Home विषयअपराध आज कुछ अलग बात करते हैं
आज कुछ अलग बात करते हैं। असल मुद्दे की बात।
लेकिन इसके लिए पहले कुछ प्रसिद्ध उदाहरण देखेंगे तो बात तुरंत समझ में आएगी।
१ अस्मा बिंत मरवान का नाम पढ़ा है ? उसकी पूरी कहानी आप नेट पर सर्च कर सकते हैं, उससे और भी सबक ले सकते हैं, लेकिन यहाँ मैं एक ही मुद्दे पर फोकस करना चाहता हूँ और वो यह है –
उसका हत्यारा सुबह उसके घर लौटा और सब के सामने सीना ठोंककर बोला कि मैंने इस औरत की हत्या की है, जिसको मेरा कुछ करना है, लो, सामने हूँ। जो करना चाहते हो, कोशिश कर सकते हो, अभी, बाकी नहीं तो मेरा समय बर्बाद मत करो।
बात यह है कि किसी की हिम्मत नहीं हुई उसको कुछ करने की और अस्मा के कबीले ने ____ कुबूल किया।
२ दूसरी कहानी भी उन लोगों की ही है, एक मुहइसा नाम के एक कट्टर माननेवाले ने अपने एक यहूदी क्लाइंट को परलोक पहुंचा दिया क्योंकि वो उसके श्रद्धेय के बारे में कुछ बोला जो इसे पसंद नहीं आया।
मुहइसा के भाई को यह बात पता चली तो उसने मुहइसा को डांटा कि तेरी सर्वाधिक कमाई तो इससे ही या रही थी, और तूने इसे ही मार दिया ? मुहइसा ने जवाब दिया कि वो कमाई उसके लिए मायने नहीं रखती और तूने भी मेरे श्रद्धेय के खिलाफ बात की तो तुम्हें भी मार दूंगा।
ये लोग इस कहानी को बड़े गर्व से बताते हैं कि इससे प्रभावित हो कर मुहइसा के भाई ने भी _____ कुबूल कर लिया।
३ तीसरी कहानी का’ब बिन अशरफ की हत्या की है। उसकी छल कपट से हत्या कारवाई गई और हत्या का जिसने बीड़ा उठाया था उसे आश्वस्त किया गया कि इसके लिए झूठ बोलना पाप नहीं होगा।
डीटेल आप को नेट पर मिलेंगे, लेकिन तीनों कहानियों का जो समान सूत्र है अगर आप इनके लिटरेचर को पढ़ेंगे तो एक ही बात है कि इन हत्याओं के बाद इनके मत का दबदबा बढ़ा, उसके विरोधी शांत पड गए और लोगों ने भारी संख्या में मतांतरण किया।
असलियत यह है कि वहाँ कोई बड़ी राजसत्ता थी नहीं, सभी छोटे छोटे समुदाय थे और शस्त्रप्रयोग एक डरा देनेवाली बात थी। शस्त्र सब के पास नहीं थे इसका सबूत काब की कथा में मिल जाता है जहां उसका हत्यारा उससे पास कर्ज के तारण के रूप में अपनी तलवार रखने की बात करता है और काब भी तलवार तारण रखने के लिए तैयार हो जाता है।
दूसरा सबूत है लड़ाइयों में शत्रु के मृतों के शस्त्र उठाना। खैर, बात भटक जाएगी, मेरा मुद्दा है कि जहां हिंसकों का सामना वाकई शांतिपूर्वक रहनेवाले लोगों से हो जाता है, हिंसा जीत जाती है अगर प्रतिहिंसा से उसका तात्कालिक दमन और शमन न हो। वहाँ कोई राजसत्ता नहीं थी जो हत्यारों को गिरफ्तार कर के सजा दे सकती थी। और उन्होंने तो अपने किए हिंसा को छुपाया नहीं बल्कि उसपर गर्व किया।
आज भी कर रहे हैं, अपने लोगोंको मानों वही सीख दे रहे हैं जो उन हत्यारों की सोच थी या उनके कांडों को गर्व से लिखनेवालों की थी।
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आज यह बताने का कारण यही है कि हम केवल पोल खोल करने में या एक्सपोज करने में संतुष्ट हो रहे हैं। लेकिन जिनकी पोल खोल कर रहे हैं वे तो नेता बने जा रहे हैं। क्या उनके कांड उनको नेता बनानेवालों को ज्ञात नहीं ? बिल्कुल हैं ! फिर भी अगर ये उनके नेता बने जा रहे हैं मतलब एक ही है जिसे हम समझना नहीं चाहते कि डीएनए कितना भी समान हो, नैतिकता के निकष विपरीत हैं।
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बाकी उम्मीद है कि आप समझदार हैं। कहीं भी सिगरेट आदि का सुलगता ठूंठ दिखे तो कोई भी सामान्यत: उसे वहीं रगड़कर बुझा देता है, उसे जलता छोड़कर उसका विडिओ नहीं बनाता कि यह देखिए यहाँ क्या हो रहा है और इसके लिए कौन जिम्मेदार हो सकता है।
पता नहीं, आजकल यही होता होगा। कुछ वर्ष पहले दिल्ली झू में शेर ने अपने बाड़े में घुसे एक अर्धविक्षिप्त व्यक्ति को मार डाला था तो सभी लोग अपना अपना अलग अलग विडिओ बनाने में ही व्यस्त थे।
कहावत है कि रोम जलता रहा, (सम्राट) नीरो फ़िडल बजाता रहा। आज के हिंदुओं के लिए कहा जा सकता है कि उसके साथ घटी हर दुर्घटना में वो रोता हुआ विडिओ बनाता रहता है।

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