किसी भी युद्ध में जय पराजय का निर्णय इस बात से होता है कि लड़ने वाले जानते हों कि लड़ने का मकसद क्या है।
मुहम्मद की मक्का विजय से उमर की मृत्यु तक 14 साल के छोटे से अर्से में इस्लाम ईरान से मिस्र तक पूरी तरह फैल गया था। मुस्लिम सेनायें जहाँ जाती थीं वहां से सिर्फ उनकी विजय की खबरें आती थीं।
ऐसा क्या हुआ कि बर्बर, जंगली अरब यकायक विश्व महाशक्ति बन गये?
शिवाजी से बाजीराव तक ऐसा क्या हुआ कि भुने चने की थैली बांधे, भाला और तलवार टांगे मराठा घुड़सवार आतंक की प्रतिमूर्ति बन गया?
1949 में कुछ लाख की जनसंख्या वाले एक छोटे से राष्ट्र जिसकी स्थापना को कुछ घंटे ही हुये थे, पर एक साथ कई लाख सेनायें टूट पड़ीं लेकिन उसने उन्हें धूल ही नहीं चटाई बल्कि पचास वर्षों में अपना भूक्षेत्र कई गुना बढ़ा लिया।
ऐसा क्या हुआ विश्व में कायर, कृपण और बनिया माने जाने वाली कौम यकायक अजेय योद्धाओं में बदल गई?
इन ऐतिहासिक जातीय चरित्रों का ट्रांसफॉर्मेशन कैसे हो गया? जवाब बस एक ही है। इनके योद्धाओं को पता था कि वे क्यों लड़ रहे हैं?
मुस्लिमों के जाहिल दिमाग में गंद ही सही लेकिन क्रिस्टल क्लियर था कि वे इस जहां में गाजी बनकर काफिरों के माल ए गनीमत पर मौज करेंगे और मरकर जन्नत में हूरों के साथ ऐश करेंगे।
भले ही कितना भी मूर्खतापूर्ण लगे लेकिन उनका विश्वास इतना गहरा था कि हर अरब एक अपराजेय योद्धा बन गया फिर चाहे उनका सेनापति खालिद हो या अम्र।
यहूदियों को भी पता था और है कि वे क्यों लड़ रहे हैं। उन्हें अच्छे से पता था कि उनके पास संसार से विलुप्त हो जाने से बचने का यह आखिरी मौका है इसलिये मोशे दयान हो या रॉबिन।
छत्रपति संसार से भले चले गए लेकिन हर मराठा को बता गये कि वे किसके लिए व क्यों लड़ रहे हैं।
बाजीराव के युग तक हर मराठा जानता था कि वह ‘हिंदू पद पादशाही’ के लिये लड़ रहा है, उसका लक्ष्य है दिल्ली और दुश्मन थे मुगल।
वर्तमान भारत में भी युद्ध छिड़ा है, लंबा और दीर्घकालीन।
पहले राउंड में ‘वे’ विजेता रहे क्योंकि उन्होंने भारत की एक तिहाई भूमि हड़पी और भारत को अंदर बाहर से घेर रखा है।
पाकिस्तान के मु स्लिमों की तरह भारत का प्रत्येक मु स्लिम जानता है कि उसका ध्येय क्या है और उसका दुश्मन कौन है?
सैफ अली खान से लेकर थूक चटाने वाले नौशाद तक और ओवैसी से देवबंद के मौलवियों तक का एक ही लक्ष्य ‘गझवा ए हिन्द’ और एक ही दुश्मन – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ जिसके थैले से कभी आडवाणी, कभी मोदी निकलते हैं।
इधर हिंदू?
एक तो हिंदू को जगाना ही कठिन हैं और जाग भी जायें तो उन्हें ये तक नहीं पता होता कि वे लड़ किस चीज के लिए रहे हैं और किसके खिलाफ लड़ रहे हैं।
क्या सवर्णों के प्रभुत्व के लिए?
क्या ओबीसी दलितों के आरक्षण के खिलाफ?
क्या बाबा साहेब अंबेडकर के खिलाफ?
क्या संविधान के खिलाफ?
क्या मंहगाई के खिलाफ?
क्या पैट्रोल कीमतों के खिलाफ?
इ स्लामिक आतंकवाद के खिलाफ?
या फिर….
योगी मोदी के खिलाफ?
आखिर आप किसके लिए और किसके खिलाफ लड़ रहे हैं?’उन्हें’ तो स्पष्ट पता है।
देवेन्द्र सिकरवार