चेतना की यह बातें सुन कर संजय चुप लगा जाता। चुप-चुप बैठे-बैठे वह उस से लिपटने लगता। चूमने लगता। वह फुंफकारती, ‘‘यह कोई बेडरूम नहीं है।’’ ‘‘बेडरूम में इस तरह लिपटा या चूमा नहीं जाता। सीधे शुरू हो जाया जाता…
दयानन्द पांडे
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हार मान कर उस ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सब को चिट्ठियां लिखनी शुरू कीं। पर वो कहते हैं, न कि, ‘‘कहीं से कोई सदा न आई।’’ बहुत बाद में छपी छपाई औपचारिक चिट्ठी राष्ट्रपति,…
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हाय ! हम क्यों न हुए खुशवंत ! दयानंद पांडेय खुशवंत सिंह की याद तो हमेशा ही आएगी। हमारे दिल से वह कभी नहीं जाएंगे। और कि यह आह भी मन में कहीं भटकती ही रहेगी कि, हाय ! हम…
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नया संपादक मुख्यमंत्री का सिफ़ारिशी था। मुख्यमंत्री ने उसे संपादक बनाने के लिए कई लाख रुपए विज्ञापन के मद में एडवांस सूचना विभाग से अख़बार को दिलवा दिए। मुख्यमंत्री कांग्रेसी था पर संपादक भाजपाई भेजा उस ने। जातीय गणित के…
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‘‘कचहरी तो बेवा का तन देखती है, खुलेगा कहां से बटन देखती है।’’ तथ्य से वाकिफ होते हुए भी वह तब अपने को राम की भूमिका में पाता और समूची व्यवस्था को रावण की भूमिका में। वह ‘‘धर्मयुद्ध’’ के नशे…
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दरअसल लखनऊ में रिपोर्टरों ने तो राजनीतिक हलकों में काकटेली डिनर खा पी कर ऐसी ही रवायत बना दी थी। कई बार तो बिन बुलाए भी कई पत्रकार पहुंच जाते। बस उन्हें सूचना भर होनी चाहिए। और कई बार यह…
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‘‘कचहरी तो बेवा का तन देखती है, खुलेगा कहां से बटन देखती है।’’ तथ्य से वाकिफ होते हुए भी वह तब अपने को राम की भूमिका में पाता और समूची व्यवस्था को रावण की भूमिका में। वह ‘‘धर्मयुद्ध’’ के नशे…
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अब जब इतिहासकार , विचारक , कवि ,लेखक , आलोचक , चिंतक , अर्थशास्त्री , प्रशासनिक अफ़सर , पुलिस अफ़सर , सिपाही , दारोगा , वकील , जस्टिस और चीफ़ जस्टिस आदि-इत्यादि तक पार्टी तथा विचारधारा की पहचान से देखे…
