Home विषयकहानिया गांव का पोस्टमॉस्टर

एक गांव में एक पोस्टमास्टर साहब रहते थे। बच्चे, उनके तीन थे लेकिन उनका मझला लड़का बचपन से शरारती तबियत का था। हांलांकि शरारत करते-करते कुछ शरारती, लपककर…अपराध की दुनिया का चखना, चखने लगते हैं। ऐसे ही चखने की जद में आकर, पोस्टमास्टर साहब के मझले… शाम को गांव की पुलिया पर बैठे-बैठे एक दूधिए की एटलस साइकिल लूट बैठे।हांलांकि लूट की बात सिर्फ रात के अंधेरे तक ही दबी रही लेकिन सुबह उजाला होने से पहले ही कुल सात खाकी वाले पोस्टमास्टर साहब के घर पर जीप समेत हाजिर!! पोस्टमास्टर साहब जब तक कुछ जानते-समझते तब तक उनका मझिला चद्दर समेत पुलिस की जीप में बिठाकर गांव की पगडंडी से धूल उड़ाते हुए बाबूजी की आंख से ओझल हो गया।

 

मझला, सैकड़ौ गालियां… दर्जनों लाठियां खाकर तथा पोस्टमास्टर साहब द्वारा पूरे पांच हज़ार की मोटी रकम लुटाकर.. मझला तीन दिन बाद घर के डाकखाने वाले बरामदे में पहुंचा। हांलांकि मझले की घर वापसी के बाद उसके बदन पर चप्पल तोड़ने वाली रस्म में पोस्टमास्टर साहब की तरफ से रत्ती भर भी कोताही नहीं बरती गयी। घर वापसी के एक सप्ताह तक मझला, पोस्टमास्टर साहब से इतना दूरी बनाकर चल था जितना बिना लाइसेंस हेलमेट वाला, ट्रैफिक पुलिस से। लेकिन पोस्टमास्टर साहब की गालियां मौके-बेमौके मझले के कर्ण पटल पर उसके कारनामे की जयघोष करतीं रहतीं थी।घटना के नौंवे दिन, अचानक पोस्टमास्टर साहब ने अपने इकलौते नागरे से, मझले पर ‘सात नागरे’ उस वक्त बजाये जब मझला शौच से आकर हाथ धुल रहा था। हांलांकि सातवें नागरे तक मंझला, हाथ भले धुल नहीं पाया लेकिन रसोई तक पहुंच कर अपनी अम्मा के ओट पाकर..नागरे की गिनती को ईकाई से दहाई नहीं होने दिया. हांलांकि बाबूजी रसोई में नहीं घुसे…वजह यह कि अभी भी उनके एक पैर में नागरा था।
मझले ने अम्मा से पूछा-
“अम्मा- का बात है बाऊजी एक हफ्ता बाद बिना बात के एतना फायर!!!
अम्मा- अरे! ऊ धनश्यामवा क पूत कलिहां अपने बाप के भैंइस खरीदे खातिर इकहत्तर सौ मनीआर्डर भेजलस है..उहे देखकर तमतमाईल बानं तुहार बाप। कहत रहलं “एक ठो इ लइका बा जवन धनश्यामवा के सात हज़ार भैंइस खरीदे के भेजलस और एकरे कुकर्मे हमके मौके क खेत रेहन धरे के परल “
मित्रों! आवश्यक नहीं कि आपका अपराध ही आपको दण्डित करवाये। बल्कि आपके बराबरी के समाज में किसी की उपलब्धि भी आपके अपराध में दो चम्मच साबुत लाल मिर्च घोल सकती है।
आर्यन का गांजा फूंककर हवा में उड़ना और उसी समय काल में ‘वेदान्त माधवन’ का पानी में तैर कर अवार्ड जीत जाना वैसे ही है जैसे धनश्याम के पूत द्वारा अपने बाबूजी को भैस खरीदने के लिए इकहत्तर सौ मनीआर्डर करना।
मतलब एक हफ्ते बाद भी सात नागरा।

Related Articles

Leave a Comment