पिछले साल 16 से 19 अगस्त के बीच वैज्ञानिकों ने जोशीमठ की ग्राउंड स्टडी की थी. तब लोगों ने वैज्ञानिकों को बताया था कि 7 फरवरी 2021 ऋषिगंगा हादसे के बाद जोशीमठ का रविग्राम नाला और नौ गंगा नाला में टो इरोशन (Toe Erosion) और स्लाइडिंग (Sliding) बढ़ गया था. टो इरोशन यानी पहाड़ के निचले हिस्से का कटना जहां पर नदी या नाला बहता हो. स्लाइडिंग यानी मिट्टी का खिसकना.
![फरवरी 2021 में ऋषिगंगा हादसे की वजह से जोशीमठ की नींव हिल गई थी.](https://praarabdh.in/wp-content/uploads/2023/01/mantri-2-300x169.jpg)
फरवरी 2021 में ऋषिगंगा हादसे की वजह से जोशीमठ की नींव हिल गई थी.
17 और 19 अक्टूबर 2021 को हुई भारी बारिश के बाद जोशीमठ के धंसने की तीव्रता तेज हो गई थी. जमीनों और घरों में मोटी-मोटी दरारें पड़ने लगी थीं. इन तीन दिनोमें जोशीमठ में 190 मिलिमीटर बारिश हुई थी. सबसे ज्यादा दरारें रविग्राम इलाके में देखने को मिली थीं. असल में जोशीमठ जिस प्राचीन मलबे पर बसा है, वो बहुत ही नाजुक है. वह रेतीले और क्ले जैसी मिट्टी और कमजोर पत्थरों के सहारे टिका हुआ शहर है.
![मकानों की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी इसलिए दरारें सीलिंग और बीम तक पहुंच गई थीं. घर जानलेवा हो गया.](https://praarabdh.in/wp-content/uploads/2023/01/10-Lakhs-Jobs-in-18-Months-Announced-Prime-Minister-Modi-2-01-1-6-300x169.webp)
मकानों की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी इसलिए दरारें सीलिंग और बीम तक पहुंच गई थीं. घर जानलेवा हो गया.
अलकनंदा नदी जोशीमठ को नीचे से कर रही है कमजोर
अलकनंदा नदी में जहां से धौलीगंगा मिलती है, वहीं से टो इरोशन तेजी से हो रहा है. यानी जोशीमठ के नीचे की जमीन को अलकनंदा-धौलीगंगा मिलकर काट रही हैं. वह भी डाउनस्ट्रीम में. रविग्राम नाला और नौ गंगा नाला से लगातार मलबा नदी में जाता रहता है, जिसकी वजह से नदी का बहाव कई जगहों पर बाधित होता देखा गया है. इसके अलावा हाथी पर्वत से गिरने वाले बड़े-बड़े पत्थर भी अलकनंदा के बहाव को बाधित करते हैं. इसकी वजह से नेशनल हाइवे से गुजरने वाली गाड़ियों को ऊपर और नीचे दोनों तरफ से खतरा बना रहता है. कहीं ऊपर से पत्थर न आ जाए. कहीं नीचे से सड़क ही न धंस जाए.
जोशीमठ-औली रोड पर कई जगहों पर दरारें-गुफाएं बनीं
अगर ऊपर के हिस्से की बात करें, तो जोशीमठ-औली रोड पर कई जगहों पर दरारें और गुफाएं बनते हुए देखी गई है बारिश के पानी के बहाव की वजह से मिट्टी खिसकने की वजह से पत्थर भी लुढ़के हैं. जिनसे ऊपरी हिस्से में दरारें बन गई हैं. इन बड़े पत्थरों के खिसकने की वजह से नीचे के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए खतरा बना रहता है. इस इलाके में कई नाले हैं, जो खुद को धीरे-धीरे फैलाते जा रहे हैं. यानी अपनी शाखाएं निकाल रहे हैं. इससे धंसाव का मामला और बढ़ेगा. क्योंकि पानी का बहाव निचले इलाकों में बदल रहा है. ऐसे में टो इरोशन की आंशका बढ़ जाती है.
![ये है नौ गंगा नाला जहां पहाड़ नीचे से कटते जा रहे हैं. इसे ही टो इरोशन कहते हैं. ये जोशीमठ को धंसा सकते हैं.](https://praarabdh.in/wp-content/uploads/2023/01/mantri-3-252x300.jpg)
ये है नौ गंगा नाला जहां पहाड़ नीचे से कटते जा रहे हैं. इसे ही टो इरोशन कहते हैं. ये जोशीमठ को धंसा सकते हैं.
जोशीमठ में कहां सबसे ज्यादा धंस रही है पहाड़ी जमीन
सबसे ज्यादा पहाड़ी जमीन धंसने का मामला रविग्राम और कामेट-मारवाड़ी नाला के बीच देखा गया है. जोशीमठ.औली रोड पर कई जगहों पर सड़कें धंसी हैं, मकानों में दरारें हैं. ये दरारें सिर्फ मकानों के नींव तक ही सीमित नहीं है. ये दीवारों से होते हुए छत और बीम तक पहुंच गई हैं. जो कि लोगों की जान के लिए खतरनाक है. सबसे ज्यादा दरारों का पड़ना और जमीन धंसने का मामला रविग्राम, सुनील गांव, सेमा और मारवाड़ी इलाके में देखने को मिल रहा है.
ऐसा क्या था जो सबसे पहले किया जाना था, जो कमियां दिखीं?
औली रोड पर बारिश का पानी सड़कों पर बहता दिखा. हर जगह ड्रेनेज सिस्टम सही नहीं था. सुनील गांव में जमीनी दबाव की वजह से पानी की पाइपें मुड़ गई थीं. जोशीमठ-औली रोड पर एक नाले का प्राकृतिक रास्ता घरों और अन्य इमारतों की वजह से रुक गया था. इस पूरे इलाके में न ही सही तरीके से सीवेज सिस्टम था. न ही बेकार पानी के डिस्पोजल का कोई सिस्टम. ज्यादा पर्यटकों की वजह से ज्यादा खपत और अधिक पानी का रिसाव जमीन के अंदर होता रहा.
![जोशीमठ-औली रोड पर सुनील के पास जमीन खिसकने से पानी की पाइपें मुड़ गई थीं.](https://praarabdh.in/wp-content/uploads/2023/01/download-2-300x169.jpg)
जोशीमठ-औली रोड पर सुनील के पास जमीन खिसकने से पानी की पाइपें मुड़ गई थीं.
ये हैं वो 5 वजहें जिनकी वजह से जोशीमठ धंस रहा है?
प्राचीन भूस्खलन के मलबे पर बसा जोशीमठ का ज्यादातर हिस्सा ढलानों पर है. ढलानों की मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर है. साथ ही इसके ऊपर वजन बहुत ज्यादा. जिसकी वजह से ये खिसक रही है. सही सीवेज सिस्टम न होने की वजह से मिट्टी अंदर से स्पॉन्ज की तरह खोखली हो गई है.
बारिश का पानी और घरों-होटलों से निकलने वाले गंदे पानी के निकासी की सही व्यवस्था नहीं थी. ये जमीन के अंदर रिसते रहे. इससे मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर होती चली गई. इससे ढलानों की मजबूती खत्म हो गई. अंदर से खोखला होने की वजह से इनमें दरारें पड़ने लगीं.
लगातार पानी के रिसने की वजह से मिट्टी की परतों में मौजूद चिकने खनिज बह गए. जिससे जमीन कमजोर होती चली गई. ऊपर से लगातार हो रहे निर्माण का वजन यह प्राचीन मलबा सह नहीं पाया.
2021 में हुई धौलीगंगा-ऋषिगंगा हादसे की वजह से आए मलबे से जोशीमठ के निचले हिस्से में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर टो इरोशन बहुत ज्यादा हुआ. जिससे शहर की नींव हिल गई. इसने जोशीमठ के ढलानों को हिला दिया.
सतह में पानी का रिसना, प्राकृतिक ड्रेनेज से मिट्टी का अंदर ही अंदर कटना, तेज मॉनसूनी बारिश, भूकंपीय झटके, बेतरतीब और अवैज्ञानिक तरीके से होता निर्माण कार्य ही इस जोशीमठ के नाजुक ढलान को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार हैं. आप किसी बाल्टी में उसकी सीमा से ज्यादा पानी नहीं भर सकते. पहाड़ों के साथ भी यही है
![अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत... अब जोशीमठ को बचाना मुश्किल लग रहा है.](https://praarabdh.in/wp-content/uploads/2023/01/10-Lakhs-Jobs-in-18-Months-Announced-Prime-Minister-Modi-2-01-1-7-300x169.webp)
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत… अब जोशीमठ को बचाना मुश्किल लग रहा है.