Home चलचित्र लव जिहाद में फसी लड़किया – और फ़िल्मी प्रमोशन

लव जिहाद में फसी लड़किया – और फ़िल्मी प्रमोशन

by Jalaj Kumar Mishra
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कभी अंडा-फार्म देखे हैं? अंडा फॉर्म का मालिक मुर्गी खरीद कर लाता है। उन्हें अनेक तरह के पौष्टिक और उत्तेजक आहार देता है, ताकि वे रोज अंडा दे सकें। दवाइयों के कारण अप्राकृतिक तरीके से मुर्गियां साल भर तक रोज अंडा देती हैं, जिससे मालिक का धंधा चलता है। मुर्गी को पता भी नहीं चलता कि उसके तीन सौ पैंसठ अंडे कहाँ गए। इस धंधे में उसका कुछ नहीं होता, जो होता है सब मालिक का होता है।
फिर एक दिन मुर्गी के अंडे देने का समय समाप्त हो जाता है। मालिक एक बार भी नहीं सोचता कि उसने इस मुर्गी के साढ़े तीन सौ अंडे बेंच कर रुपया बनाया है। वह उसी दिन से मुर्गियों को कटवा कर उनका मांस बेचने लगता है। और हाँ! फार्म के लिए अगले ही दिन नई मुर्गियां मंगा ली जाती हैं।
कहना नहीं चाहिए, पर लभ जिहाद में फँसी लड़कियां अपने शिकारी की दृष्टि में वही मुर्गी होती हैं। जिस दिन उनकी मियाद पूरी हो गयी, उसी दिन मालिक लात मार देता है। अंतर बस इतना है कि इनका मांस बिकता नहीं है; सो या तो सूटकेस में भर कर फेंक दिया जाता है, या यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
हो सकता है कि आप कुछ उदाहरण दिखा दें, कि फलाँ ने अपनी बीवी को मारा नहीं बल्कि वह सुखी जी रही है, और वहाँ खूब प्रेम है। पर यह पूरी तरह सच नहीं है। 90% मामलों में ऐसा तभी होता है जब उससे कोई और लडक़ी न फंसे… जैसे ही कोई दूसरी फंसती है, पहली को लात मार कर निकाल दिया जाता है। यदि वह नौकरानी की तरह रहना स्वीकार करे तो ठीक, नहीं तो…
पर रुकिये! आमिर, किरन का मामला लव जिहाद का मामला नहीं है, बल्कि लभ जिहाद के विज्ञापन और प्रमोशन का मामला है। किरन फँसी नहीं हैं, बल्कि वे और आमिर इस प्रायोजित कार्यक्रम में अपना रोल प्ले कर रहे थे। उन्होंने पहले लभ-जिहाद को प्रमोट किया, फिर सरोगेसी को प्रमोट किया, और अब डिवोर्स को प्रमोट कर रहे हैं। उन्हें इसके लिए भरपूर राशि मिली होगी। बस यूँ समझ लीजिये कि वे एक लम्बी फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे, जो अब खत्म हो गयी है। और फिल्मों में तो कहानी की मांग के नाम पर कुछ भी फिल्माया जाता रहा है…
यह भी सच है कि किसी शर्मिला टैगोर, अमृता सिंह, करीना कपूर या किरन राव को अधिक दिक्कत नहीं होती है, दिक्कत होती है उनकी देखा देखी किसी आमिर पर भरोसा कर लेने वाली गाँव-देहात की किरनों को। बोरे में भरी जाती हैं वे आम लड़कियां, जो इन सिनेमाई कहानियों को सच मान लेती हैं। पैसे के लिए विज्ञापन का हिस्सा बनती है कोई किरण राव, पर उसका दण्ड भुगतती है कोई नैना मंगलानी। कोई शिल्पी…
खैर! इस आतंक को रोकने का एकमात्र तरीका यही है कि आप अपनी बच्चियों को आतंकियों का सत्य बताएं। उन्हें समझाएं कि किससे प्रेम किया जाना चाहिए और किससे घृणा… हाँ! घृणा भी जीवन का एक आवश्यक भाव है, घृणा पाप से भी करनी चाहिए और पापी से भी…
नोट : सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ वहीं है जिन्होंने हिन्दी में पहली बार लव जिहाद पर एक बेस्टसेलर उपन्यास ‘परत’ लिखा है।

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