नसीरुद्दीन शाह कुछ नया नहीं कह रहे। वे ब्रिटिश उपनिवेशवादी इतिहासकारों व वामपंथी इतिहासकारों के ही एक पुराने तर्क को दुहरा रहे हैं।
प्रायः काई वामपंथी इतिहासकार व बुद्धिजीवी अरब, तुर्क व मुगल आक्रमणों को यह कहकर डाइल्यूट करते रहे हैं कि प्राचीन काल से ही मध्य एशिया से घुमंतू जातियां भारत में ‘घर’ ढूंढने आती रहीं है तो अरब, तुर्क व मुगलों से बैर क्यों?? वे भी तो शक, कुषाण व हूणों की तरह यहीं बस गए थे।
ये एक ऐसा तर्क है जिस पर प्रायः अच्छे-अच्छे हिंदुत्ववादी विद्वान बगलें झांकने लगते हैं जबकि इसका उत्तर बहुत ही सरल है।
-सीथियनों से निःसृत ‘शक’ हों या यू चियों से निकले ‘कुषाण’ या फिर ‘ह्युंग नू’ से निकले लाल व सफेद हूण,
भारत आने से पूर्व ही इनकी हिंदू संस्कृति में प्रशिक्षण शुरू हो गया था-
-शकों के नाम, धर्म व देवता हिंदू थे जैसे रुद्रदामन।
-कुषाणों के बनवाये शिवमंदिर अफगानिस्तान में आज भी हैं।
-समरकंद से लाल हूण व सफेद हूणों के संस्कृत में अभिलेख व सिक्के मिल रहे हैं।
इसका सीधा अर्थ है कि वे ‘अर्द्ध आर्य’ थे।
‘अर्द्ध’ इसलिये क्योंकि उनमें अभी भी बर्बरता शेष थी और यही कारण है कि उनके द्वारा भारतीय आदर्शों को स्वीकार कर लेने और अपनी जातीय पहचान को विलीन कर देने पर उन्हें अपना भाई मानकर घर में जगह दी गई।
यही कारण है कि मैंने अपनी पुस्तक ‘अनंसंग हीरोज:#इंदु_से_सिंधु_तक के संक्षिप्त वीडिओ प्रस्तुतिकरण में इनके लिए लिखा है–
“जो तलवार लेकर ‘घर ढूंढने’ आये, पहले उनकी तलवारों को झुकाया और फिर अपना बना लिया। सभी ने मिलजुलकर इस धरती को स्वर्ग बना दिया।”
इसके ठीक विपरीत ये हत्यारे अरब लेकर आये इस्लामिक विनाश की आंधी-
-मंदिर तोड़े,
-मठ तोड़े,
-विहार जलाए,
-विद्यालय जलाए,
-स्त्री अपहरण व बलात्कार,
-औरतों बच्चों को सैक्स स्लैव बनाया,
-एक-एक दिन में एक लाख औरतों बच्चों के सिर काटे
-अरबी और फारसी को थोपा,
-जजिया लगाया,
-मुँह में गोमांस रखकर धर्मांतरण करवाये
क्यों???
क्योंकि ये नराधम, क्रूर, बर्बर पिशाच एक ऐसी किताब से संचालित थे जो मनुष्य को रक्तपिपासु वैम्पायर बना देती है।
इन्होंने भारत से अपार धन लूटकर मक्का-मदीना भेजा।
इन्होंने सोने के ढेर समरकंद, गजनी और काबुल भेजे।
इन्होंने अरबी, फारसी और उर्दू को हिंदू जनता पर थोपने की कोशिश की।
इन्होंने भारतीय सभ्यता को हजार वर्ष में वह घाव दिए जिसकी तुलना में हूणों की बर्बरता बच्चे की शैतानी भर नजर आती है और यही कारण है कि सर वी एस नायपॉल भारत को ‘आहत सभ्यता का देश’ कहते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि किसी भी अरब, तुर्क व मुगल ने भारत को अपनी मातृभूमि नहीं कहा है बल्कि सदैव ‘तुर्की सल्तनत’ या ‘मुगलिया सल्तनत’ ही कहा।
भारत उनके लिए उतनी ही मातृभूमि थी जितनी पुर्तगालियों व ब्रिटिशों की।
जहाँ तक हिंदू जनता का प्रश्न है वह उनके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी भर थी।
उनका इस देश, भूमि और इसके भूमिपुत्रों से कोई लगाव नहीं था बल्कि उनकी सारी कोशिशें इस काफिर सरजमीन को दीनदारों के मुल्क में बदलने की थीं।
वामपंथियों का लाडला अमीर खुसरो जिसकी हिन्द की प्रशंसा को वे प्रायः कोट करते हैं लेकिन आखिरी पंक्ति को छुपा जाते हैं जहां शायर कहता है कि–
“यह जमीन इसलिये अच्छी है क्योंकि इस्लाम की तलवार से काटे गए काफिर हिंदुओं के खून से धोकर इसे पाक किया गया है।”
यही कारण है कि-
-हमें शैव शक रुद्रदामन अपना लगता है,
-हमें बौद्ध कनिष्क की चीन विजय से गौरव होता है,
-हमें हूण राजा ‘नरेंद्रादित्य’ का अफगानिस्तान में चलता सिक्का हिंदू ही लगता है।
जबकि,
– हमेंअरबी संस्कृति थोपने वाला खलीफा उमर, उस्मान व अली आक्रांता ही दिखाई देते हैं,
-हमें गजनवी और गोरी लुटेरे ही दिखाई देते हैं।
-हमें शेरशाह, बाबर, अकबर और औरंगजेब विदेशी आक्रांता ही दिखाई देते हैं और विदेशी ही दिखाई देते रहेंगे।