Home अमित सिंघल इजराइल – हमास युद्ध का इजराइल की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव

इजराइल – हमास युद्ध का इजराइल की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव

by अमित सिंघल
218 views
इजराइल – हमास युद्ध का इजराइल की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव दिखना शुरू हो गया है। 95 लाख जनसँख्या वाले राष्ट्र में से लगभग 3,60,00 रिज़र्व सैनिको (इजरायली अग्निवीर) को युद्ध के लिए बुला लिया गया है। यह सभी सैनिक किसी उद्यम – जैसे कि कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, रेस्टोरेंट, होटल, ट्रांसपोर्ट, आईटी, रिसर्च, संचार, स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय संस्था इत्यादि – में कार्य कर रहे थे। इतने लोगो के एक साथ कार्य छोड़कर युद्ध में जुट जाने से अर्थव्यवस्था में ठहराव आ गया है।
परिणाम यह हुआ कि इजरायली मुद्रा, शेकेल, की विनिमय दर गिरने लगी। इजराइल के रिज़र्व बैंक ने कहा कि मुद्रा को स्थिर करने के लिए वह अपने 200 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार से 30 बिलियन डॉलर (लगभग ढाई लाख करोड़ रूपए) तक बेच देगा।
चूंकि अब युवा लोग युद्ध में लग गए है तथा अर्थव्यवस्था ठहर गयी है, तो इजराइल के टैक्स कलेक्शन में भी कमी आएगी। लेकिन सरकार का खर्च एकाएक बढ़ गया है। परिणाम यह होगा कि आने वाले समय में इजराइल पर लोन का बोझ बढ़ेगा; मंहगाई बढ़ेगी। अनुमान है कि जीडीपी में 2 से 3 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।
इजराइल रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद अधिकतर भारत से, एवं अन्य अमेरिका, रूस एवं सिंगापुर से आयात करता है। जबकि गैस के विषय में राष्ट्र अब लगभग आत्मनिर्भर है।
अब अगर भारत को भी युद्ध की विभीषणा से जूझना ही पड़ जाए, तो उस स्थिति में क्या होगा?
एकाएक अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी, रुपया गिरने लगेगा, मंहगाई बढ़ जायेगी, टैक्स का कलेक्शन कम हो जाएगा, कच्चे तेल एवं गैस की आपूर्ति में बाँधा आ सकती है। बिना संसाधन के फ्री का माल बाटने वाली कई राज्य सरकारों के पास अपने कर्मियों को वेतन देने का भी पैसा नहीं होगा।
तब आप 600 बिलियन डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा भंडार के महत्त्व को समझेंगे।
तब आप भारत के पास लगभग 75 दिन के स्ट्राटेजिक आयल रिज़र्व के महत्त्व को समझेंगे। अर्थात, किसी संकट के समय तेल की आपूर्ति बंद होने के बाद भी भारत अपनी आवश्यकता ढाई माह तक पूरी कर सकता है। यह रिज़र्व तब बनाया गया, जब कच्चे तेल का दाम सस्ता था।
ढाई माह भी तब, जब कहीं और से तेल ना मिले। तब आप अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बावजूद रूस से अच्छे संबंधो का महत्त्व समझेंगे।
तब आप अग्निवीर के महत्त्व को समझेंगे जो कुछ ही वर्षो में देश में फ़ैल जाएंगे, उद्यमों से जीवनयापिका करेंगे, और किसी संकट के समय अपनी सेवाएं प्रदान करने की स्थिति में होंगे।
तब आप सम्पूर्ण रेल ट्रैक के विद्युतीकरण का महत्त्व समझेंगे। कारण यह है कि भारत में कोयला प्रचुरता से उपलब्ध है। यद्यपि हमारे कोयले की गुणवत्ता अच्छी नहीं है, फिर भी उसे जला कर बिजली पैदा की जा सकती है। अर्थात, किसी भी युद्ध या तेल संकट के समय भी हमारी रेल व्यवस्था चालू रहेगी।
तब आप पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल की ब्लेंडिंग के महत्त्व को समझेंगे।
तब आप मेक इन इंडिया के महत्त्व को समझेंगे। भारत में निर्मित हथियार एवं आयुध के महत्त्व को समझेंगे।
तब आप सीमाओं पर उत्तम सड़के, इंफ्रास्ट्रक्चर के महत्त्व को समझेंगे।
तब आप डिजिटल भुगतान के महत्त्व को समझेंगे – क्योकि भारत अंतर्राष्ट्रीय पेमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कि वीज़ा, मास्टर कार्ड, स्विफ्ट इत्यादि के भरोसे नहीं रहेगा।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ना केवल तीव्र प्रगति कर रहा है, बल्कि राष्ट्र को आने वाले संकट एवं युद्ध के लिए भी रेडी कर रहा है।
हाँ, राहुल, अखिलेश, लालू पुत्र, ममता, पवार, केजरीवाल इत्यादि रेवड़ी बांटने में व्यस्त है। आखिरकार आंतरिक एवं वाह्य संकट एवं सुरक्षा से उनका क्या लेना-देना? यह कार्य तो मोदी सरकार का है।
मुझे भी संतोष है कि यह कार्य नरेंद्र मोदी सरकार का ही है।
तभी तो इस कार्य को मई 2024 में अगले पांच वर्ष के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुनः सौंपना है।

Related Articles

Leave a Comment