कल अर्बन कम्पनी से बाल काटने के लिए नाई बुलाया. नाई मुस्लिम था. जैसी अपनी आदत है, उससे पूँछा कि तुम्हारी बिरादरी का वोट कहाँ जाएगा. मैं बोलता कम हूँ सुन कर अब्ज़र्व ज़्यादा करता हूँ.वह पहले सेक्युलरिज़म, हम सब एक हैं, नेताओं ने आग लगा दी, नेता दंगा करवाते हैं. मैं बिल्कुल मासूमियत से प्रश्न करता कि हाँ अखिलेश यादव जी ने पिछले कार्य काल में खूब दंगे करवाए, बहुत दुष्ट हैं. वह झुंझला जाता. समझाता कि भाजपा ने सब किया.
फ़िर वह भारत पाकिस्तान दोनो ही देशों के लोगों के दिल एक ही हैं, पर धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों ने आग लगा दी, दुश्मनी पैदा कर दी. मैं पूँछता सच बोलते हो नेहरू चाचा बहुत दुष्ट थे, दो युद्ध हुवे भारत पाकिस्तान में. इंदिरा गांधी तो और दुष्ट थीं, अमन पसंद मुल्क के दो टुकड़े कर दिए. वह और झुंझला जाता कि सब मोदी ने किया.
फ़िर वह बताने लगता कि उनकी क़ौम अमन पसंद है, विकास पसंद है. अंत तक देखेंगे हो सकता है आम आदमी पार्टी को वोट दे दें. मैं उससे मासूमियत से पूँछता कि अच्छा तभी पिछले सांसदी चुनावों में मुस्लिमों ने उत्तर प्रदेश में आप को जिताया. वह और झुंझला जाता.
अंत में मैंने उसे समझाया कि सच बोलते हो ये शियासत वाले बहुत दुष्ट होते हैं – भाजपा वाले. जब पार्टी बनी तक न थी तब भारत पाक युद्ध करवा दिया. जब सत्ता न थी तब दंगे करवा देते थे जीतने के लिए. अब तो सत्ता है संसाधन हैं, सोंच लो क्या करेंगे. जान है जहान है, वोट डालने के मौक़े आते जाते रहेंगे. अपनी बिरादरी में समझाना जीत तो होनी नहीं, ज़बरन जान की बाज़ी क्यों लगानी. और तुमने मुझे इतना समझा दिया तो मैं भी डर गया हूँ, भाजपा को ही वोट दे दूँगा, क्या फ़र्क़ पड़ता है सपा कांग्रेस जीत कर भी भाजपा की चाल में फँस जाते हैं, अमन चैन रहता नहीं, तो हम क्यों अपनी जान की बाज़ी लगाएँ.
वह समझा या नहीं समझा, पर इतना ज़रूर रहा कि उसका चेहरा लटक गया.