लखनऊ में अभी शहीद पथ पर एक ट्रक जा रहा था किसी का सामान लेकर. ट्रक से एक कपड़े की जूता रखने वाली यूज्ड अलमारी गिरी. ऐसी नई अलमारी 300 रुपए की मिलती है. आनन फ़ानन में लगा जैसे अमृत वर्षा हो रही हो.
एक कार वाले ने ज़बर्दस्त ब्रेक मार गाड़ी रोकी और अलमारी उठा कर भागा. पीछे पीछे ट्रक ड्राइवर भी आ गया वह हाथ जोड़ रहा था कि बाबू जी मेरी तनख़्वाह से पैसे कट जाएँगे. पर कार वाला भागते हुवे निकल गया.
अभी कुछ दिनों पूर्व ऐसे ही इसी हाइवे पर एक कार वाला युद्धक विमान का पहिया चोरी कर भाग गया. वैसे ऐसा करने वाले कोई शोषित वंचित नहीं महँगी गाड़ियों और महँगे घरों में रहने वाले लोग हैं.
ऐसी घटनाएँ इक्का दुक्का नहीं बल्कि पूरी तरह से सामान्य हैं भारत वर्ष में. यदि ऐसा नहीं होता है तो आश्चर्य होता है. कोई भी ऐक्सीडेंट हो जाए, सबसे पहले विक्टिम के पैसे गहने मोबाइल चोरी होंगे. अगर आम जनता नहीं चुरा पाई तो पुलिस से तो बचने का सवाल ही नहीं.
मेरा एक होटेल है. ढेरों विदेशी पर्यटक आते हैं और कुछ देशी पर्यटक भी. अब तक के हज़ारों विदेशी पर्यटकों में चोरी की एक भी घटना नहीं है. अपितु यह ज़रूर है कि कई बार वह स्वेच्छा से गिफ़्ट आदि देकर गए. देशी पर्यटकों ने तौलिया, बेड शीट, रज़ाई तक चोरी कर रखी है, इस हद तक कि अब इंडिविजूअल चोरी काउंट भी नहीं करते.
कोई आपात काल आ जाए देश में. जैसे अभी करोना आया था. देखिए आवश्यक वस्तुवों से लेकर दवाओं तक की चोर बाज़ारी होने लगती है.
महँगी चीजें छोड़िए लोग ट्रेन की लेटरीन के मग और बैंक के पेन को नहीं छोड़ते. ऐसा करने वाले बाहर से नहीं आते, बल्कि हमारे आपके बीच के हम आप ही होते हैं.
सुनने में कड़वा लगेगा पर यह जो बेसिक चरित्र बन गया है राह चलते चीजें चुरा लेने का – इज़्ज़तदार देशों में भारत मात्र का ही है. और यक़ीन मानिए देश की छवि विकास के साथ साथ चारित्रिक भी होती है. यह छवि और आदत भारत के विकास तथा सामाजिक उत्थान में सबसे बाधक है.