Home हमारे लेखकनितिन त्रिपाठी अखिलेश की रैलियों में भीड़ का सच

अखिलेश की रैलियों में भीड़ का सच

by Nitin Tripathi
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भाजपा जैसे दलों में अगर आप टिकट की कामना करते हैं तो पार्टी बोलती है फ़ील्ड पर काम करो. इसका संक्षिप्त अर्थ यह होता है कि रैलियों में भीड़ ले जाने का प्रबंध करो, पार्टी के सम्मेलनों का खर्चा पानी उठाओ. हर विधान सभा से टिकट माँगने वाले 15 -20 लोग होते ही हैं. तो चुनाव की तैयारी के समय पार्टी का खर्चा पानी चलता रहता है. रैलियों में भीड़ लाने वाले भी यही लोग होते हैं. कोई भी व्यक्ति यदि टिकट माँग रहा होता है तो इतना सामर्थ्य / पैसा रखता है कि पाँच दस बस भर लोग जुटा ले जाए. अच्छा लगता है रैली में भीड़ हो, खाने पीने की व्यवस्था हो. ध्यान दें यह वोट देने वाले लोग नहीं होते बल्कि किसी इंडिविजूअल से व्यक्तिगत प्रेम / पैसे भर जुड़े होते हैं. टिकट चुनाव से बस पंद्रह बीस दिन पहले किसी एक को मिल जाएगी.
भाजपा के केस में भाजपा को मालूम होता है उसे किसी उम्मीदवार की वजह से एक वोट न मिलना. एक को टिकट मिली ऊनीस को नहीं मिली, वह नाराज़ होकर भी कुछ न कर पाएँगे – इधर वोट कमल / मोदी / योगी के नाम का होता है.
सपा के केस में उल्टा होता था. इधर डेढ़ दो साल पहले टिकट घोषित हो जाता था. पार्टी के नाम पर MY वोट + थोड़ा OBC वोट. डेढ़ दो साल में जिसे टिकट मिला है वह अपनी जाति गत वोट ले आए, पैसा खर्च कर डेढ़ दो साल में सेटिंग कर वोट ले आए, यह सब मिला जुला कर कैंडिडेट जीत सकता था. सपा कभी रैली वाली पार्टी न रही.
अखिलेश नादानी में इस बार सपा का टिकट वाला सिस्टम भाजपा जैसा करके चल रहे हैं. टिकट ऐन चुनाव से एक महीना पहले देंगे. तब तक जितने टिकतार्थी हैं वह रैली में भीड़ का इंतज़ाम करें, भैय्या जी को रसगुल्ले खिलाएँ. अच्छा लगता है. पर ज़मीनी समस्या यह है कि जिस दिन इनका टिकट कटा यह सब शांत हो जाएँगे / ग़ायब हो जाएँगे, अंदर ही अंदर भाजपा का समर्थन करेंगे. सपा को कोई सिद्धांत वस वोट नहीं देता, बस समीकरण वस वोट देता है – अंतिम दिन टिकट वितरित करने से उम्मीदवार जो व्यक्तिगत वोट ख़रीद कर लाता था, वह सम्भव नहीं होता. ऐन मौक़े पर चुनाव आयुक्त आदि सख़्त होते हैं तो उस महीने पैसा ज़्यादा नहीं फूंका जा सकता.
भाजपा इस खेल की महारथी है. ऐन मौक़े पर टिकट बाँटना, कार्यकर्ताओं / सिद्धांत वादी वोटेर / सपोर्टर का जान लगा देना, ऐन मौक़े पर केंद्रीय कृत विज्ञापन, होर्डिंग, न्यूज़ आदि चलवा देना, ढेरों नेताओं को गाँव गाँव प्रचार के लिए उतार देना – भाजपा इस जंगल की शेर है.
अखिलेश क्षणिक लाभ और खुद की क्षणिक ख़ुशी के लिए हर सीट पर सपा के पाँच हज़ार वोटों का नुक़सान कर रहे हैं. यह लुटायन मीडिया / ऑस्ट्रेल्या में पढ़े सलाह कार / चमचे न समझ पाएँगे, न समझा पाएँगे. यह ज़मीनी राजनीति है जो ज़मीन पर धक्के खाने से आती है

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