हमारे गांवों ने भी खूब प्रगति की। यहां मोबाइल से लेकर मोमो तक सब-कुछ मिलता है लेकिन रियायती दर पर!! आपको हर चौराहे पर चाऊमीन-बर्गर जैसे चाइनीज़ खाद्य पदार्थों की एक श्रृंखला मिलेगी। मेरा अनुमान है कि यदि चाइना वाले भारत में चाऊमीन तथा चाइनीज़ व्यंजन बनाने वालों को ही अपने देश की नागरिकता दे दें तब भी हमारे देश की जनसंख्या कम से कम पांच प्रतिशत घट जायेगी।
वैसे अब हमारे गांव के चौराहे तथा कस्बे भी अच्छी एवं लज़ीज़ मिठाईयों के मोहताज नहीं रहे। रसमलाई से लेकर कलाकंद, सब कुछ उनके रेफ्रिजरेटर में आपकी प्रतीक्षा में बैठा मिलेगा। मित्रों! इन सब सुविधाओं के बावजूद आज भी पुराने ढर्रे की चाय की दुकानों का बोलबाला है वहां। आपको ऐसी पुरानी दुकानों पर अदरक वाली गर्मागर्म चाय, लगातार… उबलती मिलेगी। लेकिन हां!! वहां की जलेबियां, फ्राई चने, समोसे तथा सूखी सोनपापड़ी… तवे से लेकर मर्तबान तक अपने रिहाई की आज भी गुहार लगा रहें हैं।
ऐसा लगाता है मानों मृत जलेबी तथा समोसे को गांव की सैकड़ौ मक्खियां, चारों तरफ से घेरकर रूदाली कर रहीं हों।
ऐसी दुकानों पर पहुंच कर समझ नहीं आता कि ये दुकानें जलेबी, चाय, समोसे बेचने के लिए हैं या इन सब के आड़ में यहां बड़ी मात्रा में मक्खी पालन किया जा रहा है। और सबसे मजे की बात हमारे ग्रामीण हलवाई मक्खियों के प्रति इतने संवेदनशील होते हैं कि उनके पोषण के लिए अपने खाद्य पदार्थों को ढककर रखना… अपराध जैसा समझते हैं। आपको जलेबी के बदन के हर मोड़-घुमाव पर दर्जनों की संख्या में बैठीं मक्खियां… आराम करती ऐसे मिलेंगी जैसे किसी गांव की पुलिया पर भर्ती की तैयारी से थके, गांजा फूंककर आये तथा नव युवतियों को देखकर अपनी अंगड़ाई तोड़ने वाले नवयुवक।
हलवाई के पास जब तक कोई ग्राहक नहीं आता.. मजाल क्या कि वो मक्खियों तथा जलेबियों के आलिंगन एवं उसके जिस्म से मिठास की रंगदारी वसूलने में अवरोध पैदा करे।
लेकिन जब उसकी नंगी दुकान पर कोई ग्राहक आता है तब हलवाई धीरे से अपने हाथ के इशारा से उन्हें उड़ा देता है फिर उन्हीं पीड़ित जलेबियों में से डेढ़ सौ ग्राम ग्राहक को तौल देता है। लेकिन ये मक्खियां!! इतनी बदतमीज कि जलेबी अभी तराजू पर गिरीं नहीं कि वो दुबारा उन्हें अपनी बाहों में लेकर ग्राहक के सामने ही नग्न चुम्बन का तमाशा करने लगतीं हैं । तराजू पर कुछ कम या ज्यादा होने पर हलवाई जब दुबारा जलेबी के थाल में हाथ घुसाता है तो पाता है कि बेशर्म मक्खियां दुबारा अपने शयनकक्ष में अंतरंग हो गयीं। इतनी बेशर्मी के बावजूद भी वो किनारे से एक लुटी-पिटी जलेबी निकाल कर अपना तराजू बराबर करता है और चुपचाप पैसे काटकर चायपत्ती और चाय की उबाल देखने लगता है। ऐसा नहीं कि उसे मालूम नहीं कि उसकी नाज़ुक जलेबियां को सैकड़ों आवारा मक्खिया़.… घेरकर उसका जिस्म लूट रहीं हैं। लेकिन जब जलेबियों के खरीदारों को कोई आपत्ति नहीं तो उन्हें क्या आपत्ति!! वो तो सिर्फ इतना ख्याल रखते हैं कि ग्राहक के सामने हाजिर करते वक्त, उनकी जलेबियों पर कोई बदतमीज हाथ न फेरे… बावजूद इसके एक दो बेहुदे हाथ फेर ही जातें हैं.. और ग्राहक यह सब देखने के बाद भी जलेबियों के रस को चूसने में कोई ऐतराज़ नहीं करता।