Home विषयइतिहास #महाभारत_का_तिथिक्रम

इतना तो हम सभी जानते और मानते हैं कि यह विष्णुगुप्त चाणक्य थे जिन्होंने अलैग्जेन्द्रीयस अर्थात सिकंदर महान के घोड़ों की टापों के नीचे आग लगा दी थी और यह तिथि थी 326 ईपू जिसके बाद 323 ईपू में चंद्रगुप्त मौर्य मगध के सम्राट बने।
अब इस तिथि को पौराणिक वंशावलियों से जरा पीछे घुमाइये।
-महाभारत युद्ध के बाद जरासन्ध वंश के 22 राजाओं ने 1006 वर्ष तक,
-5 प्रद्योत वंश के राजाओं ने 138 वर्ष ,
-10 शैशुनागों ने 360 वर्षों तक ,
-9 नंदों ने 100 वर्षों तक।
तो इन्हें सिकंदर, चाणक्य व चंद्रगुप्त के युग अर्थात 327 ईपू से पीछे घुमाते हैं।
#नौ_नन्दों ने 100 वर्षों तक :– यानि
327+100=427 ईपू
#दस_शिशुनागों ने 360 वर्ष तक:-यानि
427+360= 787 ईपू
#प्रद्योत वंश ने 138 वर्ष तक:- यानि
787+138=925 ईपू
#जरासंध के बृहद्रथ वंश ने 1006 वर्ष तक:-यानि
925+1006=2031 ईपू
यानि सभी पुराणों के अनुसार भी चलें तो भी मोटामोटी महाभारत 2000 ईपू हुआ था जो 3102 ईपू से पूरे हजार वर्ष कम बैठता है और यहाँ दृष्टव्य है कि बौद्ध व जैन ग्रंथों से समाकलित करने पर और अतिव्यापित राजवंशों को शुद्ध करने पर यह तिथि 1600 से 1500 ईपू ही रह जाती है जो द्वारिका के खोजकर्ता स्व. श्री एस. आर. राव तथा सैकड़ों अन्य प्रसिद्ध इतिहासकारों द्वारा प्रतिपादित तिथि के अनुरूप ही है।
वामपंथी इतिहासकार महाभारत को 900ईपू मानते हैं जो मुझे सही प्रतीत नहीं होते।
अब सवाल यह है कि 3102ईपू की तिथि को हिंदू मानस में किसने घुसेड़ा?
दरअसल इस तिथि का निर्धारण किसी इतिहासकार ने नहीं बल्कि आर्यभट्ट ने गणितीय गणना पर प्रतिपादित किया जिसको ‘ऐहोल अभिलेख’ में उल्लेखित किया गया है लेकिन इतिहास में ज्योतिषीय गणनाओं से कैसे इतिहास विकृत होता है, यह उसका शानदार उदाहरण है खासतौर पर जब किसी भी ज्योतिषीय संयोग को आसानी से संस्कृत श्लोक बनाकर कहीं भी घुसेड़ा जा सकता है। और यह काम अंग्रेजों ने नहीं हमारे विद्वानों ने और वह भी गुप्त युग में किया जब सारी तर्कशीलता एक ओर उठाकर दिव्य व मानवीय वर्ष, लाखों करोड़ों वर्षों के युग, मन्वंतर बनाकर राजाओं ऋषियों की सैकड़ों हजारों नहीं बल्कि लाखों करोड़ों वर्ष की आयु घोषित कर वेदों को ही झूठा साबित कर दिया गया जहाँ देवताओं से मात्र सौ वर्ष आयु देने की प्रार्थना की गई है।
इसलिये इतिहास हो या विज्ञान या गणित सभी का अध्ययन पूर्वधारणाओं से मुक्त होकर करना चाहिए न कि हवा हवाई बातों और जबर्दस्ती हर विधा में राष्ट्रवाद व अध्यात्म को घुसेड कर।
मैं सभी फेसबुकिया विद्वानों को आमंत्रित करता हूँ और चुनौती देता हूँ कि या तो सभी पुराणों में दर्ज इन वंशावलियों को गलत साबित करें या फिर जिन्होंने इस विषय पर मेरी निराधार ट्रोलिंग की या पुस्तक समीक्षा के नाम पर करवाई है उसके लिए क्षमा मांगें।

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