Home विषयकहानिया मेरा मित्र और जाड़े का यह मौसम
मेरे एक मित्र की माता जी, मुझसे अपने पुत्र, मतलब मेरे मित्र की उलाहना दे रहीं थीं कि “यह नबाब साहब सुबह बिस्तर से उठते नहीं। यहां तक कि इनके लिए बिस्तर तक मुझे पानी लेकर आना पड़ता है।”
मैंने मित्र को घूरते हुआ पूछा कि “ऐसा क्यों करते हो यार! माताजी की अवस्था हो रही है तुम्हें इस उम्र में माता जी को परेशान नहीं करना चाहिए।”
मेरे मित्र उस वक्त तो चुप रहे लेकिन जब उनकी मां चाय बनाने उठीं तो उन्होंने अपनी पीड़ा मुझसे साझा किया।
बोले- “यार! बात आलस्य की नहीं दरअसल जाड़े के दिन में रजाई में सोते वक्त, हाथ सूखा और गर्म रहता है। और तुमको तो मालूम ही है कि मुझे तम्बाकू (सूर्ती) खाने की आदत है। होता यूं है जब सुबह ठंड में हाथ भीगकर ठंडे और ठिठुरे होतें हैं उस वक्त सूर्ती के जिस्म से चूना ऐसा चिपक जाता है जैसे नयी सड़क पर कोलतार पर बिछी गिट्टियां । लाख ठोकने के बावजूद चूना, तम्बाकू की पत्तियों से लिपटा रहता है। अब जब उसे होंठों में पनाह मिलती है तो वो होंठ के भीतर की नाज़ुक त्वचा को काट देता है। वहीं गर्मियों एवं सूखी हथेलियों पर सूर्ती रगड़ कर ठोकने पर चूना ऐसे गायब होता है जैसे आदमी कि आहट पाकर खेत से नीलगाय। बस इत्ती सी परेशानी के खातिर सुबह-सुबह ठंड में अपने हाथ नहीं भिगोता।”
खैर! ठंड की फितरत ही है जलील करना!! रात को कम्बल ओढ़ाकर, ठोंक कर सुला देती है। सुबह बिस्तर पर उठने पर हाथ पकड़ लेती है। लाख चाहने के बाद बिस्तर से उठने ही नहीं देती। उठ कर बैठ जाइए तो बेड से जमीन पर उतरने नहीं देती। कमोड पर बैठने पर जांघों पर बेहद कड़ी-ठंडी चेतावनी देती है। हेलिकॉप्टर से बर्फ की पिचकारी मारकर भीतर तक बर्फ़ घोल देती है। ब्रश करने के बाद मुंह धुलने पर धमकाती है।
अब बात करते हैं नहाने की…. तो भैया! नहाने के नाम पर, हड्डियों तक से न नहाने की गुहार उठने लगती है। मैंने यह भी महसूस किया कि जाड़े के दिनों में नहाने की बाल्टी बहुत तेज भर उठती है। वहीं गर्मियों में पीने के पानी के लिए एक लीटर का बोतल भरने पर पूरा बोतल की नाक तक पानी आने में एक वक्त लगाती है।
नहाने के बाद कपड़े उतारने के बाद शरीर के रोवें बदन पर खड़े होकर ऐसा झड़ा लहराते हैं जैसे युद्ध में रेडक्रास की जहाज देखकर युद्ध में फंसी आवाम अपने जीवन को बचाने के लिए मदद की गुहार लगा रही हो। बाल्टी का मग्गा तीन चार बार भरकर वापस बाल्टी में पलटने के बाद कितनी बार इच्छा होती है कि वहीं मग्गा रुपी बन्दूक रखकर दोनों हाथ खड़ा कर बाथरूम से बाहर निकल आयें.. लेकिन परिवार द्वारा कोर्ट मार्शल के डर से पानी से भीषण युद्ध के बाद पानी की बूंदों से छलनी होकर कांपते हुए कमरे में प्रवेश करता हूं। इधर तौलिये का नाटक तो पूछिए मत! वो अपने बदन पर अलग से कुल्फी जमाकर बैठी रहती है. शयनकक्ष का फर्श तो ऐसा बेहूदा व्यवहार करता है जैसे हमसे कोई जान पहचान ही न हो। वो भी एकदम से ठंड की चाबुक लेकर तैयार।
मित्रों! सबसे बुरा हाल तो अंतर्वस्त्रों का है। जो सबसे गर्म प्रदेश के निवासी हैं वो भी बदन पर इतनी ठंडी पकड़ बनाते हैं जैसे कचहरी में तलाक़ का पेपर लेकर आये पति-पत्नी से मुलाक़ात हो रही हो। कम से कम तुम तो जलील मत किया करो यार। बेहद नजदीकी सम्बन्ध हैं तुससे।
लब्बोलुआब यह कि ठंड जलील करने के लिए आती ही है।

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