एक सुदर्शन नववुवक विगत पांच वर्षों से गांव की रामलीला में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का पात्र निभा रहे थे। इस पात्र में लीला करने के कारण गांव में उनका खूब सम्मान भी था। यहां तक गांव के तमाम लोग रामलीला खत्म होने के बाद एक दो महीने तक उनका अभिवादन भी उनके आदर्श पात्र के सम्मान के हिसाब से करते थे- “राम राम श्रीराम जी”
वैसे एक आम आदमी द्वारा किसी आराध्य एवं आदर्श का किरदार निभाना तथा पूरे वर्ष उसी किरदार में जीना, आसान नहीं। अभिनेता वर्ष के कुछ दिन तो रामलीला में अभिनय के कारण राम के किरदार में रंगा रह सकता है किन्तु अन्य महीनों में तो उन्हें एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही जीना है।
सामान्यीकरण की इसी अवस्था में वो विराट कोहली के दाढ़ी के प्रभाव में आये तथा सवा दो इंच लम्बी नोंकदार दाढ़ी उगा लिये। हांलांकि ऐसी दाढ़ी दीखने में भले ही सामान्य लगे किन्तु इसका रखरखाव एवं तेज हवा में भी उसकी नोंक बना और बचाकर रखना कोई मामूली बात नहीं। यह भी एक प्रकार की तपस्या एवं प्रतिक्षण तत्परता का द्योतक है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष के रामलीला की तैयारी जोरों पर थी लेकिन श्रीराम के पात्र निभाने वाले युवक पहले जैसे नहीं थे। उनके मुखमंडल पर एक नुकीली काली झाड़ उग चुकी थी।
रामलीला कमेटी वालों ने उन्हें देखकर कहा- “आपको प्रभु श्रीराम का पात्र करना है… और आप दाढ़ी रख कर रिहर्सल करने चले आये!! मतलब आप आप खुद सैलून जायेंगे कि हम यहीं बुलायें हज्जाम!!”
राम जी (कमेटी वालों से)- “देखिए! यह दाढ़ी पिछले दस महीनों के कठिन तप का प्रतिफल है। संभव हो तो दाढ़ी समेत किरदार करने की अनुमति प्रदान करें।”
रामलीला कमेटी- “होश में हैं?? आप प्रभु श्रीराम के किरदार के आगे इस बित्ते भर की दाढ़ी का मोह नहीं त्याग पा रहे। जा कर देखिए सड़क पर घूमकर देख आइए! हर तीसरा-चौथा ऐसी दाढ़ी लटकाकर घूम रहा है लेकिन प्रभु श्रीराम के मुकुट पहनने तथा उनका धनुष उठाने के लिए लोग तरसते हैं.. अपनी एड़ियां घिसते हैं। खबरदार जो दुबारा ऐसी बात कही हो।
राम जी- क्षमा करें! लेकिन संभव हो तो मुझे ऐसा पात्र दे दें, जिसमें दाढ़ी रहते हुए रामलीला में अभिनय किया जा सके।
कमेटी- “देखिए! रामलीला के सभी पात्र अपने अपने पात्र में डूबे हैं। हमे नहीं लगता इसके बाद आपको कोई दूसरे पात्र में मौका मिलेगा।”
राम जी- “मुझे लगता है कि मेरी दाढ़ी के हिसाब से मुझ पर परशुराम जी का पात्र बेहतर रहेगा।”
(इतना सुनना न हुआ कि रिहर्सल में डूबे परशुराम अपना प्लास्टिक का फरसा लेकर राम के निकट आ धमके।
परशुराम- “क्या कहा तुमने! तुम परशुराम बनोगे?? इसलिए कि तुम्हारे पास दाढ़ी है। राम यदि तुम ‘श्री राम’ के पात्र में न होते तो आज मेरा फरसा….
देखो! तुमने जो दाढ़ी रखी है वो पूरी तरह विराट या किसी फिल्मी हीरो की नकल है लेकिन मेरी दाढ़ी वर्षों से सिर्फ भगवान परशुराम के पात्र के लिए बढ़ी चली आ रही। मैंने हर फैटी आइटम इसलिए त्याग दिया कि मेरे शरीर पर मोटापा न पसरे।मेरी हड्डियों की नुमाइश लगी रहे। पूरे वर्ष क्रोध अपने नाक पर लेकर घूमता हूं कि रामलीला में परशुराम के किरदार में मुझे गुस्से के लिए कोई अतिरिक्त अभिनय न करना पड़े और तुम! अपनी फैशनेबल दाढ़ी के लिए मेरे फरसे को थामना चाहते हो। खबरदार…”
राम- “क्षमा महर्षि परशुराम क्षमा!.”
कमेटी- “देख लिया कि कुछ बाकी है!!!”
राम- अच्छा! गुरु वशिष्ठ का किरदार !!
वशिष्ठ (अपनी तपस्या से उठकर) – “राम! तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं कि एक मृत बाल के लिए अपने राजकुल के गुरू के किरदार को हड़पना चाह रहे हो। तुम्हें मालूम भी है कि तुम्हें इस किरदार में आने के कितने श्लोक याद करने पड़ेंगे ??
और हां! रामलीला तक तुम्हारे वश का नहीं कि तुम इतने श्लोक याद कर पाओ। पूरे वर्ष मैं तुम्हारी तरह दाढ़ी नहीं सेट करता हूं। संस्कृत के कठिन श्लोक बांचता हूं।”
राम जी निराश होकर एक अन्तिम आस के साथ दशरथ की तरफ देखकर धीमे से बोले- “न हो तो दशरथ का पात्र ही मिल जाता तब भी कुछ!!”
दशरथ- “बेटा राम! मेरा पूरा रिहर्सल तुम्हारे वियोग में कट रहा है और तुम ही मुझे मेरे पद से च्युत करने में लगे हो। तुम्हें विश्वास नहीं होगा लेकिन मैंने आज तक अपनी दाढ़ी में इसलिए खिजाब नहीं लगाया कि सालों-साल मुझे लोग दशरथ जैसा वियोगी पिता महसूस करें। पिछले वर्ष मेरे बड़े साढ़ू के छोटे लड़के की शादी थी। मेरी पत्नी ने एड़ी से चोटी एक कर दिया कि उनके दीदी के लड़के की शादी में मैं अपने केश को काला करके जाऊं। दो बार तो गलोरियल एडवांस लेकर मेरे नींद में जाने के बाद धावा बोलीं लेकिन मैं कच्ची नींद से जागकर घर से बाहर भाग निकला.. जानते हो किसलिए??”
राम जी- “किसलिए??”
दशरथ- “सिर्फ इसलिए कि मुझे पूरे वर्ष तुम्हारे वियोग में तड़पना था। मुझे रामलीला में तुम्हारे लिये कलपना था।”
अब राम जी ने एक हाथ से धनुष उठाया तथा दूसरे हाथ को अपनी दाढ़ी पर फेरते हुए बोला- बुलाइये! हज्जाम… हम ही बनेंगे श्रीराम।