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9/11अमेरिका में हमला

by Nitin Tripathi
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अमेरिका में 9/11 हमला हुआ था, उस वक्त मैं अमेरिका में ही था. अमेरिकन मीडिया की चौबीस घंटा लाइव रिपोर्टिंग थी लेकिन कोई इस बात का ज़िक्र तक न कर रहा था कि कितने लोगों की मृत्यु हुई. पूरा फ़ोकस था घटना और उससे निपटने के तरीक़े पर. फ़ोकस था कि बच्चों को कैसे बताया जाए कि अमेरिका में भी कोई आतंकी हमला हो सकता है. फ़ोकस था कि मदद कैसे पहुँचाई जाए. वहीं जब भारत की न्यूज़ खोलता तो पहले मिनट से ही खबर थी पचास हज़ार लोगों के मारे जाने की सम्भावना. पूरा फ़ोकस आँकड़ों पर था कि कितना मरे कितना ज़िंदा रहे. बात ख़त्म.
हम भारतीयों को बचपन से ही नम्बर गेम सिखा दिया जाता है. भारत से पढ़ जब अमेरिका जाते हैं पढ़ने तो अचरज होता है कि इधर नम्बर कितने आए कोई पूँछता नहीं. उल्टे ज़्यादा नम्बर आए लोग गीक / अनकूल माने जाते हैं. हमें बचपन से सिखाया गया, नक़ल करो, घूस दे दो, कुछ भी कर डालो, बस नम्बर अच्छे ले आओ.
असल जीवन में सरकारें इसका फ़ायदा उठाती हैं. बचपन में कांग्रेस सरकार घर घर सोवियत मैगज़ीन फ़्री भेजती थी. वह आँकड़े पढ़ जब हम राशन की दुकान में कापी पेन्सिल लेने खड़े होते थे तो भी दिमाग़ में रहता था दुनिया का नम्बर एक विकसित देश रूस, नम्बर दो भारत. वह तो जब दुनिया देखी तब समझ आई हम कहाँ हैं विकास के मामले में.
अभी हाल ही में करोना लहर आई थी. इससे वीभत्स दृश्य शायद ही किसी ने जीवन में कहीं देखा हो. शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी जान पहचान में आठ दस लोगों की मृत्यु न हुई हो. पर आँकड़े ठीक कर दिए गए और अब हममे अधिकांश यह मानते हैं कि कोई विशेष समस्या न थी. पूरे भारत की सभी प्रदेश सरकारों ने आँकड़ों में सिद्ध कर दिया कि पूरे भारत में एक भी व्यक्ति आक्सीजन की कमी से न मरा. जबकि उस समय हालत यह थी कि लोग दसियों हज़ार खर्च करने को तैयार थे, हज़ारों किमी ड्राइव कर रहे थे कि बस एक सिलंडर मिल जाए. हर मंत्री / विधायक का फ़ोन बंद था क्योंकि वह भी आक्सीजन का एक सिलंडर न उपलब्ध करा पा रहा था. पर चार महीने बाद आँकड़ों में सिद्ध हो गया कि कोई कमी न थी और हमारा दिमाग़ बचपन से ही ऐसा वायर किया गया कि हम खुद पर हुवे अत्याचार को भी आँकड़े के चश्मे से देख लकी मान लेते हैं कि कुछ न हुआ था. अब वह भी जिनके परिचित करोना में नहीं रहे वह भी मानने लगे हैं कि कोई समस्या न थी.
मैंने कल भी लिखा था, आज फिर लिख रहा हूँ – कोविड के नम्बर बढ़ रहे हैं. हमारे देश में कोई भी प्रदेश कोविड से लड़ने के लिए उतना ही तैयार है जितना वह सौ वर्ष पूर्व कोविड से लड़ने के लिए तैयार था. आँकड़ो पर मत जाइए विशेष कर तब जबकि यह आपकी ज़िंदगी का सवाल हो.
सावधान रहें, सजग रहें, विशेष कर आने वाले एक महीने. तब तक सिचूएशन क्लीयर हो जाएगी.

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