उन्हीं दिनों एक फिल्म आई थी जिस्म। जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु अभिनीत इस फिल्म में एक गाना तब खूब हिट हुआ था , जादू है , नशा है / मदहोशियां हैं । जितना मादक गीत था , उस से भी ज़्यादा मादक दृश्य था । उन दिनों इस फिल्म का प्रोमो विभिन्न टी वी चैनलों पर चलता था जिस में समुद्र किनारे लहरों पर खेलते हुए जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु दिखते। जादू है नशा है गीत पर बिपाशा समुद्र किनारे लेटे हुए जॉन के ऊपर आक्रामक सेक्सी अंदाज़ में बैठ जाती थीं। जनवाणी प्रकाशन के अरुण शर्मा हर तारीख पर दिल्ली से लखनऊ आते। होटल में बैठे-बैठे जब यह जादू है नशा है / मदहोशियां हैं , का दृश्य टी वी पर देखते तो कुछ खीझते , कुछ मुस्कुराते हुए बोलते , यह युद्ध तो सरे आम चल रहा है। इस युद्ध पर कोई मुकदमा नहीं कर रहा। आप के अपने-अपने युद्ध पर ही मुकदमा होना था ? अरुण शर्मा से भी ज़्यादा मुश्किल थी लखनऊ के यूनिवर्सल बुक डिपो , हज़रतगंज के प्रोप्राइटर भी इस मुकदमे में घसीट लिए गए थे। क्यों कि यूनिवर्सल बुक डिपो पर अपने-अपने युद्ध बिक रहा था। तो यूनिवर्सल के खिलाफ भी कंटेम्प्ट का मुकदमा हो गया था। लेकिन उन के एक रिश्तेदार हाई कोर्ट में बड़े वकील थे। सो वह निश्चिंत थे और मुझे हौसला बंधाते रहते। कहते हम आप के साथ हैं , डोंट वरी।