रहा है। और गुनहगार भी जाने पहचाने चेहरे होकर पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। और नित नयी लड़कियों को फांस रहे हैं।
हम खासकर हिन्दू अपने बच्चों को किस तरह हिन्दू धर्म और संस्कृति के संस्कारों से अनभिज्ञ रख रहे हैं, फिल्म चेतावनी दे रही है, सजग कर रही है। और यह कुत्सित खेल दशकों से चल रहा है जिसमें हिन्दू लड़कियां लव जिहाद का ज्यादा शिकार हो रही हैं। इस फिल्म को देखकर श्रीमद्भगवद्गीता के इस श्लोकार्ध का मर्म समझा जा सकता है – ‘स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः’
आप सपत्नीक फिल्म देखने जरुर जरुर जांय। नवयुवा बच्चों खासकर बेटी को अलग से भेजें। बेटे को भी अलग से भेजें। बल्कि दोस्तों के साथ स्पांसर कर दें। साथ न ले जायं। कुछ दृश्य अत्यंत विचलित करने वाले और परिवार के साथ देखने लायक नहीं हैं। हलांकि वे एक घृणित यथार्थ हैं मगर उन्हें अगर संकेतार्थों में दिखाया गया होता तो संभवतः इसे ए प्रमाणपत्र से मुक्त रखा जा सकता था।
फिल्म का एक गीत नेक्सस की शिकार बेबस लड़कियों का शोकगीत बन गूंजता रहता है फिल्म देखने के वक्त और बाद भी –
न जमीं मिली न फलक मिला
न दुआ मिली न खुदा मिला…….

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