यकीं होता नही परन्तु करना पड़ रहा है कि हम लोग खोखले होते जा रहे हैं।पिछली दो पीढ़ियों से हमने कायरता चुनना शुरु कर दिया है और अपनी अगली पीढ़ियों को भी हम कायर बनाने लगे हैं।वरना क्या हिम्मत किसी की जो हमारे देश में हमारे अराध्य के बारे में कोई कुछ उल्टा लिख दे, उल्टा बोल दे, उल्टा दिखा दे!
उनकों पता है कि आज करोड़ों हिन्दुओं के रगो में माँ का दुध कम और फैशन के नाम पर पाउडर वाला दूध खून बन कर दौड़ रहा है। जिस गाय को हम माता कह हमारी असंख्य पीढ़ियाँ पूजती आ रही है उसको माँस को खाते हुए इस देश का एक साहित्यकार फोटो पोस्ट करता है और हम सब नपुंसक बने देखते रहते हैं।
हमें अब कहाँ फर्क पड़ता है कि पाकिस्तान में कोई हमारे अराध्य का मंदिर तोड़ दे चाहे बंगलादेश में कोई मंदिर टूटे और घरों में आग लगा दे भीड़! हमने तो एक झूठ के सहारे जीना शुरुकर दिया है कि सब कुछ सही है। हमारा रक्त अब कहाँ उबाल खाता है! कभी कभी तो ऐसा लगता है कि बौद्धिक तौर पर हमलोग दिवालिया हो चुके है और अपनी सोचने की शक्ति को त्याग कर मन को कुंठित कर लिया है और इसके साथ ही साथ अपने पूर्वजों के त्याग,बलिदान और संस्कारों को भी मिट्टी में मिला दिया है।
आखिर हम दरिन्दों के असंख्य पापों को कैसे भूला सकते हैं!उनको हम गले कैसे लगा सकते है! स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि एक हिंदू का धर्मान्तरण एक शत्रु का बढ़ना है।
हमने अपने बच्चों को सनातन गौरव बोध का पाठ पढ़ाना ही होगा। उनको बताना ही होगा कि वे विश्व की श्रेष्ठ संस्कृति के वर्तमान हैं।उनको बताना ही होगा कि धर्म और अधर्म के बीच तीसरा कुछ नही होता है। जो तुम्हारे धर्म के साथ नही है इसका सीधा मतलब है कि वह तुम्हारा शत्रु हैं।
फर्जी भाईचारे के चक्कर में चारा आखिर कब तक हिन्दू बनेगा!
सनद रहे कि जब हम अपना धर्म छोड़ रहे होते हैं या उस पर उंगली उठा रहे होते हैं तब हम प्रगतिशील नही बन रहे होते बल्कि अपने पूर्वजों के त्याग बलिदान और कृत्य को एक झटके मे नष्ट कर रहे होते हैं,उनको गाली से नवाज रहे होते हैं जिन्होने तमाम कष्ट सह कर भी अपना धर्म बचाए रखा। ऐसे प्रगतिशील बनाने से बेहतर है कि बच्चे अनपढ़ रहे! अनपढ़ आदमी अपने संस्कार और संस्कृति बचा लेता है और कुपढ़ आदमी अपना सब कुछ खो देता है।
आज जो हाल बंगलादेश में हो रहा है अगर हम खड़ा होना और लड़ना नही सिखे तो कल हमारे साथ होगा! अगर सम्मान जीना है तो लड़ना ही होगा! धर्म से विमुख होकर जीने से बेहतर मर जाना हैं। धर्म के नाम पर विश्व भर के हिन्दुओं को एक होना ही होगा।
तब जाकर एक ऐसा सुखद सवेरा आएगा जब काश्मीर के मार्तण्ड मंदिर फिर से चमकेगा और माँ शारदा पीठ भी हमारी अपनी होगी।