विराट कोहली के दोहरा एटीट्यूड है, फ़ील्डिंग में डबल एनर्जी में जोश रहता है मतलब विकेट मिलने पर जिस हिसाब की ख़ुशी कोहली व्यक्त करते है। उतना गेंदबाज़ नहीं करता, या कहे कम रहता है। मैदान पर सामने वाले खिलाड़ियों से भिड़ जाते है। कई दफ़ा कोहली के ऐसे एग्रेशन से खूब मीम बने है। कुछ भी हो इससे विराट को क़तई फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
दूसरा स्वरूप है बैटिंग करते वक्त, गंभीर स्वभाव में खेलते है और भारतीय टीम को अंत तक छोड़ते है। चेस करते हुए कोहली का रूप विराट हो जाता और लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं रखते है। मैंने कोहली को अपने स्वार्थ के लिए वर्ल्ड कप 2023 में ही देखा है इन 49वे शतक के लिए रवींद्र जडेजा को रोककर रखा, बाक़ी अन्य मैच में कोहली ने अपने रिकॉर्ड्स से ऊपर टीम को माना है और फिनिशर की तरह खेले है।
विराट एथलीट जबरजस्त है और इसका परिचय इनके रिकॉर्ड्स देते है। लेकिन कप्तानी का दबाव झेल नहीं सकें।
विराट वनडे में 50प्लस शतक लगायेंगे और ये आँकड़ा कहाँ रुकेगा ये आने वाले मैच बतला देंगे। सचिन ने 49 वाला पहाड़ 400 प्लस इनिंग्स में बनाया था और विराट ने 277 में बना दिया। दोनों के कालखंड की तुलना बेमानी है कि सचिन ने जिन गेंदबाजों को खेल है विराट के दौर में रत्तीभर नहीं है तो भैया इसमें गलती कोहली की नहीं है। जो माहौल मिला है उसके इर्दगिर्द बेस्ट दे रहे है।
ऐसे तो वर्तमान के सभी बल्लेबाज़ों ने शतक की झड़ी लगा देनी चाहिए थी। यक़ीनन पिछले एक दशक में इतनी क्रिकेट हुई है कि बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ का सामना लगातार हो रहा है। तिस पर आईपीएल है। लेकिन इससे विराट का टैलेंट कमतर नहीं होता है। और विराट का भारत जीत में क्रेडिट देखेंगे तो अद्भुत है कोहली नाबाद है और भारत जीत की दहलीज़ पर नहीं पहुँचा है ऐसा सोचना गुनाह है। अपने हैप्पी बर्थ डे पर शतक जड़कर भारत की जीत की नींव रखी है।
कोहली को पहली बार 2008 अंडर-19 के वर्ल्ड कप में देखा था और अपनी कप्तानी में भारत को वर्ल्ड कप विजेता बनाया था। भारत का दूसरा टाइटल रहा था और रवींद्र जडेजा भी साथी खिलाड़ी थे।
कुछ गधे विराट कोहली के साथ बाबर की तुलना करते है