Home विषयमुद्दा लकड़बग्घा

19 साल का आदित्य त्यागी,कई दिनों से काशी के प्रतिष्ठित प्राइवेट अस्पताल के चक्कर लगा रहा है,यूपी में डेंगू और चिकनगुनिया जैसे नए वेरिएंट का प्रकोप है,जिसके बारे में डॉक्टर्स कुछ खास बता नहीं रहे,बस टेस्ट पर टेस्ट और दवाएं पर दवाएं प्रेस्क्राइब करते जा रहें और रोगी और उसके परिवार वालों से,अपनी मोटी फ़ीस डकारते जा रहे हैं।आदित्य रोज़ यहां 18 से 19 घंटे बिता रहा है,उसकी तरह रोज़ 700–800 नए रोगी और पुराने भर्ती रोगियों के परिवार वाले डॉक्टर से परामर्श लेने के लिए अपने नंबर आने की प्रतीक्षा में यहीं पूरे दिन बैठते हैं,वो भी करीब 9 से 10 घंटे बैठते हैं,डॉक्टर से मिलते हैं,फिर दवाएं लेने के लिए लाइन में 2 घंटे खड़े रहते हैं,ये ही आजकल प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की दिनचर्या है।आदित्य को कई लोग मिले यहां,कुछ पीड़ित,कुछ संभालने वाले,कुछ तमाशा देखने वाले,कुछ पीड़ा देने वाले,और कुछ ऐसे आत्मा के व्यापारी जो आपको उनके जैसा ही बनाने के इच्छुक हैं,वो दूसरों के आदर्शों का मज़ाक उड़ाते हैं,वो जिनको आदर्श मानते हैं,उनमें कमियां निकालते हैं,ताकि आदर्शवादी व्यक्ति का अपने आदर्श पर विश्वास टूटे और वो भी उनके जैसे हो जाएं।अस्पताल की स्मेल से आदित्य को मिचली आ रही थी,दम सा घुट रहा था,तो वो अस्पताल के बाहर बने गार्डन में एक बेंच पर आ कर बैठ गया।वहां आदित्य को एक ऐसा ही लकड़बग्घा मिला,जो देहाें का नहीं,आत्माओं को नोच खाने के,इंतज़ार में घात लगाए बैठा है,और आज आदित्य उसका शिकार है..
“हैलो बेटा किस लिए आए हो यहां?तुम्हें कुछ हुआ है या कोई एडमिट है यहां?”
“नमस्ते सर एक्चुअली वो पापा–मम्मी दोनों को 5 दिन पहले डेंगू डिटेक्ट हुआ है,उसी शाम टेस्ट में प्लेटलेट भी काफ़ी कम आई है,डॉक्टर विक्रांत त्रिवेदी ने उन्हें आईसीयू में एडमिट किया है,घर में कोई और है नहीं तो उनका खयाल रखने,दवाई इंजेक्शन लाने मैं ही रहता हूं यहां।”
“हम्मम 3–4 दिन से तुम्हें देख रहा हूं,या तो मोबाइल में कुछ पढ़ते रहते हो या ये स्वामी विवेकानन्द की किताब पढ़ते रहते हो,बाकी बच्चे इंस्टाग्राम या ऑनलाइन गेम खेलते हैं,तुम्हारी एज ग्रुप के,तुम उन सबसे थोड़े डिफरेंट लगे इसलिए पूछ बैठा।”
“सर एक्चुअल बात ये है कि,यहां कुछ और करने को तो है नहीं,चारों तरफ़ बस पीड़ा है,दुख है और इस दुख का व्यापार करने वाले कुछ लोग हैं,तो इसलिए अपना समय स्वामी विवेकानंद की कर्मयोग को पढ़ने में,या सोशल मिडिया पर नेताजी से रिलेटेड लेखों और ब्लॉग को पढ़ने में लगा रहा हूं,इससे मन व्यथित नहीं होता,हिम्मत मिलती रहती है,नहीं तो यहां दूसरों का दुःख देख स्वयं दुखी हो जाना बहुत आसान है,और वो हुआ तो मम्मी पापा की सेवा करने में दिक्कत आएगी,इसलिए,
अपना फोकस सही जगह रखता हूं।”
“हम्म बेटा ये संसार ही दुःख है,सिगरेट पियोगे?”
“नहीं सर,मैं नहीं पीता,मुझे पसंद नहीं।”
“पसंद नहीं मतलब कभी ट्राई किया है कॉलेज में?”
“नहीं सर दूसरों को पीता और इसको अपनी आदत बनाता देख पसंद नहीं।”
“पर जिस स्वामी विवेकानंद और बोस को तुम पढ़ रहे हो ये दोनों पीते थे सिगरेट और पाइप,वो पीते थे तो तुम भी ट्राई कर सकते हो,उनके जैसा बनना चाहते हो तो उनके जैसे शौक भी पालो।”
“सर,क्षमा करिएगा पर पहली बात मैं उनके जैसा बनना नहीं चाहता,मैं कुछ नहीं हूं जो उनके जैसा बनूं,मुझे उनकी अच्छी आदतें और उनका संघर्ष,उनकी तपस्या उसके लिए पढ़ना हिम्मत देता है,मेरा फोकस कभी उनकी इन बुरी आदतों पर रहा नहीं,वो इनकी भूल थी,जिनका दोनों ने स्वास्थ्य संबंधी रूप में दंड भुगता,जब नेताजी अज्ञातवास में भगवन जी और गुमनामी बाबा के रूप में जीवन बिता रहे थे तो उनका नियमित इलाज करने अयोध्या(तब फैज़ाबाद)से डॉक्टर बनर्जी आते थे,उस आदत ने उन्हें बहुत पीड़ा पहुंचाई और वो चाहते थे कि वो ये आदत छोड़ दें,पर नहीं छूटी।मैं वही गलती दोहराऊंगा जो उनसे हुई और वो भी जानबूझकर,तो मैं भी भुगतूंगा,कोई भी जो गलतियां पर गलतियां जानबूझकर करेगा,वो दंड भुगतेगा,फिर वो कोई भी हो!”
“तो तुम कहना चाह रहे हो,कि मुझे इसके लिए दंड मिलेगा?”
“सर,फिर कह देता हूं,दंड तो सबको मिलेगा,किसी न किसी रूप में,ये ब्रह्मांड का नियम है,उसका आदर्श जो तोड़ेगा,
वो भोगेगा,श्री कृष्ण कहते हैं,तुम अगर दंड भुगतने के लिए उद्यत हो,तो करते रहो बुरे कर्म,अच्छे कर्म करोगे तो वैसा फल पाओगे,बुरे कर्म करोगे तो उन कर्मों अनुसार वैसा फल पाओगे”
“भाड़ में जाए ऐसे आदर्श,मैं तो इतने सालों से पी रहा हूं,साथ में योगा कर रहा हूं,मुझे तो कुछ नहीं हुआ।”
“सर,हो सकता है आपको कुछ नहीं हुआ इस आदत से,पर उन्हें तो हुआ जो आपके करीब हैं,जिनके फेफड़ों में ये धुआं जाता है।”
“ऐसे तो गाड़ियों का,फैक्ट्रियों का धुआं भी जाता है फेफड़ों में,मैं डॉक्टर हूं मुझसे ज़्यादा नहीं तुम जानते हो,ना ही तुम्हारे स्वामी और बोस ने मेडिकल साइंस पढ़ी है,इनको पढ़ कर बस कष्ट मिलेगा और कुछ नहीं।”
“सर,आप एक डॉक्टर हैं,आप मुझसे बेहतर जानते हैं,सच है कि धुआं गाड़ियों का और फैक्ट्रियों का फेफड़ों में जाता है,वो जानबूझकर नहीं करते ये,अब धीरे धीरे सब सौर ऊर्जा पर जाएगा,और ये जानबूझकर ऐसा धुआं नहीं निकाल रहे,तब तक कोई ऑप्शन नहीं था,पर जो भी सिगरेट पी रहा है उसके पास एक ऑप्शन है,अपने आस पास के लोगों को उस धुएं से बचाने का।”
“मैं जानबूझकर नहीं पीता हूं,मेडिकल कॉलेज में आदत लग गई थी,स्ट्रेस को कम करता है।”
“सर,वो स्ट्रेस को कम नहीं करता,बस एक भ्रम की स्थिति पैदा करता है,कि उसे पीने से स्ट्रेस कम होता है,वो एक स्टिमुलेंट है और कुछ नहीं,स्ट्रेस वाकई में कम करना है तो योग करिए, जो आप सिगरेट के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए करते हैं,वो बेहतर काम करेगा।”
“ये सब फर्जी बातें हैं,मैंने तुम्हारे आदर्शों के गुरुओं की पोल खोल दी,इसलिए तुम ये सब कह रहे हो”
“सर,मैं उन्हें बेहतर रूप में समझता हूं,उस समय सिगरेट पीना,बुरा नहीं माना जाता था,एक रॉयल होने की,एक जेंटलमैन होने की निशानी थी,जो अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित थी,उससे पहले फतेह पुर सीकरी में अकबर के एक खास पारसी चिकत्सक अबु फतेह गिलानी ने हुक्के का चलन भारत में आरंभ किया था,तब इन सबके स्वास्थ्य के दुष्प्रभाव पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था,और ये तो बिल्कुल नहीं सोचा था कि,पैसिव स्मोकिंग ज़्यादा खतरनाक है,और सर मेन बात ये,जितना स्वामी जी और नेताजी ने राष्ट्र और सनातन के लिए किया उतना किसी ने नहीं किया,मैं जानता सब कुछ हूं,उनके बारे में,लेकिन मैं उनकी की हुई गलतियों को दोहराने के लिए नहीं उन्हें पढ़ता हूं,इतिहास पढ़ता हूं,ताकि वो गलतियां मुझसे न हों जो मेरे पूर्वजों से हुईं और जिनके कारण उन्हें और राष्ट्र को नुकसान हुआ।स्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किसी को भी धूम्रपान करने के लिए मजबूर नहीं किया,वो दोनों स्वयं धूम्रपान त्यागना चाहते थे।दोनों बंगाली कायस्थ परिवार से थे,तो वो मछली भी खाते थे,तब के वैष्णव संप्रदाय से जुड़े कुछ लोगों ने शिकागो यात्रा के बाद स्वामी जी के हिंदू होने तक पर प्रश्न खड़े कर दिए थे,क्योंकि उनके अनुसार वो मांस भक्षी थे,और मांस भक्षी हिंदुओं का नेतृत्व नहीं कर सकता,एक शाकाहारी ब्राह्मण ही कर सकता है,उन्होंने स्वामी जी का बहिष्कार तक कर दिया था,जो शिखा नहीं रखता,जो जनेऊ नहीं पहनता,जो धोती नहीं पहनता वो काहे का हिंदू?और सर,स्वामी जी ने जब सन्यास लिया तो उन्होंने कई बुरी आदतों का परित्याग कर दिया,और उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस ने तो ये तक कह दिया था कि,*स्वामी विवेकानंद ध्यान और योग की उस स्थिति तक पहुंच चुके हैं जहां वो किसी भी मांस का भक्षण कर लें तो भी वो अशुद्ध नहीं होंगे।*इसका ये अर्थ था कि वो उस लेवल तक पहुंच चुके थे कुण्डलिनी जागरण में कि संसार में व्याप्त कोई भी बुराई अशुद्ध नहीं कर सकती थी,पर उन्होंने कभी भी किसी भी भाषण में,किसी भी लेख में,कहीं ये नहीं कहा कि मेरी भांति तुम भी बुरी आदतों को अपनाओ,वो इच्छाशक्ति को बढ़ाने के लिए कहते थे,आत्म–संयम और इन्द्रियों पर संयम करने के तरीके बताते थे और उसके लाभ भी,दूसरी तरफ़ नेताजी ने भी राष्ट्रभक्ति की ही बात करी,शस्त्र विद्या सीखने और सिखाने की ही बात वो करते रहे,कहीं भी धूम्रपान करने की किसी को न प्रेरणा दी,न ही अपनी बुरी आदत को जस्टिफाई किया।”
“बेटा ये जो तुम इतना 1 किलोमीटर लंबा लंबा ज्ञान बांच रहे हो,वो किसी काम का नहीं,तुम्हारा ये स्वामी विवेकानन्द एक मिशनरी एजेंट था और बोस एक फासीवादी सेक्युलर ये ही सच है बेटा,तुम्हें अभी कुछ नहीं पता,अभी बहुत छोटे हो,और नासमझ हो,बहुत कुछ पढ़ना है तुम्हें,अभी तुम्हें जो घमंड है ना आदर्शवाद का,वो सब समय के साथ मिट्टी में मिल जाएगा जब इनका असली सच जानोगे,मेरी बात मानों टेंशन फ्री रहो,और लाइफ एंजॉय करो,इस सब आदर्शवाद में कुछ रखा नहीं अब,अभी बस पैसा कमाओ और लाइफ के हर कश को फील करो,कल का क्या पता,मरना तो सबको है,कोई सिगरेट से मरेगा और कोई डेंगू से”
“सर,बड़े बड़े ग्रंथ पढ़ें हैं,बड़े बड़े व्यक्तव्य सुने हैं,तो सर वहीं से ज़्यादा लिखने और बोलने की आदत लग गई है,दूसरी बात,अगर स्वामी विवेकानंद एक मिशनरी एजेंट होते तो आज की एबीवीपी,संघ,बजरंगदल,विश्व हिंदू परिषद और भाजपा जिन्होंने हिंदुत्व से जुड़े हुए ही आदर्शों और कार्यों को प्रमुखता दी है अपनी कार्यशैली में,अगर वो मिशनरी एजेंट होते तो आज उनके नाम पर इस देश और विदेश में,उनके नाम पर लाखों कनवर्जन हो चुके होते,हम उन्हें अमेरिका के शिकागो में,उनके द्वारा हिंदुत्व पर दिए उनके ओजस्वी भाषण के लिए उन्हें स्मरण रखते हैं,”गर्व से कहो हम हिंदू हैं”का वाक्य हमें स्वामी विवेकानंद की याद दिलाता है,ना कि किसी पैस्टर द्वारा बोला गया “मेरा येसु येसू” स्वामी जी की याद दिलाता है।और तीसरी बात,नेताजी सुभाष चंद्र बोस की,तो आप उस इतिहास की बात कर रहे हैं,जो 1945 तक किताबों में बतलाया जाता था,उस व्यक्ति के आदेश पर जो खंडित भारत का पहला प्रधानमंत्री था,मैं उन नेताजी को जानता हूं,जो 1945 से 1985 तक बीच गुमनामी में रहकर राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए एक और पीढ़ी को तैयार करते रहे अयोध्या से,और साथ ही साथ सनातन के विज्ञान का अध्ययन करते रहे,उनके अंत समय तक करीब रहे डॉक्टर बनर्जी का कहना था कि नेताजी ने ध्यान–योग से एस्ट्रल प्रोजेक्शन तक को साध लिया था।उनके कमरे में कुरान नहीं मिली,मिली मां काली का चित्र,शंख,रुद्राक्ष की मालाएं।अयोध्या से कई बार उन्होंने नेपाल के रास्ते विदेश की यात्रा करी और भारत की सुरक्षा के लिए विदेशी मित्रों से मिल,एक *डार्कनाइट* की तरह कार्य किया,जिस दिन आप जान जाएंगे नेताजी ने इस देश के लिए क्या क्या सहा,क्या क्या किया उस दिन आप ऐसे इल्ज़ाम लगाने के बारे में सोचकर पछताएंगे।”
“मैं नहीं पछताऊंगा,पछताओगे तुम बेटा,तुम्हारा लॉजिक ही बेतुका है,तुम कह रहे हो कि हर सिगरेट पीने वाला बुरा है?और तुम्हारा बोस एक कायर था मेरी नज़र में और कुछ नहीं,हिम्मती होता तो सामने आता,नेहरू,इंदिरा से लड़ता,ऐसे छुप छुप कर नहीं जीता”
“सर,क्षमा चाहता हूं,अगर मैं जो अब कहने जा रहा हूं उससे आपको दिक्कत हो तो हो,पर आपसे कहना ये आवश्यक हो चुका है।हां सर,हर सिगरेट पीने वाला बुरा नहीं,पर एक युवा को सिगरेट पीने के लिए,और खुद की बुरी आदत को जस्टिफाई करने के लिए,राष्ट्रभक्त सनातनियों पर बेफिजूल के इल्ज़ाम लगाने वाला व्यक्ति सही नहीं हो सकता,एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी गलतियों को छिपाने के लिए उन पर कीचड़ उछालने का प्रयास कर रहा है,जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया राष्ट्र के नाम,वो व्यक्ति सही नहीं हो सकता,तो सर आप सही नहीं हैं यहां,और नेताजी ने छिप छिप कर देश सेवा करना क्यों चुना,उसके पीछे भारत सरकार का ब्रिटिश सरकार से हुआ पैक्ट था,जिसके तहत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को ब्रिटेन का “वॉर क्रिमिनल”(युद्ध अपराधी)माना गया था,और अगर कभी भी वो सामने आते तो पैक्ट के तहत भारत सरकार को उन्हें ब्रिटेन सरकार को सौंपना होता,और ये बात नेताजी भली भांति जानते थे,वो ये भी जानते थे कि उनके समक्ष आने से भारत में गृह युद्ध की स्थिति भी उत्पन्न हो जाएगी,और उसके पश्चात भी कोई रिजल्ट नहीं निकलेगा क्योंकि जिस देश का प्रधानमंत्री और उसका परिवार ही देश का राजा बना बैठा है और वो व्यक्ति नेताजी से आरंभ से ईर्ष्या रखता था,क्योंकि नेताजी जी को नेहरू से अधिक भारत की जनता प्रेम करती थी,नेहरू के पास सब कुछ था,धन कॉन्टैक्ट सब कुछ,पर जो दीवानगी नेताजी के लिए थी,वो कभी नहीं कमा पाया,और इसके चलते एक समय उसने नेताजी को भारत के लिए खतरा तक घोषित कर दिया था,उसकी कुंठा ही थी,कि वो प्रधानमंत्री बनने के पश्चात भी,नेताजी और उनके परिवार की जासूसी करवाता रहा,क्योंकि उसको डर था,कि नेताजी अगर वापस राजनीति में या देश के समक्ष आ गए,तो उसकी कुर्सी उससे छीन लेगी भारत की जनता,और ये ही डर उनकी बेटी इंदिरा के हृदय में था।तो कायर नेताजी नहीं थे,कायर थे उनके शत्रु।
उन्होंने तो वीर सावरकर जी की सलाह मान कर,परदे के पीछे से राष्ट्र सेवा करना चुना,जब भी वो सत्य समक्ष आएगा कि नेताजी ने क्या क्या किया,इस पुण्य भूमि के लिए और उन्हें क्या यातनाएं सहनी पड़ीं ये देश भी रोएगा और आप भी रोएंगे।”
“देखते हैं कौन कब कितना रोएगा,मेरी ही गलती थी जो तुम पर मैंने अपना इतना समय व्यर्थ किया,तुम उस लायक ही नहीं हो जो मेरा दिया ज्ञान समझ सको,पर इस बेइज्जती का दंड तो तुमको मिलेगा,बहुत जल्द मिलेगा,तुमको पता ही नहीं कि तुमने किससे पंगा लिया है”
“सर,मैंने आपसे कोई पंगा नहीं लिया,बस जो सच था वो वैसे ही कहा,अब आपको इसमें अपनी बेइज्जती लगी तो मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता,पर मेरा उद्देश्य आपको बेइज्जत करना नहीं,अपितु समझाने का प्रयास करना था,आप समझाने को बेइज्जती समझते हैं तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं,और शायद आपका भी नहीं,आप उस माहौल में रहते होंगे,जहां लोग आपकी जी हज़ूरी और हां में हां ही मिलाते होंगे,तो आपको आदत नहीं ऐसा सार्थक विरोध देखने की,तो आपको इस संवाद को नकारात्मक रूप से देखना लाज़िम है।”
“लाज़िम क्या है क्या नहीं अब पता चलेगा तुमको,अब और एक मिनट भी व्यर्थ नहीं करना मुझे तुम जैसे कुंठित सनकी लड़के पर”
“जय श्री राम सर,जय श्री कृष्ण सर”
आदित्य इस लंबे संवाद के बाद,गार्डन की बेंच पर ही सो गया था,सुबह एक हाथ ने उसे जोर से झटका,देखा तो सामने एक मेडिकल असिस्टेंट था,वो उसे आईसीयू की ओर ले गया और वहां उसने देखा कि उसके माता पिता को वेंटिलेटर पर डाल दिया गया है,रात को जब छोड़ कर गया था तो उसे यकीन था अगले दिन उनको नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट कर,छोड़ दिया जाएगा,क्योंकि उनकी प्लेटलेट में अब बढ़ौतरी हो चुकी थी,तो ये कैसे हुआ,उसकी समझ में नहीं आ रहा था,एक डॉक्टर आए और उन्होंने कहा,”इन दोनों की स्थिति अब बहुत खराब हो रही है,इसलिए इनको वेंटीलेटर पर रखना होगा,हो सकता है रिवाइव कर जाएं,आप ये दवाएं ले आएं नीचे से”आदित्य दिन रात दौड़ता रहा,आंखों में आसूं लिए,अभी उसके दिमाग में बस माता पिता को किसी तरह बचाना चल रहा था,पर 4 दिन वेंटीलेटर पर रखने के बाद डॉक्टर वारिस ने “वी आर वैरी सॉरी” कह दिया।आदित्य दोनों का शव लिए अपने कुछ साथियों संग बाहर निकल रहा था,उसे रास्ते में एक कमरे से अपने माता पिता का इलाज करने वाले डॉक्टर की आवाज़ आई,उसने अपने साथी को शव को आगे ले जाने को कहा,और वहां खड़ा हो गया और अपने फोन से रिकॉर्ड करने लगा..
“अरे सर,बहुत उछल रहा था वो दो कौड़ी का लौंडा,पता नहीं था उसे कि किसका दोस्ती का हाथ छोड़,वो किससे पंगा ले रहा था,आपने सही किया उस रात उसके मां बाप की लाइफलाइन बंद करके,उसके बाद वेंटीलेटर पर तीन दिन उन दोनों की बॉडी रखकर जो आपने टॉर्चर किया उसके साथ वो भी लाजवाब था,सज़ा भी दे दी कायदे की और उस सज़ा के पैसे भी ले लिए उस क्यूटिये से,मान गए सर जैसा आपका नाम है विश्वजीत,वैसे ही आप,
हर बार जीत जाते हो।”
“वारिस मियां,उससे अभी तो और बदला लेने का मन था मेरा,एक गरीब दो कौड़ी का लड़का,प्राइवेट अस्पताल के मालिक को ज्ञान बांचने चला था,यहां लोग मेरी उंगलियों पर नाचते हैं, मैं जिसको चाहूं जिंदा रखूं,जिसको चाहूं कफ़न पहना दूं, मैं यहां का भगवान हूं,और वो लंबी लंबी संत वाली बातें बताने लगा जैसे मैं कोई बच्चा हूं,उसकी औकात कैसे हुई मुझे ज्ञान देने की,मैं करोड़ों में खेलता हूं यहां,उसके पास क्या है?ना मेरी तरह उसके पास डिग्री है,बारहवी पास लौंडा चला था मुझे सीख देने,दिखा दी उसकी औकात,अब रोता रहेगा जिंदगी भर और उसे पता भी नहीं चलेगा कि उसके मां बाप या उसके जैसे गवारों के रिश्तेदार कभी बीमार थे ही नहीं,प्लेटलेट कम करने के लिए भी हमने ही अपनी पैथलैब को बोला था,हमारे पास जो आएगा,उसको आईसीयू में भर्ती कराएंगे,हां जाएगा जिंदा बाहर वही जिसे हम भेजना चाहेंगे नहीं तो उनकी डेड बॉडी से भी पैसा खींच लेंगे,उसे और उस जैसों को पता नहीं चलेगा कि उनके आदर्शों को पकड़ने वाली ज़िद्द उनसे उनका क्या क्या छीन लेगी,बहुत आए आदर्शवादी यहां पर हर बार रोते हुए ही गए जैसे वो जा रहा,डॉक्टर विश्वजीत से कोई नहीं जीत सकता हा हा हा।”

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